आज सारे देश में दीपावली का पर्व मनाया जा रहा है। वैसे कहने को तो यह पर्व मूल रूप से भगवान श्रीराम की लंकाविजय के बाद अयोध्या वापसी पर हुए उत्सव के क्रम में मनाया जाता है पर इस पर सर्वाधिक पूजा श्री लक्ष्मी जी अधिक की होती है। आजकल भौतिकतावादी समाज के लिये भगवान राम के नाम का स्मरण करने की बजाय लक्ष्मी पर ध्यान रखना अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। भगवान श्रीराम के चरित्र के अनेक पक्ष हैं जिनमें सबसे अधिक उनका त्यागी भाव है। अपने पिता के आदेश पर एक ही पल में अयोध्या के राज का उन्होंने त्याग कर जो अपनी लीला की उससे एक ही संदेश मिलता है कि अगर समाज की रक्षा और कल्याण करना हो तो उसके लिये राज्य की नहीं बल्कि राजसी इच्छाशक्ति की आवश्कता होती है। इसके लिये यह आवश्यक है कि अध्यात्म का ज्ञान और बौद्धिक पराक्रम मनुष्य के पास हो और यह बिना नियमित अभ्यास के नहीं आता। अगर आदमी अध्यात्मिक ज्ञान का अभ्यास करे तो उसके सांसरिक कार्य भी योगानुष्ठान बन जाते हैं। जो मनुष्य सात्विक भाव से घर और व्यापार में रत रहता है उसे किसी अन्य प्रकार से यज्ञ की आवश्कता नहीं है।
आज जब समाज में धर्म के नाम पर पाखंड बढ़ गया है तब अध्यात्मिक ज्ञान का रट्टा लगाने वालों की बन आयी है। लोग व्यवसायिक धार्मिक कार्यक्रमों में जाकर अपने आपको ही भक्त होने का यकीन दिलाते हैं। जैसे वक्ता वैसे ही श्रोता। ज्ञान बघारने वाले स्वयं ही उसे धारण किये दृष्टिगोचर नहीं होते। ज्ञान को धारण करने की क्रिया को ध्राण शक्ति कहा जाता है और यह उन्हीं के पास हो सकती है जिनकी प्राणशक्ति तीक्ष्ण हो। यह प्राणशक्ति तभी प्राप्त हो सकती है जब कोई प्रातःकाल उठकर योगभ्यास और ध्यान करने के साथ ही मंत्रों का जाप करे। देखा जा रहा है कि लोग केवल अर्थोपार्जन करना ही शक्ति का स्त्रोत मानते हैं। यही कारण है कि समाज का कथित सभ्रांत वर्ग अब क्षीण प्राणशक्ति के साथ जीवन व्यतीत कर रहा है। यह अलग बात है कि लोग ज्ञान के लिये यज्ञ, हवन तथा अन्य कार्यक्रम आयोजित कर अपनी श्रेष्ठता प्रमाणित करने का प्रयास करते हैं।
मनुस्मृति में कहा गया है कि
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ज्ञानेनैवापरे विप्राः यजन्ते तैर्मखःसदा।
ज्ञानमूलां क्रियामेषा पश्चन्तो ज्ञानचक्षुषा।।
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ज्ञानेनैवापरे विप्राः यजन्ते तैर्मखःसदा।
ज्ञानमूलां क्रियामेषा पश्चन्तो ज्ञानचक्षुषा।।
हिन्दी में भावार्थ-कुछ गृहस्थ विद्वान अपनी क्रियाओं को अपने ज्ञान नेत्रों से देखते हैं। अपने कार्य को ज्ञान से संपन्न करना भी एक तरह से यज्ञानुष्ठान है। वह ज्ञान को महत्वपूर्ण मानते हैं इसलिये उन्हें श्रेष्ठ माना जाता है।
ब्राह्मो मुहूर्ते बुध्येत धर्मार्थो चानुचिन्तयेत्।
कायक्लेशांश्च तन्मूलान्वेदातत्तवार्थमेव च।।
कायक्लेशांश्च तन्मूलान्वेदातत्तवार्थमेव च।।
हिन्दी में भावार्थ-ब्रह्म मुहूर्त में उठकर धर्म का अनुष्ठान करने के बाद अर्थोपार्जन का विचार करना चाहिए। इस शुभ मुहूर्त में शारीरिक क्लेशों को दूर करने के साथ ही वेदों के ज्ञान पर विचार करना भी उत्तम रहता है।
इस दिवाली पर प्रचार माध्यमों दो बड़े ठगी के समाचार जोरो से चल रहे हैं। ठगों ने अरबों रुपये की ठगी की और लाखों लोगों को चूना लगाया। ठग पकड़े गये जिनकी सभी चर्चा कर रहे है मगर शिकार हुए लोगों की बुद्धि पर कोई विचार नहीं दे रहा। प्रश्न यह है कि कोई आदमी आपको एक साल में चार गुना धन देने या फिर बीस प्रतिशत व्याज देने का वादा कर रहा है क्या उसकी पृष्ठभूमि के बारे में लोग पता करते हैं? नहीं न! एक ने दो, दो ने चार और चार ने आठ को सुनाया। इस तरह संख्या सैंकड़ों और फिर लाखों तक पहुंच गयी। यह भेड़चाल कही जाती है। बीस लाख ठगे गये इसमें ठगों की चालाकी कम लोगों की ध्राणशक्ति की क्षीणता का अधिक प्रमाणित होती है। पैसा बुद्धि हर लेता है पर इतनी कि मेहनत से कमाया गया पैसा कोई आदमी दूसरे पर यकीन कर इस तरह देता है तो यह सवाल भी उठेगा ही क्या हमारे समाज की बौद्धिक शक्ति इतनी क्षीण हो गयी है। आधुनिक शिक्षा पर भी प्रश्न उठता है क्योंकि ठग कम और शिकार लोग अधिक शिक्षित हैं। इन दोनों ठगों की पोल दिपावली पर इसलिये खुली क्योंकि जिन्होंने धन लगाया था उन्हें बाज़ार से सामान खरीदने के लिये अब चाहिये था। नहीं मिला तो वह इधर उधर भागे और टीवी चैनलों के लिये एक सनसनीखेज खबर बन गयी।
बहरहाल दीपावली का पर्व मनाने वाले अपने अपने तरीके से मनाते हैं। इस समय ज्ञान और ज्ञानसाधक अध्यात्मिक दृष्टि से अपने समय का उचित प्रयोग करना चाहते हैं तो जिनके पास धन है खर्च करने के लिये बाज़ार की तरफ देखते हैं। आर्थिक विशेषज्ञ कहते हैं कि देश में पिछले कुछ वर्षों से करोड़पतियों की संख्या बढ़ी है। वह विकास दर पर यह कहते हुए खुश होते हैं कि देश में अमीर बढ़ रहे हैं। समाजशास्त्री यह बताते हुए चिंतित होते हैं कि देश मे अपराध बढ़े हैं। अध्यात्मवादी जानते हैं कि इस भौतिकवादी युग में लोगों की ध्राणशक्ति कमजोर पड़ी है इसलिये शिकार और शिकारी लोगों की संख्या भी बढ़ी है और इसे रोकने के लिये तत्वज्ञान के अध्ययन के लिये प्रेरणामयी अभियान चलाने केे अलावा अन्य कोई मार्ग नहीं है।
चलिये अपने अपने तरीके से दीपावली का पर्व मनायें। इस पावन पर इस ब्लॉग के पाठकों और लेखक मित्रों को बधाई। उनके लिये मंगलकामनायें।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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