19 दिसंबर 2011

खास लोगों का फैसला-हिन्दी कविता (khas logon ka faisla-hindi kavita or poemor shayari))

वह चाहते हैं कि
हम सच के घोड़े पर सवारी करें,
स्वयं झूठ के महल में ऐश करते रहें,
जंग में मैदान में हम अपना खून बहायें
वह वातानुकूलित कक्ष में बैठकर
अपने पसीने से बचते रहें।
कहें दीपक बापू
जहान के दस्तूर अपने मतलब के लिये
बार बार बदल जाते है,
चतुर करें राज
सज्जन स्वार्थ की बलि चढ़ जाते हैं,
दौलत मंदों की हुकुमत रोज बढ़ती है,
ओहदेदारों की तकदीर हर कदम चढ़ती है,
इसलिये खास लोगों का फैसला है
आम इंसान हमेशा सस्ता रहे।
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior

writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior

12 दिसंबर 2011

रविवार का दिन अध्यात्म के लिये महत्वपूर्ण-हिन्दी लेख (sanday for religionor adhyatma and music-hindi lekh and article

               इधर टीवी चैनलों ने अन्ना हजारे के एकदिवसीय अनशन को अपने पर्दे पर इस तरह सजा लिया था कि पूरे दिन कुछ नहीं दिखाना है तो मनोरंजन चैनलों ने पुराने कार्यक्रम दोबारा प्रसारित करने की तैयारी कर ली थी। तब हम एक सत्संग कार्यक्रम के लिये रवाना हो रहे थे। हमें पता था कि आज समाचार चैनलों पर सिवाय उसके कुछ दिखने वाला नहीं है। जहां तक मनोंरजन चैनलों की बात है तो वह सोमवार से शुक्रवार तक प्रसारित कार्यक्रमों का शनिवार तथा रविवार को पुनः प्रसारण करते हैं। ऐसे में रविवार और शनिवार टीवी चैनलों के कार्यकर्ताओं को अवकाश मिल जाता होगा पर आम दर्शक के लिये यह अमनोरंजक स्थिति होती है।
         सप्ताह में एक दिन किसी मंदिर या आश्रम में जाना अगले सप्ताह के लिये अपना मानसिक संतुलन बनाये रखने का एक अच्छा माध्यम बन सकता है बशर्ते कि उसकी अनुभूति करना भी आती हो। जिस तरह कहा जाता है कि पैसा कमाया जा सकता है पर सुख नहीं, उसी तरह आप चाहे मंदिर जायें या आश्रम जब तक आपके हृदय में अध्यात्म के प्रति गहरा रुझान नहीं है मन में उसका प्रभाव अनुभव नहीं कर सकते। जिनका अध्यात्म के प्रति झुकाव है वह आश्रमों या मंदिरों में जाकर मत्था टेकते हैं। वहां अगर भजन या प्रवचन सुनते हैं। इससे प्रतिदिन जो बोरियत से भरी दिनचर्या होती है, उससे विरक्त होकर जो सुख मिलता है वह केवल ज्ञानी ही जानते हैं। अज्ञानी लोग इससे ही तृप्त नहीं होते बल्कि वह मंदिरों, आश्रमों या देवस्थानों में कार्यरत महंतों, संतों तथा सेवकों की करीबी भी चाहते हैं। उनको लगता है कि इससे अधिक आत्मिक सुख मिलेगा। हमारा मानना है कि महंत, साधु, संत, या सेवकों का सानिध्य केवल मायावी व्यवहार है उसका अध्यात्म से कोई संबंध नहीं है।
        दानव को तो दूर से ही प्रणाम करना चाहिए पर देवता से भी दूरी रखना चाहिए। अग्नि देवता हैं, पूज्यनीय हैं पर हम उनका उपयोग अपनी वस्तुओं को पकाने के लिये करते हैं न कि उसमें घुसकर अपनी देह पकाते हैं। वायु देवता का सहज स्पर्श होता है पर हम उसे पकड़ते नहीं है। जल देवता है पर हम उसे पेट में डालते हैं न कि हाथ में पकड़कर प्यास बुझाते हैं। नहाते हैं तो फिर पौंछते हैं पानी का चिपका कर नहीं रखते। उसी तरह साधु, संतों, महंतों और सेवकों से भजन और प्रवचन सुनना चाहिए। उनके ज्ञान को धारण करने का प्रयास करें तो बहुत अच्छा, पर उनके निकट रहने का लोभ नहीं करना चाहिए। भजन, प्रवचन या सत्संग से आगे जाना भ्रष्टाचार को आमंत्रण देना है। तब हम भक्त से ग्राहक बन जाते हैं। ऐसे में अपने आपको दोहन के लिये प्रस्तुत करना अज्ञान का प्रमाण है।
            आश्रम से निकलकर हमारे मन में ख्याल आया कि आज मौसम अच्छा है तो कहां जायें? शहर में तानसेन समारोह चल रहा है। हमारे एक संगीतज्ञ मित्र ने हमसे कहा था कि शास्त्रीय संगीत में खूबी यह है कि अगर आप उसके जानकार नहीं है तो वह प्रारंभ में आपको प्रभावित नहीं करेगा पर जब धैर्य से सुनेंगे तो आपके अंदर वह ऐसा प्रभाव छोड़ेगा कि उसके मुरीद हो जायेंगे। तालाब के किनारे हमने वायलिन वादन सुना। आंखें बंदकर ध्यान से सुना। वाकई कुछ देर में अद्भुत आनंद देने लगा। ऐसा लगता था कि मस्तिष्क के अंदर कोई ब्रुश कचड़े की सफाई कर वहां सुंगध फैला रहा है। साजों से आ रही आवाज पूरी देह में एक उत्साह का संचार कर रही थीं। तब यह बात समझ में आयी कि संगीत की अपनी शक्ति है पर फिल्मों के गीतों को सुनते हुए हम लोगों की समझ कम हो गयी है। उसमें बेमतलब के शब्द लिखकर अनेक महान गीतकार हो गये हैं जबकि इसका सारा श्रेष्ठ संगीत को होना चाहिए।
         अभी महान कलाकार देवानंद का देहावसान हो गया। उनकी स्मृति में अनेक गाने टीवी पर देखने को मिले। अधिकतर किशोरकुमार की आवाज में थे। देवानंद साहब ने तो बस होंट भर हिलाये थे। महान गायक किशोरकुमार ने अनेक नायकों के अभिनय को अपनी आवाज से जीवंत बनाया। तय बात है कि अधिकतर फिल्में अपने गीतों की वजह से जानी गयी। उनमें संगीत की प्रधानता थी। अगर अकेले कोई गायक बिना साज के गाये तो आम आदमी जैसी चिल्लपों करते दिखता है।
         हाल ही में मशहुर हुए कोलिवरी डी गाने में क्या है? तमिल और अंग्रेजी के मिलेजुले शब्दों से भरे शब्दों को जो संगीत दिया गया है उसने उसे ऐसी प्रसिद्ध दिलाई कि उसने अनेक भाषाओं में डब किया जा रहा है। संगीत का प्रभाव ऐसा है कि हिन्दी धारावाहिकों में हर वाक्य के बाद संगीता बजता है। उसमें पात्रों के अभिनय और उनके संवादों को प्रभावी बनाने का यह प्रयास इस बात को दर्शाता है कि हमारे कथित निर्देशकों की क्षमतायें बहुत सीमित हैं।
         बहरहाल अध्यात्म और संगीत से रविवार बेहतर हो सकता है और उस समय हम अपनी सप्ताह भर की नियमित दिनचर्या से अलग होकर मन में नवीनता का आभास कर सकते हैं बहरहाल इस रविवार को बस इतना ही ।
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior

writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior

2 दिसंबर 2011

उस्ताद, शागिर्द, चिमटा और मॉल-लघु हास्य व्यंग्य (ustad, shagird,chimta and mol-short hasya vyangya)

                उस्ताद ने शागिर्द से कहा-’‘चल आज शहर के किसी मशहूर मॉल में घूम कर आयें। हमने बहुत सुना है कि नयी पीढ़ी के लोग मॉल में घूमने और खरीदने जाते हैं। इधर अपनी दरबार यहां शगिर्दों का का अकाल पढ़ गया है। सभी हमारी तरह बूढ़े हो गये हैं। कई तो नौकरी और धंधे से रिटायर होकर खोपड़ी खाने आते हैं। पहले की तरह दान और चंदा मिलता नहीं है। बैठे बैठे बोरियत होने लगी है। अपनी कोशिशों से नयी पीढ़ी के शागिर्द बनायेंगे।
           शागिर्द ने कहा-‘‘ मॉल में जाकर करेंगे क्या? वहां नयी पीढ़ी के लोग खरीदने आते हैं तो बच्चे नये खेल खेलने के लिये माता पिता को साथ लाते हैं। आपको वहां नये चेले कदापि नहंी मिलेंगे। आज की पीढ़ी के लोगों को शहर में इश्क लड़ाने के लिये उद्यान या खाली मैदान मिलते नहीं है। ऐसे सैर के स्थान विकास की भेंट चढ़ गये हैं। इसलिये मॉल में खरीदने के जवान पीढ़ी के लोग बहाने इश्क लड़ाने आते हैं। आप वहां चलेंगे तो अजूबा लगेंगे।’’
           उस्ताद अपना चिमटा तीन चार बार बजाकर बोले-‘‘तू हमारी मजाक उड़ाता है। अरे, हम पहुंचे हुए सिद्ध हैं। वहां जाकर अपने लिये नये चेले तलाश करेंगे। यह चिमटा बजाकर लोगों को अपनी तरफ खीचेंगे। तुम हमारी सिद्धि का बयान करना। हो सकता है कुछ आशिक और माशुकाऐं अपने इश्क की कामयाबी का तरीका पूंछें। हम उनको उपाय बतायेंगे। कुछ का काम बनेगा कुछ का नहीं! जिनका बनेगा वह मनौती पूरी होने के एवज में हम पर चढ़ावा चढ़ायेंगे।
शागिर्द बोला-‘‘महाराज अगर चलना है तो फिर है चिमटा वगैरह छोड़ दीजिये। इस धोती और कुर्ते को छोड़कर जींस और शर्ट पहन लीजिये। अपनी दाढ़ी कटवा लीजिये। इस वेशभूषा में मॉल के प्रहरी अंदर घुसने नहीं देंगे।’’
         उस्ताद ने कहा-‘‘हम यह चिमटा नहीं छोड़ सकते क्योंकि यह हमारी पहचान है। वेशभूषा बदल देंगे, दाढ़ी कटवा देंगें और तुम कहो तो मूंछें भी मुड़वा देंगे। सफेद बालों को भी काला कर लेंगे, पर यह चिमटा नहीं छोड़ सकते। यह तो लेकर चलेंगे ही।
         शागिर्द बोला-‘महाराज, आप अपनी जिद छोड़ दें। यह चिमटा हथियार की तरह लगता है। प्रहरी अंदर नहीं जाने देगा।
           उस्ताद ने कहा-‘‘उसकी यह हिम्मत नहीं हो सकती। हम उसे समझायेंगे कि यह चिमटा है न कि हथियार, तब अंदर जाने देगा। कौनसे मॉल का कौनसा कायदा है कि चिमटा हथियार है जिसे लेकर अंदर नहीं जाया जा सकता।’’
शागिर्द बोला-‘‘नहीं है तो बन जायेगा। मॉल वाले कोई छोटे मोटे लोग नहीं होते। ऐसा कायदा आपके वहीं खड़े खड़े तत्काल बनवा भी देंगे कि चिमटा लेकर अंदर प्रवेश वर्जित है। इन दौलतमंदों के हाथ में सारा जमाना है। चलने, फिरने और उठने बैठने के इतने कायदे बन गये हैं कि आपको पता ही नहीं है। आप क्यों एक नया कायदा बनवाना चाहते हैं कि चिमटा लेकर मॉल में घुसना मना जाये? यह तय है कि चिमटा लेकर अंदर नहीं जाने दिया जायेगा। आप ज़माने पर एक कायदा लदवाने की बुराई अपने सिर क्यों लेना चाहते है? इससे आपके पुराने शगिर्द भी नाराज हो जायेंगे।’’
उस्ताद का चेहरा उतर गया और उन्होंने मॉल जाने का इरादा छोड़ दिया।
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