24 जून 2011

रिश्ते, रोटी और इंसान-हिन्दी क्षणिकायें (rishtey,roti aur insan-hindi short poem)

नाम के हैं सभी रिश्ते
कुछ लोग हक जताते
कुछ निबाहते हुए पिसते।
----
किसी को सूखी रोटी की तलाश है
किसी को धी से चुपड़ी की आस है,
इंसान का पेट भर गया एक वक्त
फिर अगले वक्त की होती तलाश है।
------------
जो इंसान औलाद से
हथियारों की तरह खेलते है,
वही उनको दौलत की जंग में
बिना अक्ल के हथियार लिये ठेलते हैं।
कोई कोई बनता सिकंदर का बाप
कोई कोई बदनामी की सजा भी झेलते हैं।
-------------

लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior

writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior



18 जून 2011

भक्ति और दौलत-हास्य कविता (bhakti aur daulat-hindi hasya kavita)

दादा ने कहा पोते से
"बड़ा होकर तू
अपने बाप की तरह नौकरी नहीं करना,
दूसरे की चाकरी में जाएगी ज़िंदगी वरना,
बन जाना कोई कारखानेदार,
कहलाएगा इज्जतदार,
इस तरह तेरे साथ
तेरे बाप के साथ मेरा भी
नाम रौशन   हो जाएगा।"

सुनकर पोता हंसा
"क्या बात करते है आप
उद्यमियों की क्या औकात
लोग कर रहें संतों और साधुओं का जाप,
अपने शायद सुना नहीं
उद्योपातियों से अधिक दौलत
अब साधू संतों के पास पायी जाती है,
दौलतमंदों को चोर मानती जनता
भक्ति के व्यापार में
सोने के शिखर पर चढ़े
कथित संतों की  छवि
समाज में ऊंची पाई जाती है,
मैं सोच रहा हूँ
आपसे कुछ ज्ञान प्राप्त करूँ,
फिर संत का वेश धरूँ,
पैसा भी होगा
प्रतिष्ठा भी होगी,
इससे आपका वंश
सदियों तक याद किया जाएगा।

लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior

writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior



12 जून 2011

बाबा रामदेव के योग शिविर शीघ्र प्रारंभ होने की कामना-हिन्दी लेख (baba ramdev ke yog shivir shighra praranbh hone ki kamna-hindi lekh)

         यह अच्छी बात है कि बाबा रामदेव ने अंततः संत समुदाय के कहने पर अनशन का त्याग दिया। वह देश में भारत स्वाभिमान यात्रा करते रहे हैं। उन्होंने इस दौरान अपने योग शिविरों का उपयोग भ्रष्टाचार तथा कालेधन के मुद्दे पर भाषण देने के लिये भी किया। हमारे जैसे योग साधकों के लिये बाबा रामदेव एक योग प्रचारक के कारण हमेशा ही दिलचस्पी का विषय रहे हैं। यह बात तो उनके आलोचक भी मानते हैं कि योग के प्रचार में उनका योगदान बहुत महत्वपूर्ण है। जब बाबा ने राजनीतिक दल बनाने की घोषणा की तो यकीनन उनको आधुनिक लोकतंत्र व्यवस्था में विरोधियो का सामना करने के लिये तैयार होना चाहिए था। ऐसा लगता है कि वह योग शिविरों में अपनी जयजयकार के ऐसे अभ्यस्त हो गये हैं कि उनको इस बात का अनुमान नहीं था कि अंततः लोकतांत्रिक व्यवस्था में विरोधियों का सामने होना न केवल स्वाभाविक वरन् आवश्यक भी है।
       ऐसा लगता है कि स्वामी रामदेव ने भी राजनीति की तरफ कदम बिना किसी शास्त्र का अध्ययन किये ही बढ़ाया है। ऐसा ही दूसरे लोग भी कर रहे हैं अंततः कम से कम एक बात तय रही है कि राजनीतिक विषय पर वह आमजन जैसे ही हैं यह अलग बात है कि योग शिक्षा का अध्यात्म से जुड़े होने के कारण वह प्रसिद्धि हो गये और इसी कारण राजनीति उनके लिये सुविधाजनक हो गयी है। वह भले ही भारतीय अध्यात्म ग्रंथों की बात करते हैं पर लगता है कि कौटिल्य का अर्थशास्त्र तथा चाणक्य नीति का अध्ययन उन्होंने अभी नहीं किया है। इन महापुरुषों की रचनायें न केवल राजनीति बल्कि जीवन में सुचारु रूप से आगे बढ़ने का ऐसा संदेश देती हैं जिनकी सच्चाई उनको पढ़कर देखा जा सकता है। इनको पढ़कर सभी राजनेता बने यह जरूरी नहीं है पर जीवन में भी इनके मंत्रों का उपयोग कर सहज सफलता प्राप्त की जा सकती है। श्रीमद्भागवत गीता, पतंजलि योग साहित्य, कौटिल्य का अर्थशास्त्र और चाणक्य नीति ऐसी पावन रचनायें हैं जिनके अध्ययन से राजनीति ही नहीं वरन् जीवन के गूढ़ रहस्यों का भी पता चलता हैं।
        बाबा रामदेव अभी अपने अध्यात्मिक ग्रंथों के ज्ञान से बहुत परे दिखते हैं। इन नौ दिनों में बाबा रामदेव के व्यक्त्तिव की पूरी गहराई का पता लग गया है। अभी तक योग तक ही सीमित होने के कारण वह देश के अनेक ऐसे योग साधकों और लेखकों के भी वह प्रिय रहे थे जो उनके शिष्य नहीं है। उस समय तक बाबा का व्यक्त्तिव उनके आभामंडल तथा लोगों के विश्वास के कारण ढंका हुआ था। अब इन नौ दिनों में बाबा रामदेव टीवी चैनलों और अखबारों में इतने छाये रहे हैं कि उनके वह समर्थक जो निष्पक्ष योग साधक और बुद्धिजीवी हैं उनके साथ जुड़े घटनाक्रमों के दौरान अन्य लोगों की क्रियाओं से अधिक स्वामी रामदेव पर अपना ध्यान केंद्रित किये हुए थे। बाबा रामदेव का चेहरा के हावभाव, हाथ पांव की क्रियायें और वाणी के स्वरों का अध्ययन वह लोग करते रहे जो उनके साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नहीं जुड़े हैं। इनमें से अनेक निराश भी हुए होंगे तो कुछ लोगों के चिंतन में बदलावा भी आया होगा।
         इंटरनेट पर बाबा रामदेव को हमेशा ही बहुत समर्थन मिला मगर अब शायद इसकी संभावना नहीं लगती। ऐसे में इंटरनेट पर सक्रिय एक दो ऐसे ब्लाग लेखकों के पाठ याद आ रहे हैं जो बाबा की योग शिक्षा पर तमाम तरह की प्रतिकूल टिप्पणियां करते थे। उससे भी अधिक वह उनके बाज़ार और प्रचार के मुखौटे होने का आरोप भी लगाते थे। इतना ही नहीं उनकी योग शिक्षा के प्रमाणिक होने पर भी सवाल उठाते थे। कुछ लोग उनके विरुद्ध कड़ी टिप्पणियां लिखते तो कुछ उनको समझाते। कुछ तो उनको धमकाते भी थे। इसके अलावा कुछ लोग उनकी उपेक्षा भी करते थे कि वह तो उनकी आलोचना करने वाले ही ठहरे। इन नौ दिनों में उन ब्लाग लेखकों की आलोचना में दम दिखने लगा। अब यह अलग बात है कि उस समय बाबा की योग शिक्षा के बाज़ार और प्रचार से प्रायोजित होने की बात यह सोचकर छोड़ दी जाती थी कि आखिर कोई व्यक्ति तो है जो भारतीय योग विधा का प्रचार कर रहा है। अंग्रेजी पद्धति के इलाज की आलोचना करने वाले बाबा रामदेव को अपने हठ की वजह से आखिर उस अस्पताल में जाना पड़ा जहां उसी पद्धति के चिकित्सक थे। इसी पद्धति से उनके अंदर भोजन की कमी को पूरा किया गया। उनकी देह के अनेक नकारात्मक पक्ष सामने आये। ऐसे में जब भारतीय योग पद्धति पर सवाल उठे तो चिंता हुई पर टीवी चैनलों पर कुछ योगाचार्यों ने आकर उसका बचाव किया और तय बात है कि उनको बाबा रामदेव की योग शिक्षा पर सवाल उठाने ही थे। उन योगाचार्यों की बात से इसका आभास तो हो गया कि उन्होंने पतंजलि योग का न केवल अध्ययन किया बल्कि उनका अभ्यास भी अच्छा है। एक महिला योगाचार्य ने बताया कि भारतीय योग के अनुसार प्रयास रहित आसन और प्राणायाम होते हैं। सांस सहजता से ली और छोड़ी जाती है। आसन करते समय अपना ध्यान अंदर चक्रों पर केंद्रित किया जाता है। उछलकूद वाले आसन भारतीय योग का भाग नहीं है। बाबा की योग शिक्षा के दौरान आसन और प्राणायाम के कराते समय ध्यान को अनदेखा किया जाता है।
        बाबा को कई बार अपने आसानों के दौरान हांफते हुए देखा जाता है जो कि नियमित अभ्यासरत योगाभ्यास करने वालों के लिये पीड़ादायक दृश्य होता हेै। हमने यह बात पहले भी लिखी थी कि जब बाबा के साथ जब एक योगाभ्यासी होता और बाबा आसन बोलते जाते थे और वह करता था तब ही तक सब ठीक था। बाद में पता लगा कि वह बाबा का गुरुभाई था जिसे उन्होंने हटा दिया। उस समय ऐसा लगा कि मतभेदों के कारण हटाया गया होगा पर अब लगता हैं कि बाबा अपने को एक सक्रिय सन्यासी साबित करने के लिये स्वयं ही योगासन करते दिखते हैं। वह आसन करने के बाद हांफते हुए बोलते हैं। यह योग साधना के विपरीत आचरण हैं। किसी भी तीव्रतर आसन करने के बाद शवासन या शिथिलासन करने का नियम है जिसका पालन वह नहीं करते। सच बात तो यह है कि वह योगासनों को व्यायाम की तरह बनाने में लगे हैं। टीवी चैनलों पर बाबा रामदेव की शिक्षा पर आलोचना करने वाले लोग योग साधना के अच्छे जानकार लगे इसलिये उनकी आलोचना को अनदेखा नहीं कर सकते।
      वैसे तो बाबा के विरोधियों ने भी यह कामना की है कि वह जल्दी लोगों को योगासन सिखाना शुरु करने योग्य हो जायें पर जिन लोगों की भारतीय योग साधना में दिलचस्पी है वह यकीनन बाबा रामदेव की योग शिक्षा पर सवाल उठायेंगे। इसका कारण यह है कि भारतीय योग विधा को जितना बाबा रामदेव ने प्रसिद्ध किया उतने ही सवाल उन्होंने अपने अनशन के दौरान उस पर उठने भी दिये। बाबा अपने भ्रष्टाचार और कालेधन विरोधी अभियान को जारी रखें या नही यह अब एक शुद्ध रूप से राजनीतिक विषय हो गया है। सामयिक लेखकों के लिये यह विषय बहुत दिलचस्प हो सकता है पर भारतीय योग साधना के लिये प्रतिबद्ध योगाचार्यों और साधकों के लिये अब यह जरूरी होगा कि वह योगासन, प्राणायाम और ध्यान के प्रमाणिक प्रचार के लिये प्रयास करें। दूसरी बात यह भी सिद्ध हो गया है कि देशभर में जितने भी योग शिक्षा के प्रसिद्ध आचार्य हैं वह कहीं न कहीं बाज़ार और प्रचार के शिखर पुरुषों से प्रायोजित हैं। उनकी प्रतिबद्धतायें प्रत्यक्ष रूप से भारतीय अध्यात्मिक प्रचार के लिये भले ही दिखती हों पर वास्तव में अपने उन प्रायोजकों के संकेतों पर ही काम करते हैं जिनका व्यवसाय भारतीय अध्यात्म में वर्णित वस्तुओं के निर्माण से है। त्वरित गति से पैसे, प्रतिष्ठा और पद-यथा महंत, स्वामी, बाबा, बापू,और आचार्य- के शिखर पर बैठने के लिये वह धर्मग्रंथों से कुछ श्लोक उठा लेते हैं और उसी आधार पर वह अपने धार्मिक अभियान पर चल पड़ते हैं जो कालांतर में पता लगता है कि किसी धनस्वामी के उत्पादों के-यथा दवा, चाय, च्यवनप्राश, शहद, पत्रिका, सौदर्य प्रसाधन तथा भोज्य पदार्थ- प्रचार के लिये था।
     हालांकि निराश होने वाली बात नहीं है। भारतीय योग संस्थान जैसे अनेक संगठन हमारे देश में हैं जो न केवल प्रमाणिक रूप से पतंजलि योग सूत्र के आठों अंगों का ज्ञान देने और अभ्यास कराने का काम निष्काम भाव से कर रहे हैं। अनेक योगाचार्य और शिक्षक भी निरंतर इस काम को जारी रखे हुए हैं। हम बाबा रामदेव के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करते हैं। एक सामान्य मौलिक स्वतंत्र लेखक तथा योग साधक होने के नाते हम तो यही चाहते हैं कि बाबा अपना योग शिक्षण अभियान जारी रखें। साथ ही यह भी बता दें कि योग शिक्ष से इतर उनकी गतिविधियों में उनके योगाभ्यास का अगर सकारात्मक परिणाम नहीं दिखता लोग उनकी योगशिक्षा में भी दोष ढूंढने लगेंगे जो अब तक नहीं हुआ था।
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior

4 जून 2011

स्वामी रामदेव की जीवन शेली आम नहीं है-हिन्दी लेख (swami ramdev ki jivan shaili aam nahin hai-hindi lekh)

         ले ही कोई इंसान बाबा रामदेव से निजी रूप से न मिला हो पर टीवी और अखबारों पर उनके साक्षात्कार तथा गतिविधियां पढ़कर उसे इसमें कोई संदेह नहीं रहेगा कि स्वामी रामदेव एक भोलेभाले, मस्त और हंसमुख स्वभाव का होने के साथ ही चेतनशील मनुष्य हैं। बाबा रामदेव को देखकर कोई भी यह शक जाहिर कर सकता है कि वह अपने भ्रष्टाचार विरोधी राष्ट्रव्यापी विरोधी आंदोलन तथा भारत स्वाभिमान यात्रा में किसी दूसरे विचारशील इंसान के रिमोट कंट्रोल के संकेतों पर काम कर रहे हैं। इसकी संभावना को हम खारिज नहीं करते पर इस पर यकीन भी नहीं करते। वैसे इस देश में योग साधना में दक्ष लोगों की कमी नहीं है पर समाज को उच्च लक्ष्य पर पहुंचाने में सक्रियता के विषय में अधिक रुचि के कारण बाबा रामदेव भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में लोकप्रिय हुए हैं। ऐसे में दुनिया भर के प्रचार माध्यम उनके बारे में अपने प्रसारण करते हैं पर इसका यह आशय कतई नहीं कि हरेक कोई उनके बारे में जानने का दावा करे। वह एक महायोगी हैं और युगपुरुष बनने की तरफ अग्रसर हैं इसलिये यह सोचना कि उनसे बड़ा कोई चिंतक इस देश में है यह बात ठीक नहीं लगता।
         अक्सर विश्व भर की प्रसिद्ध हस्तियों के चरित्र की चर्चा होती है पर शायद ही कोई ऐसा हो जो बाबा रामदेव जैसी योग जीवन शैली जीने वाला व्यक्ति राह हो। यहां तक कि बाबा रामदेव जिस महात्मागांधी को आराध्य मानते हैं उन्होंने सादगीपूर्ण जीवन जीने का संदेश न केवल दिया बल्कि उस अमल भी किया पर वह योगसाधक थे ऐसा कोईै प्रमाण नहीं मिलता। ऐसे में हम जब खास व्यक्तियों के जीवन चरित्र का विश्लेषण करते हैं तो सामान्य मानवीय स्वभावगत सिद्धांतों का आधार जरूर बनाकर किसी निष्कर्ष पर पहुंच कर उनके सही होने का दावा भी कर सकते हैं पर योग साधकों को लेकर ऐसी बात नहीं कही जा सकती क्योंकि उनके मूल स्वभाव के बारे में अधिक लिखा नहीं गया हैं।
         यह सच है कि योग साधना से कोई मनुष्य देवता नहीं बन जाता पर उसकी जीवन शैली, रहन सहन, आचार विचार, तथा चिंत्तन के आधार आम लोगों से कुछ अलग हो जाते हैं। संभव है कि बाबा रामदेव अपने अभियानों पर दूसरों की राय लेते हों और सही होने पर उस पर चलते भी हों पर यह तय है कि उनका निर्णय स्वतंत्र और मौलिकता लिये रहता होगा। संभव है कि बाबा किसी काम को न करना चाहते हों पर वह उसे संपन्न होने देते होंगे क्योंकि संगत की बात मानना योगियों का स्वभाव है पर इसे उनकी मौज माना जा सकता है। इसे मजबूरी कहना ठीक नहीं है।
             यह पता नहीं कि बाबा रामदेव अपने आपको संत मानते हैं कि योगी पर हम उनको महायोगी मानते हैं। योगियों और संतों में अंतर है। संतों की दैहिक सक्रियता अधिक न होकर वाणी से प्रवचन करने तक ही सीमित होती है। जब कुछ संत लोग बाबा रामदेव पर टिप्पणियां करते हैं तो उन पर हंसी आती है। योग भले ही भारतीय अध्यात्म का बहुत बड़ा हिस्सा है पर सभी इस पर नहीं चलते। अनेक संतों के लिये तो यह वर्जित विषय है। गेरुए वस्त्र पहनने का मतलब यह नहीं है कि सारे संत बाबा रामदेव को अपनी जमात का समझ लें। एक योगसाधक होने के नाते हम बाबा रामदेव और श्रीलालदेव महाराज को अन्य संतों से अलग मानते हैं। इनमें कई कथित संत तो बाबा रामदेव को सलाहें देते है कि ‘यह करो, ‘वह करो’, ‘यह मत करो’ और ‘यह मत करो’ जैसी बातें बड़े अधिकार के साथ कहते हैं जैसे कि उनसे बड़े ज्ञानी हों। अभी एक कथित शंकराचार्य ने उनको राजनीति में  न आने का सदेश दे डाला तो बरबस हंसी आ गयी क्योंकि हमारे दृष्टिकोण से बाबा रामदेव के अभियान उनके कार्यक्षेत्र से बाहर का विषय है।
      बाबा रामदेव के आंदोलन में  चंदा लेने के अभियान पर उठेंगे सवाल-हिन्दी लेख (baba ramdev ka andolan aur chanda abhiyan-hindi lekh)
      अंततः बाबा रामदेव के निकटतम चेले ने अपनी हल्केपन का परिचय दे ही दिया जब वह दिल्ली में रामलीला मैदान में चल रहे आंदोलन के लिये पैसा उगाहने का काम करता सबके सामने दिखा। जब वह दिल्ली में आंदोलन कर रहे हैं तो न केवल उनको बल्कि उनके उस चेले को भी केवल आंदोलन के विषयों पर ही ध्यान केंद्रित करते दिखना था। यह चेला उनका पुराना साथी है और कहना चाहिए कि पर्दे के पीछे उसका बहुत बड़ा खेल है।
    उसके पैसे उगाही का कार्यक्रम टीवी पर दिखा। मंच के पीछे भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का पोस्टर लटकाकर लाखों रुपये का चंदा देने वालों से पैसा ले रहा था। वह कह रहा था कि ‘हमें और पैसा चाहिए। वैसे जितना मिल गया उतना ही बहुत है। मैं तो यहां आया ही इसलिये था। अब मैं जाकर बाबा से कहता हूं कि आप अपना काम करते रहिये इधर मैं संभाल लूंगा।’’
          आस्थावान लोगों को हिलाने के यह दृश्य बहुत दर्दनाक था। वैसे वह चेला उनके आश्रम का व्यवसायिक कार्यक्रम ही देखता है और इधर दिल्ली में उसके आने से यह बात साफ लगी कि वह यहां भी प्रबंध करने आया है मगर उसके यह पैसा बटोरने का काम कहीं से भी इन हालातों में उपयुक्त नहीं लगता। उसके चेहरे और वाणी से ऐसा लगा कि उसे अभियान के विषयों से कम पैसे उगाहने में अधिक दिलचस्पी है।
            जहां तक बाबा रामदेव का प्रश्न है तो वह योग शिक्षा के लिये जाने जाते हैं और अब तक उनका चेहरा ही टीवी पर दिखता रहा ठीक था पर जब ऐसे महत्वपूर्ण अभियान चलते हैं कि तब उनके साथ सहयोगियों का दिखना आवश्यक था। ऐसा लगने लगा कि कि बाबा रामदेव ने सारे अभियानों का ठेका अपने चेहरे के साथ ही चलाने का फैसला किया है ताकि उनके सहयोगी आसानी से पैसा बटोर सकें जबकि होना यह चाहिए कि इस समय उनके सहयोगियों को भी उनकी तरह प्रभावी व्यक्तित्व का स्वामी दिखना चाहिए था।
अब इस आंदोलन के दौरान पैसे की आवश्यकता और उसकी वसूली के औचित्य की की बात भी कर लें। बाबा रामदेव ने स्वयं बताया था कि उनको 10 करोड़ भक्तों ने 11 अरब रुपये प्रदान किये हैं। एक अनुमान के अनुसार दिल्ली आंदोलन में 18 करोड़ रुपये खर्च आयेगा। अगर बाबा रामदेव का अभियान एकदम नया होता या उनका संगठन उसको वहन करने की स्थिति में न होता तब इस तरह चंदा वसूली करना ठीक लगता पर जब बाबा स्वयं ही यह बता चुके है कि उनके पास भक्तों का धन है तब ऐसे समय में यह वसूली उनकी छवि खराब कर सकती है। राजा शांति के समय कर वसूलते हैं पर युद्ध के समय वह अपना पूरा ध्यान उधर ही लगाते हैं। इतने बड़े अभियान के दौरान बाबा रामदेव का एक महत्वपूर्ण और विश्वसीनय सहयोगी अगर आंदोलन छोड़कर चंदा बटोरने चला जाये और वहां चतुर मुनीम की भूमिका करता दिखे तो संभव है कि अनेक लोग अपने मन में संदेह पालने लगें।
            संभव है कि पैसे को लेकर उठ रहे बवाल को थामने के लिये इस तरह का आयोजन किया गया हो जैसे कि विरोधियों को लगे कि भक्त पैसा दे रहे हैं पर इसके आशय उल्टे भी लिये जा सकते हैं। यह चालाकी बाबा रामदेव के अभियान की छवि न खराब कर सकती है बल्कि धन की दृष्टि से कमजोर लोगों का उनसे दूर भी ले जा सकती है जबकि आंदोलनों और अभियानों में उनकी सक्रिय भागीदारी ही सफलता दिलाती है। बहरहाल बाबा रामदेव के आंदोलन पर शायद बहुत कुछ लिखना पड़े क्योंकि जिस तरह के दृश्य सामने आ रहे हैं वह इसके लिये प्रेरित करते हैं। हम न तो आंदोलन के समर्थक हैं न विरोधी पर योग साधक होने के कारण इसमें दिलचस्पी है क्योंकि अंततः बाबा रामदेव का भारतीय अध्यात्म जगत में एक योगी के रूप में दर्ज हो गया है जो माया के बंधन में नहीं बंधते।

              इस लेख के अनेक पाठक शायद इस बात से सहमत न हों पर सच यही है कि कि बाबा रामदेव की समस्त इंदियां आम मनुष्य से अधिक तीक्ष्ण रूप से सक्रिय होंगी क्योंकि वह नियमित रूप से योग साधना, ध्यान और मंत्रजाप करते हैं। जिन लोगों ने सामान्य मात्रा में भी नियमित योग साधना की है वही इस बात को समझ सकते हैं। भले ही इस देश में बड़े बड़े चिंतक और विचारक हैं पर उनकी क्षमता बाबा के समकक्ष नहीं हो सकती। बाबा रामदेव अपने अभियान का शीघ्र परिणामों के लिये उतावले नहीं है क्योंकि वह लंबे समय की सक्रियता का विचार लेकर मैदान में उतरे हैं। फिर देश की स्थिति इतनी दयनीय है कि उसके सुधार में बरसों लग जायेंगे। योगमाता की कृपा से बाबा रामदेव तो इसी तरह बरसों तक आगे बढ़ते जायेंगे पर उनके साथियों और विरोधियों में से अनेक चेहरे समय के साथ बदलते नज़र आयेंगे। जो उन पर आरोप लगा रहे हैं वह आगे भी लगाये जायेंगे पर उस समय आवाज बदली हुई होगी। उनके समर्थन में जो नारे लग रहे हैं वह भी लगते रहेंगे पर जुबान वाले चेहरे बदल जायेंगे।   
          सांसरिक व्यक्ति इस हद तक ही चालाक होता है कि वह अपनी काम कहीं भी सिद्ध कर सके पर योगी कहीं बड़ा चालाक होता है क्योंकि उसका लक्ष्य समाज हित रहता है। संभव है कि बाबा रामदेव के सारे अभियान प्रायोजित हों और उनका चेहरा मुखौटे की तरह उपयोग होता हो पर ऐसा नहीं कि वह इस बात को नहीं जानेंगे। एक योगी जब अपनी पर आता है तो कुछ न करते हुए भी करता दिखता है और बहुत कुछ न करते हुए भी बहुत कुछ करता दिखता हे। अन्य प्रायोजित चेहरों और योगियों में अंतर यही है कि बाकी लोग मजबूरी और लालच में सब चलने देते हैं पर योगी दृष्टा की तरह चालाकी से अपना काम अंजाम देता है। काम भले ही दूसरे के कहने पर करे पर जनहित उसका स्वयं का काम रहता है। अब दूसरे भ्रम पालते रहें कि हम करवा रहे हैं। तीसरे यह भ्रम पालें कि वह दूसरे के कहने से यह काम कर रहे हैं।
          अंतिम बात यह है कि स्वामी रामदेव का आंदोलन उन योग साधकों के लिये जिज्ञासा का विषय हैं जो अभिव्यक्ति के साधनों के साथ सक्रिय हैं। हम लोग इस आंदोलन के समर्थन या विरोध से अधिक इसके भावी परिणामों का अनुमान कर रहे हैं। विरोध और समर्थन में आने वाले चेहरे को पढ़ने के साथ ही स्वर भी सुन रहे है। कोई मनुष्य संसार के बदलने की आशा करता है तो कोई करने का दावा ही करता है पर योगी और ज्ञानी जानते हैं कि इस जीवन की धारा बहने के कुछ नियम ऐसे हैं जो कभी नहीं बदलते भले ही स्थान और नाम बदल जाते हैं। मनुष्य चाहे सामान्य हो या योगी इस त्रिगुणमयी माया के वश होकर अपने स्वभाव के कारण किसी न किसी काम में तो लग ही जाता है-यह बात केवल वही योगी और योगसाधक  जानते हैं जो श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन करते हैं। ऐसे में किसी के वक्तव्य और गतिविधियों पर टिप्पणी करना जरूरी नहीं है पर अंततः लेखक भी तो अपने स्वभाव के वशीभूत हेाकर कुछ न कुछ लिखने तो बैठ ही जाता है।
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

संबद्ध विशिष्ट पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकाएँ

वर्डप्रेस की संबद्ध अन्य पत्रिकायें