20 मई 2011

समाज सेवा और धोखे के गुर-हिन्दी शायरी (samaj seva aur dhokhe ke gur-hindi kavita)

समाज सेवा के धंधे में
वही लोग आते हैं,
जिनको लूटने के साथ ही
धोखे देने के गुर आते हैं।
फरिश्तों का बना लेते वेश
गुरु जिनका शैतान होता
नीयत जिनकी काली
चेहरा मेकअप से सजाते हैं।
‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘
दौलत की दौड़
जेल के सींखचों के पीछे तक जाती है,
जरूरी नहीं है कि
सभी बेईमान फंदे में फंस जायें
मगर सवैशक्तिमान की
नज़रें जिन पर हों जायें टेढ़ी
तो जिन हाथों में नोट सजते हैं
हथकड़ियां भी कभी पड़ जाती हैं।
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लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior

14 मई 2011

मूर्तियों में अमरत्व-हिन्दी हास्य कविता (murtiyon mein amartva-hindi hasya kavita)

समाजसेवक जी पहुंचे
अपने गुरु के पास और बोले
‘‘गुरुजी,
बरसों से समाज सेवा का स्वांग रचाया,
खूब कमाई की
मेरा घर महल जैसा हो गया
तो आपका आश्रम भी
फाइव स्टार जैसा सजाया,
मगर यह कमबख्त
जीते जी अमर होने की इच्छा
कभी पूरी न कर पाया,
उसके लिये गरीबों का भला
करते हुए मरना जरूरी है,
पर आप जानते हैं कि
मेरी जिंदगी परिश्रम से कितनी दूरी है,
फिर मैं अमरत्व का सुख
जीते जी देखना चाहता हूं
इसका कोई उपाय मुझे नजर नहीं आया।’

सुनकर मुस्करायें गुरुजी
और बोले
‘‘भईया,
अगर अमरत्व पाना है
तो जरूरी यहां से मरकर जाना है,
फिर भी अमरत्व का सुख भोगना है
तो अपने सभी कार्यालयों में
अपनी मूर्तियां स्थापित करवाओ,
चंदे में आया पैसा उस पर खर्च करो
बैंक खाते भरने की इच्छा से मुक्ति पाओ,
अपने जन्म दिन पर
हर साल केक काटा करो,
बाकी सारे काम को टाटा करो,
अमरत्व का सुख अपने जीते जी भोगने का
यही उपाय हमारी समझ में आया,
बाकी यह बात तय है कि
मरने के बाद कोई तुमको याद करे
ऐसा कोई काम तुम्हारे हाथ से होकर
हमारे सामने नहीं आया।’’
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior

1 मई 2011

हास्य कविताएँ -कल्याण का ठेका (hasya kavitaen-kalyan ka theka)

चेले ने कहा गुरु से
‘‘इस समय चारों तरफ
काले धन के विरुद्ध
अभियान चल रहा है,
आप भी इसमें शामिल होकर
अपने आश्रम और हम जैसे चेलों
का रुतवा बढ़ाओ
यह विचार मेरे दिमाग में पल रहा है।’

सुनकर गुरुजी बोले
‘‘मुझे तेरी जन्म कुंडली
देखकर अपने दल में शामिल करना था,
तेरे ख्याल देखकर
अपने आश्रम में तुझे भरना था,
धंधा नहीं तेरा कोई भी
फिर भी रोज पीता है शराब,
क्या जानता है उसका पैसा कहां से आता है
स्वच्छ है कि खराब,
नित नित नये चमकदार कपड़े भेंट मे जो तू लाता है,
कभी समझ में आयी है यह बात तुझे कि
अपने भक्तों में किसके पास सफेद और
किसके पास काला धन आता है,
ज्यादा चक्कर में नहीं पड़ना,
फंस जायेगा वरना,
अभी तक लोगों की नज़र अपने से दूर है,
कहीं छपने लगे रोज अखबार में तो
समझ लो आगे अपनी जांच होना भी जरूर है।
सफेद धन तो बस, गरीबों के पास ही होता है,
जिनका धर्म से नहीं नाता
आत्मा जिनका पेट भरकर ही सोता है,
ज्यादा आंदोलन के चक्कर में
पड़े तो दानदाता नाराज हो सकते हैं
तब काले धन के बिना
हम लोग ही बेरोजगार हो जायेंगे,
जल्दी आश्रम को भी अतिक्रमण विरोधी अभियान से
ध्वस्त पायेगे,
हमें अपने वातानुकूलित आश्रम में रहना चाहिए
क्या करना शहर बेईमानी की आग में जल रहा है।’’
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मुर्दे के कफन से भी
वह टुकड़ा चुरा लाते हैं,
बच्चे के मुख की रोटी छीनकर
अपना बैंक बढ़ाते हैं,
कमबख्त!
कल्याण का ठेका उन्हीं का नाम चढ़ता है
जो बेईमानी के ढंग सीख जाते हैं।
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लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior

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