23 मई 2009

हिंदी ब्लाग लेखन के लिये खुला है आकाश-संपादकीय

हिंदी ब्लाग जगत के कुछ ब्लाग लेखक अंतर्जाल पर वैसी ही गुटबाजी देख रहे हैं जैसी कि सामान्य रूप से बाहर देखने को मिलती है। यहां हम इस बात पर विचार नहीं करेंगे कि क्या वाकई कोई गुटबाजी है या नहीं बल्कि इस बात पर विचार करेंगे कि उन्हें ऐसा देखना चाहिये कि नहीं। सच कहें तो हम हिंदी ब्लाग जगत में सक्रिय ऐसे ब्लाग लेखकों से आग्रह करेंगे कि वह गुलामी की मानसिकता से बाहर निकलकर इस कथित गुटबाजी को देखना ही बंद कर दें। दिखती हो तो आंखें फेर लें। यहां सवाल कुछ ब्लाग लेखकों की गुटबाजी से अधिक उनकी सोच पर उठेगा जो कि स्वतंत्र एवं मौलिक हैं पर उनकी सोच वैसी नहीं हो पाई।

पहले करें हिंदी साहित्य और प्रचार जगत में फैली गुटबाजी की। उससे ऐसे अनेक लेखक-जिनमें इस ब्लाग/पत्रिका का लेखक भी-त्रस्त रहे हैं। यह त्रस्तता इतनी भयानक रही है कि कुछ लोगों ने तो लिखना ही बंद कर दिया और कुछ स्वांत सुखाय लिखते रहे पर उन्हें देश का एक बहुत बड़ा पाठक वर्ग नहीं पढ़ सका। दरअसल लेखक और पाठक के बीच जो बाजार या संस्थान हैं उनके केंद्र बिंदू में सक्रिय पूंजीपति, मठाधीशों और उनके प्रतिनिधियों ने अपनी शक्ति के आगे नतमस्तक लोगों का वहां बनाये रखा। बाजार को पैसे की तो हिंदी संस्थानों को प्रचार की जरूरत थी और जिसने उनकी जरूरतों को पूरा किया वही उनका लाड़ला बना। बाजार के पूंजीपति और हिंदी संस्थानों के कर्णधार अपनी प्रतिभा का उपयोग हिंदी के लेखकों को आगे आने देने की बजाय उनको भेड़ की तरह हांकने में करना चाहते हैं। उनकी मानसिकता एक सभ्य व्यापारी से अधिक ग्वाले की तरह है जो बस अपने पालित पशुओं को हांकना ही जानता है। सच कहें तो लेखकों को एक तरह से लिपिक माना गया।
परिणाम सामने है। पिछले कई दशकों से हिंदी में एक भी ऐसी पुस्तक या रचना नहीं आयी जिसे सदियों तक याद रखा जा सके। हम ब्लाग लेखकों में कई ऐसे हैं जो अपनी नौकरी और व्यापार से जुड़े रहते हुए अपना लेखन सामान्य पाठक तक पहुंचाने में नाकाम रहे पर इसका हमें क्षोभ या दुःख नहीं होना चाहिए क्योंकि ऐसे में हम इसे भाग्य कहें या कर्म कि अंतर्जाल पर स्वतंत्र रूप से ब्लाग/पत्रिका लिखने का अवसर मिला। यहां अंतर्जाल पर ऐसे लेखकों को असफल लेखक कहकर मजाक भी उड़ाया जाता है ऐसा कहने वाले पुरानी प्रवृत्ति के लोग हैं और उनके लिये सफलता का पैमाना अधिक छपना और प्रसिद्ध होने से अधिक कुछ नहीं है। किसी लेखक के पाठ की मौलिकता, गुणवत्ता और कालजयित से उनको कोई मतलब नहीं है। ऐसी रचनायें अब अंतर्जाल पर ही आना संभावित हैं जिसके सामने प्रकाशन व्यवसाय और हिंदी संस्थानों की शक्ति अत्यंत सीमित है।

यहां भले ही कोई पूंजीपति कुछ ब्लाग लेखकों को खरीदकर उसमें अपने यहां के प्रकाशन की पुस्तकों का प्रचार कराये या कोई हिंदी संस्थान अपने निर्धारित लेखकों के प्रचार के लिये कुछ ब्लाग लेखकों को तैयार करे पर समूचे हिंदी ब्लाग जगत का कोई स्वामी नहीं बन सकता। यहां हर ब्लाग लेखक एक प्रकाशन और संस्थान स्वयं हैं। वह किसी सेठ या मठाधीश का मोहताज नहीं है। अपने की बोर्ड को वह एक तोप या मिसाइल लांचर की तरह उपयोग कर अपने पाठ कहीं भी बम या मिसाइल की तरह पहुंचा सकता है। ब्लाग स्पाट या वर्डप्रेस के ब्लाग किसी भारतीय की संपत्ति नहीं है इसलिये पूरा हिंदी ब्लाग जगत किसी एक का बंधुआ बनने की संभावना नहीं है। जहां तक आर्थिक उपलब्धियों का प्रश्न है तो उसकी संभावना स्वतंत्र एवं मौलिक लेखकों के लिये इस समय लगभग नहीं के बराबर है। फिर जो इस समय लिख रहे हैं वह संभवतः आत्मनिर्भर हैं और शौकिया तौर पर ही यहां सक्रिय हैं। जब उनमें से कुछ लोग प्रसिद्धि पा लेंगे तो संभावना है कि बाजार उसका लाभ उठाना चाहे-उसमें भी इस देश से अधिक विदेश से ही संभावना है क्योंकि देशी बाजार के लिये हिंदी लेखक कोई मायने नहीं रखता, अगर स्वतंत्र और मौलिक है तो बिल्कुल नहीं। अनुवाद टूलों के जरिये हिंदी की रचनायें अन्य भाषाओं में पढ़ी जा रही हैं और हिंदी में मौलिक और स्वतंत्र लेखकों के प्रसिद्ध होने का यही एक मार्ग दिखता है। यही वह मार्ग है जहां हिंदी प्रकाशनों और संस्थानों के कर्णधारों की इच्छा और सहयोग के बिना हिंदी लेखकों का प्रसिद्धि के शिखर पर जाने का अवसर मिल सकता है।

हो सकता है कि कुछ लेखक पुरानी प्रवृत्ति के चलते अंतर्जाल पर सक्रिय आर्थिक और सामाजिक शक्तियों के केंद्र बिन्दू में स्थित लोगों की चाटुकारिता करते हों और उनको लाभ भी मिले पर इसका आशय यह बिल्कुल नहीं है कि स्वतंत्र और मौलिक लेखकों के लिये कोई संभावना नहीं है। कई मायनों में स्वतंत्र और मौलिक लेखकों को तो एक नया खुला आकाश मिला है विचरण करने के लिये-जहां वह अपनी कविताओं, कहानियों और हास्य व्यंग्यों को कबूतर की तरह उड़ाने के लिये जिससे उनका नाम भी चमकता नजर आयेगा। जो कथित रूप से गुटबाजी में व्यस्त हैं उनके लिये तो सीमित संभावनायें रहेंगी पर जो स्वतंत्र और मौलिक रूप से लिखने वाले हैं उनके लिये प्रसिद्धि के मोती प्रदान करने वाला विशाल सागर है।

ऐसे में स्वतंत्र लेखक अंतर्जाल की व्यापाकता के साथ बाहर मौजूद प्रकाशनों और संस्थाओं की सीमित उपलब्धियों को समझें। वहां सीमित उपलब्धियां थी और इसलिये उनमें से अपना भाग पाने की प्रतियोगिता ने वहां गुटबाजी पैदा की जिससे हिंदी साहित्य में बेहतर लेखक और रचनाओं का लगभग टोटा पड़ गया। अंतर्जाल पर अपनी सक्रियता को अपना भाग्य मानते हुए स्वतंत्र और मौलिक लेखक अपने रचनाकर्म से जुड़े रहें और कथित गुटबाजी देखने में वह अपनी ऊर्जा को नष्ट करना उनके लिये ठीक नहीं है। वह स्वयं ही लेखक, संपादक और प्रकाशक हैं और उसी स्वाभिमान के अनुरूप उनको व्यवहार करना चाहिये। जो लोग ऐसा नहीं करते और निरंतर गुटबाजी पर ही दृष्टिपात करते हैं उनको यह बात समझ लेना चाहिये कि इस स्वतंत्र आकाश में उनको पुरानी गुलाम मानसिकता का प्रतीक माना जा सकता है।
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22 मई 2009

गुस्से ने हास्य कवि बनाया-हास्य कविता (hasya kavita)

हास्य कवि ढूंढ रहा था
कोई जोरदार कविता
मिल गयी पुरानी प्रेमिका
जिसका नाम भी था कविता।

उसे देखते ही चहकते हुए वह बोली
‘’अरे, कवि
तुम भी अब बुढ़ाने लगे हो
फिर भी बाज नहीं आते
हास्य कविता गुड़गुड़ाने लगे हो
शर्म नहीं आती
पर मुझे बहुत आती
जब पति के सामने
तुम्हारे पुराने प्रेम का किस्सा सुनाती
तब वह बिफर कर कहते हैं
‘क्या बेतुके हास्य कवि से इश्क लड़ाया
मेरा जीवन ही एक मजाक बनाया
कोई श्रृंगार रस वाला कवि नहीं मिला
जो ऐसे हास्य कवि से प्रेम रचाया
जिसका सभी जगह होता गिला
कहीं सड़े टमाटर फिकते हैं
तो कहीं अंड़े पड़ते दिखते हैं’
उनकी बात सुनकर दुःख होता है
सच यह है तुम्हारी वजह से
मैंने अपना पूरा जीवन ही नरक बनाया
फिर भी इस बात की खुशी है
कि मेरे प्यार ने एक आदमी को कवि बनाया’

उसकी बात सुनकर कवि ने कहा
‘मेरे बेतुके हास्य कवि होने पर
मेरी पत्नी को भी शर्म आती है
पर वह थी मेरी पांचवी प्रेमिका
जिसके मिलन ने ही मुझे हास्य कवि बनाया
प्रेम में गंभीर लगता है
पर मिलन मजाक है
यह बाद में समझ आया।
गलतफहमी में मत रहना कि
तुमने कवि बनाया।
तुम्हारे साथ अकेले नहीं
बल्कि पांच के साथ मैंने प्रेम रचाया।
तुम्हारी कद काठी देखकर लगता है कि
अच्छा हुआ तुमसे विरह पाया
कहीं हो जाता मिलन तो
शायद गमों में शायरी लिखता
जिंदगी का बोझ शेरों में ढोता दिखता।
भले ही घर में अपनी गोटी गलत फिट है
पर हास्य कविता कुछ हिट है
दहेज में मिला ढेर सारा सामान
साथ में मिला बहुत बड़ा मकान
जिसके किराये से घर चलता है
उसी पर अपना काव्य पलता है
तुमसे भागकर शादी की होती
तो मेरी जेब ही सारा बोझ ढोती
तब भला कौन सुनता गम की कविता
पांचवीं प्रेमिका और वर्तमान पत्नी भी
कम नहीं है
पर उसके गुस्से ने
मुझे हास्य कवि बनाया

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16 मई 2009

इन्सान की आस्तीन में-व्यंग्य कविता

आस्तीन के सांप ने
डसकर परंपरा निभाई.
वह भी इंसान है
यह बात समझाई
सच यह है कि किसी सांप ने
इंसान की आस्तीन में
कभी अपने बस्ती नहीं बसाई.
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चेहरा छिपाने के लिए
दिन में पहनकर निकलते हैं नकाब.
उजालों से डरने वालों को
रात का अँधेरा शेर बना देता है ज़नाब!
लुट जाने का डर
उनको भी सताता है
घरों के बाहर पहरा सजाया जाता है
भले होते वह, चोरों के नवाब.
इसलिए अपने लुट जाने की शिकायत को
कोई बड़ा सवाल न समझो
जिसका चाहिए जवाब.
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13 मई 2009

पर्दे के पीछे राज नहीं गहरा-हिंदी शायरी

हमने गीत गुनगुनाया
सोचा था किसी ने नहीं देखा
न ही सुना
तन्हाई में अपना दिल कुछ इसी तरह बहला रहे थे।

कुछ देर बाद
ऐसा लगा कि पर्दे के उस पार
कोई दोहरा रहा है वही गीत
उसके सुरों में जैसे बसा था संगीत
कोई चेहरा हमने नहीं देखा
पर था पर्दे के पीछे कोई साया
जिसके कान लगे थे हमारी आवाज पर
उसकी आंखों घूर रही थी हमें
बसा लिये जुबान पर हमारे शब्द
वह अब उसका दिल बहला रहे थे।
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पर्दे के पीछे छिपाए रहो चेहरा
बिठाये रखो हमारी नजर पर पहरा।

पर तुम देखते हो
हमारे शब्द सुनते हो
गुनते हो तुम उनको
तुम्हारी अदाओं को नहीं देखा
पहचान की खींची नहीं तुमने कोई रेखा
पर तुम्हारी सांसों और सुर से
निकलती हुई हवायें
पर्दे से बाहर आकर देती हैं तुम्हारा पता
सच तो यह है कि
तुम नहीं हो अब कोई राज गहरा।

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11 मई 2009

दिल का चैन-लघुकथा

वह युवक गरीब था तब संत के पास जाता था। वह उनके यहां आश्रम की साफ सफाई करता और फिर अपने काम पर चला जाता था। अक्सर वह संत से अपने लिये आशीर्वाद मांगता और कहता था कि ‘आप आशीर्वाद दें तो मेरे पास ढेर सारा पैसा और संपत्ति आ जाये।
संत ने कहा‘तुम क्या इसलिये ही इस आश्रम की सेवा करते हो?’
युवक ने पूरी ईमानदारी से कहा-हां, मेरा उद्देश्य तो यही है कि ढेर सारी संपत्ति आये। इसलिये ही सर्वशक्तिमान का दर्शन करने आपके यहां आता हूं। किराये का मकान है, पटरी पर सामान लगाकर बेचता हूं। पता नहीं नीली छतरी वाला मेरी कब सुनेगा?
संत ने कहा-‘चिंता मत करो। वह सभी को अवसर देता हैं।
युवक ने निराशा में कहा-‘पता नहीं कब सुनेगा?’
संत ने हंसकर कहा-‘जब तुम्हारे सामने अवसर आयेगा तो नीली छतरी वाला आवाज नहीं देगा। चुपचाप तुम्हारे लिये रास्ता खोलता जायेगा।’
युवक चला गया। समय ने पलटा खाया। वह अधिक धन कमाने लगा। वह इतना व्यस्त हो गया कि उसने आश्रम में जाना ही छोड़ दिया। कुछ बरस बाद वह एक दिन सुबह वैसे ही उस आश्रम पहुंचा और झाड़ू लगाने लगा।
संत ने उसे देखकर आश्चर्य जताया और कहा-‘क्या बात है? इतने बरसों बाद तुम यहां आये हो? सुना है कि बहुत बड़े सेठ बन गये हो।’
हां उसने कहा-‘बहुत धन कमाया। बच्चों की अच्छे घरों में शादी की। पैसे की कोई कमी नहीं। ढेर सारे रिश्ते बन गये हैं पर ऐसा लगता है कि सभी पैसे के लिये रिश्ता निभा रहे हैं। बहुत संपत्ति है पर दिल में चैन नहीं है। ऐसा लगता था कि यहां रोज मंदिर आता रहूं पर आ नहीं सका। आज तय किया कि यहीं आकर मुझे चैन मिल सकता है। वह धन दौलत तो बस दिखावा है। नीली छतरी वाले ने सब दिया पर जिंदगी का चैन नहीं दिया।
संत के कहा-‘पर तुमने वह उससे मांगा ही कब था। वैसे तुम भी तो सर्वशक्तिमान की इस आश्रम की सेवा धन मांगने के लिये कर रहे थे तो फिर दूसरों को क्यों दोष देते हो?जो तुमने मांगा था वह मिल गया। फिर अब फिर इस आश्रम की सेवा करने क्यों आ गये? करो, हो सकता है कि दिल चैन भी मिल जाये। हम तो तुम्हें न पहले रोकते थे न अब रोकेंगे। न पहले कुछ मांगा था न अब मांगेंगे।’
उसने उदास होते हुए उनके चरणों में माथा टेक दिया और कहा-‘अब कुछ मांगने के लिये यहां सेवा नहीं करूंगा। बस दिल को शांति मिल जाये।’
संत ने कहा-‘पहले यह तय करो कि कुछ मांगने के लिये आश्रम की सेवा नहीं करोगे या बदले में दिल की शांति चाहिये। सच तो यह है कि चाहे कुछ भी मांगने से मिल जाये पर दिल का चैन नहीं मिलता। इसलिये पहले वाले ही रास्ते पर चलो कि सेवा के बदले कुछ मांगना नहीं है।’
वह उदास भाव से संत को देखने लगा और फिर बोला-‘मुझे कुछ नहीं चाहिये। बस मुझे सेवा करने दीजिये।’
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7 मई 2009

कायदों में बंधी आजादी गुलामी से बुरी नज़र आती है-हिंदी शायरी

नजरें फेरकर वह चले जाते हैं।
देखने में लगते हैं हमसे बेपरवाह
पर हकीकत यह है कि
हमारी आंखों में उनको अपने
पुराने सच दिखते नजर आते है।
हम तो भूल चुके उनके पुराने कारनामे
पर उनकी नजरें फेरने से
फिर वही यादों मे तैर जाते हैं।।
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कुछ हकीकतें बयां करने में
कलम कांप जाती है
इरादा यह नहीं होता कि
किसी कि दुःखती रग सभी को दिखायें
जरूरत पड़ी तो उनका नाम भी छिपायें
पर खौफ जमाने का जिसकी
रिवाजों पर उठ सकती है उंगली
कही लोग भड़क न जायें
कायदों में बंधी आजादी
तब गुलामी से बुरी नज़र आती है।
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5 मई 2009

इतिहास में नाम दर्ज करवाने के लिये-तीन व्यंग्य क्षणिकाएँ

इतिहास में नाम दर्ज करने की
अपनी ख्वाहिश पूरी करने के लिये
वह किसी भी हद तक जाऐंगे।
कहीं जिंदा आदमी भूत बनाकर सजायेंगे
तो कहीं भूत को ही फरिश्ता बतायेंगे।।
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चांदी के कप की खातिर
खेल में बन जाता है जंग का मैदान।
जीतने वाले की कद्र
उसके कारनामों से नहीं
चांदी से बढ़ती है शान।
पता नहीं किस पर सीना फुलाता है वह
अपने पसीने और घावों पर
या चांदी की चमक पर होकर हैरान।
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पांव हैं जमीन पर
किन्तु आकाश की तरफ है ध्यान।
जमीन से कोई सोना उगकर
पेट में नहीं जाता
सिर पर सजाने के लिये
कोई हीरा ऊपर से नहीं आता
दो पाटों की चक्की में
यूं ही पिस जाता है इंसान।

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2 मई 2009

लिखते रहने का प्रयास करना ही बेहतर-आलेख

इस लेखक के वर्डप्रेस के एक ब्लाग द्वारा पचास हजार पाठ/पाठक संख्या पार करने पर बस इतना ही कहा जा सकता है कि ‘यह सफर दिलचस्प है’। यह भी कहा जा सकता कि यह संख्या बहुत कम है पर यह ब्लाग आगे बढ़ता जा रहा है इसमें संदेह नहीं है कि इसकी लोकप्रियत आगे भी बढ़ेगी।
मुख्य बात यह है कि इस ब्लाग को पच्चीस हजार की पाठ/पाठक संख्या के बाद हिंदी के ब्लाग एक जगह दिखाने वाले फोरमों से समर्थन मिलना इसलिये बंद हो गया था क्योंकि एक मुख्य फोरम से इसे हटवा लिया गया। हटाने की जो उद्देश्य था वह आज पूरा हो गया इससे यह आत्मविश्वास इस लेखक में आ गया है कि अगर अपने ब्लाग पर नियमित रूप से लिखा जाये तो लोकप्रियता का पैमाना स्वतः बढ़ता रहेगा।

इस लेखक का यह पहला ब्लाग जिसने यह संख्या पार की है और गूगल पेज रैंक में इसे 4 का अंक हासिल हो गया है जो ठीकठाक माना जाता है-कुछ बुद्धिमान ब्लाग लेखक ऐसा ही कहते हैं। इस लेखक के 22 ब्लाग सक्रिय हैं जिनमें से 9 वर्डप्रेस पर हैं। एक रणनीति के तहत ब्लाग स्पाट के 13 ब्लाग पर यह लेखक लिखता है और उसमें से चुनींदा रचनायें इन वर्डप्रेस के ब्लाग पर रखता हैं। मुख्य हिंदी फोरम से इसलिये हटावाया गया था क्योंकि वहां ब्लाग लेखकों की आमद अधिक है और उनको रचनाओं का दोहराव न लगे। दूसरा यह देखने के लिये कि वर्डप्रेस के ब्लाग ब्लाग स्पाट के ब्लाग से इतनी अधिक पाठक संख्या किस तरह जुटाते हैं इसका अध्ययन किया जाये। अनेक बार सवाल करने के बावजूद तकनीकी ब्लाग लेखक इस बात की जानकारी नहीं दे पाये कि ऐसा क्यों हो रहा है कि कोई पाठ अगर ब्लाग स्पाट पर लिखा जाता है तो उसको पाठकों का टोटा रहता है और वही अगर वर्डप्रेस पर प्रकाशित होता है तो उसकी संख्या कई गुना बढ़ जाती है।
कई तरह के संशय और अनुमान हैं पर इनमें एक सच यह है कि यह इस लेखक का सबसे लोकप्रिय ब्लाग है। यह बना ही प्रयोग के लिये था और हमेशा ही प्रायोगिक ही बना रहा। यह ब्लाग तब बनाया गया जब ब्लाग लेखक को यूनिकोड फोंट का पता नहीं था। अपने ही कंप्यूटर में मौजूद यूनिकोड के सहारे देव फोंट मेें लिखकर इस पर प्रकाशित करने पर इस लेखक को पढ़ने में आ जाता पर पाठकों की समझ में नहीं आता था। यह लेखक भी इस जिद में था कि किसी भी हालत में वह अपनी ही चलायेगा चाहे जो भी हो। इसी दौरान पता नहीं कैसे ब्लाग स्पाट के हिंदी टूल पर नजर पड़ गयी और वहां कवितायें टाईप कर इसी ब्लाग पर लिखी। वह कविता बहुत कठिनाई से टाईप हुईं थी पर यह तय था कि वह पाठकों के पढ़ने मेें आने वाली थी पर लेखक की उसमें बिल्कुल रुचि नहीं थी। अंग्रेजी टाईप का ज्ञान इस लेखक को था पर गति कम थी। तब सोचा कि चलो एक ब्लाग उन लोगों के लिये चलायेंगे जिनके कंप्यूटर में देव फोंट नहंीं है। यह भी भ्रम था कि जिन लोगों के पास देव फोंट हैं वह तो इसे पढ़ लेंगे। तकनीकी अफरातफरी के बीच इस पर डाली गयी कविता पर एक टिप्पणी तत्काल आ गयी। टिप्पणीकर्ता ब्लाग लेखिका अब नहीं दिखती पर उसकी टिप्पणी से यह आभास हो गया कि अगर इसी तरह लिखेंगे तो कोई पढ़ पायेगा। शायद वह कोई छद्म ब्लाग लेखिका रही होगी और संभव है वह अब भी टिप्पणियां लिखती होगी और यह लेखक उसे नहीं पहचानता होगा।
इस लेखक के 22 ब्लाग/पत्रिकाओं में से तीन लोकप्रिय ब्लाग/पत्रिकाओं में यह एक है और इसको चुनौती देने वाला एक ब्लाग भी वर्डप्रेस पर ही है। मजे की बात यह है कि इसको चुनौती आध्यात्मिक विषयों के ब्लाग से ही मिल है जबकि यह ब्लाग मिश्रित विषयों से संबद्ध है। पिछले कुछ दिनों से इस ब्लाग/पत्रिका पर लिखने में यह लेखक उपेक्षा कर रहा था पर जब गूगल पेज रैंक में इसका स्थान देखा तो तय किया कि इसको लेकर अब आगे बढ़ेंगें।
वैसे देखा जाये तो इस लेखक ने लोकप्रियता पाने के दौड़ में स्वयं को शामिल नहीं माना क्योंकि वह जानता है कि प्रचार पाने के लिये केवल लिखना ही पर्याप्त नहीं है। जिनके पास प्रचार के द्वारा किसी को लोकप्रियता दिलाने की शक्ति है उनके दरवाजे ढेर सारे लोगों की लाईन लगी है और उनके पास इतना समय नहीं है कि वह एक ऐसे लेखक के ब्लाग पर नजर डालें जो उनके दरवाजे पर लगी भीड़ देखकर भाग जाता हो। हिंदी में पढ़ने वाले और लिखने वाले बहुत हैं पर उनके बीच में संपर्क कराने वाली जो कड़ियां हैं उनका अपना एक स्वभाव है जिन पर यहां चर्चा करना ठीक नहीं है। वैसे लोकप्रियता सभी को हजम नहीं होती पर सभी उसके लिये प्रयास करते हैं। हिंदी में लिखने से जल्दी लोकप्रियत नहीं मिलती। इसका एक कारण है कि हिंदी में अनुवादकों के लिये एक रोजगार का बड़ा स्तोत्र है। आपने देखा होगा कि किसी भी विशेष प्रसंग पर अंग्रेजी के ब्लाग की चर्चा होती है। उसका विषय अनुवाद कर हिंदी में सुनाया जाता है। ब्लाग का नाम और पता दोनों दिया जाता है। सभी को यह पता है कि इस देश में केवल दो प्रतिशत लोग अंग्रेजी जानते हैं इसलिये ब्लाग का पता देने में कोई बुराई नहीं है। अगर कोई खोलेगा तो पढ़ेगा क्या खाक? वह ब्लाग खोले अपनी बला से! उसका अनुवाद तो पहले ही टीवी चैनल पर पढ़कर या पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित किया जाता है। यहां एक बात याद रखने वाली बात है कि चाहे अंग्रेजी ब्लाग कितना भी अच्छा हो उससे पाठक नहीं मिल सकते अगर उसका प्रचार नहीं किया जाये। जिन अंग्रेजी ब्लागों को फिल्म, क्रिकेट या अन्य की वजह से लेाकप्रियता मिली वह केवल प्रचार की वजह से ही मिली है। सच बात तो यह है कि हिंदी ब्लाग जगत में कुछ ब्लाग लेखक ऐसे हैं कि अगर उनकी चर्चा हो तो उनकी पाठक संख्या तो लाखेां में पहुंच सकती है क्योंकि उनके जैसे लिखने वाले बाहर नहीं दिखते। इतना ही नहीं जिन अंग्र्रेजी ब्लाग को तात्कालिक सफलता मिली वह बाद में बैठ गये या बैठ जायेंगे मगर हिंदी के ब्लाग लेखकों का लिखा देखकर तो ऐसा लगता है कि वह निरंतर उस पर बढ़ते जायेंगें। शायद यही कारण है कि हिंदी ब्लाग जगत को प्रतिस्पर्धी मानकर उन ब्लाग लेखकों को प्रचार में स्थान नहीं मिल रहा है।
ऐसी स्थिति में गूगल और वर्डप्रेस का आभार व्यक्त करना चाहिये कि उन्होंने देश के परेशान और हैरान हिंदी लेखकों को वह मंच प्रदान किया जो देश की कोई संस्था नहीं प्रदान कर सकी।
वैसे भी यह सच है कि इस देश में हिंदी ब्लाग/लेखक के नाते इससे अधिक लोकप्रियता की आशा करनी भी नहीं चाहिये। यही क्या कम है कि देश के प्रतिष्ठत ब्लाग लेखक इस लेखक का नाम भी जान रहे हैं। ढाई वर्ष हो गये अंतर्जाल पर लिखते हुए पर किसी ने अधिक ध्यान नहीं दिया और न ही इसकी संभावना है क्योंकि सर्च इंजिन से आये लोग पढ़ने के बाद फिर देाबारा नहीं आते। आते हैं तो उनकी दिलचस्पी लेखक के नाम में कम पाठ में अधिक रहती है। लब्बोलुआब यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर किसी उपलब्धि की संभावना नगण्य है पर इसमें बस एक ही पैंच है वह यह कि गूगल का अनुवाद टूल कहीं इस लेखक के ब्लाग/पत्रिकाओं को आगे तक ले गया और धोखे से कही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम हो गया तब इस देश में भी लोग नाम जानने लगेंगे। हिंदी के ब्लाग अंग्रेजी में पढ़े जाने पर ही ऐसी संभावना बनती है।
लिखने का बहुत मजा है। जहां आदमी लिखने का मजा नहीं लेता वहां मजेदार लिख भी नहीं सकता। लिखने का मजा भी तभी ले सकता है जब वह पढ़ता हो। आखिरी बात यह है कि आगे हिंदी में लिखा लोकप्रिय होने वाला है और वह भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर! अनुवाद टूलों पर पाठकों की बढ़ती संख्या से यही आभास होता है। ऐसे में अपने पास गूगल पेज रैंक में 4 का अंक प्राप्त एक नहीं बल्कि तीन ब्लाग/पत्रिकायें जिस लेखक के पास हों उसे लोकप्रियता की चिंता करने की बजाय इस बात पर विचार अधिक करना चाहिये कि वह उसे बचाये कैसे रखे? तय बात है कि जब लिखने से ही यह हासिल हुआ है तो उसका आगे का रास्ता भी ऐसा ही जायेगा। वैसे भी जो लिखने वाले लोकप्रियता के पीछे भागते हैं वह मिल जाने पर उनकी हवा निकल जाती है और जो परवाह नहीं करते वह लिखते जाते हैं। तय रणनीति के अनुसार ब्लाग स्पाट के ब्लाग/पत्रिका पर यह पाठ लिखकर ही वर्डप्रेस के इस ब्लाग/पत्रिका पर प्रकाशित किया जा रहा है ताकि अपने उन ब्लाग लेखक मित्रों को विश्लेषण करने में सुविधा हो जिनकी इसमें रुचि हो। इस अवसर पर अपने ब्लाग लेखक मित्रों और पाठकों धन्यवाद करते हुए यह वादा किया जाता है कि अपनी बेहतरीन रचनायें इस ब्लाग पर प्रस्तुत करने का निरंतर प्रयास किया जायेगा।
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यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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