26 अक्तूबर 2015

चाटुकारिता के व्यापारी-हिन्दी कविता(Chatukarita ke Vyapari-Hindi Kavita)

जिसने पाया विरासत में
सोने का सिंहासन
श्रम का मोल नहीं जानेगा।

पांव पर चलने से पहले
सिर पर पहना जिसने ताज
बेबसी पर वक्रदृष्टि तानेगा।

कहें दीपकबापू खुली हवा में
सांस लेने के फायदे
प्रकृति के कायदे
ज़माने से मान पाने वाला
चाटुकारिता का व्यापारी
गुलाम क्या जानेगा।।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

15 अक्तूबर 2015

हृदय की उष्मा ठंडा करे, ऐसी बर्फ बाज़ार में न मिले-दीपकबापू वाणी (DeepakBapuWani)

खाये पीये अघाये लोग कहां जायें, यूं ही द्वंद्व में मन लगायें।
‘दीपकबापू’ मौन से रखे बैर, लोग शोर में सिर मारने जायें।।
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अगर वर्षा हो तो छाते से बचा लें, धैर्य हो तो अमर्ष पचा लें।
‘दीपकबापू’ स्वयं नाचते दौलत पर, शक्ति नहीं कि हर्ष पचा लें।
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सम्मान लेकर महंगे होते बोल, सुविधा की तराजू में भारी तोल।
‘दीपकबापू’ जाने मान पाने की कला, पोल होने से ही बजे ढोल।।
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पुराने विचार का भूत पीछे, भविष्य क्या खाक चमकायेंगे।
दीपकबापू मुर्दों के दूत बने, रचना में राख ही सजायेंगे।।
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दूध से दही मक्क्खन बने, एक एक कदम से राह बने।
दीपकबापू ज्ञान विज्ञान समझें, चिंता से चिंत्तन चाह बने
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हृदय की उष्मा ठंडा करे, ऐसी बर्फ बाज़ार में न मिले।
‘दीपकबापू’ मृत संवेदनाओं के बीच, प्रेम फूल न खिले।।
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कातिलों के साथी नकाब पहने, शांति के शब्दों से बनाते गहने।
दीपकबापू मक्कारों की सभा में, वफा की इमारत लगती ढहने।।
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किताब लिखकर सम्मान पाये, दूजा तुलसी कबीर रहीम न कोई।
दीपकबापू हैरान है यह देख, हिन्दी ने दगाबाजों की पालकी ढोई।।
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हर कदम पर वादा झूठा मिला, हर जगह यकीन छूटा मिला।
‘दीपकबापू’ असरदारों की दुनियां में, दिल का तार टूटा गिला।।

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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

6 अक्तूबर 2015

अपनी ही पीठ पर ताली-हिन्दी व्यंग्य कविता(apni he peeth par tali-Hindi satire poem)


गुमनाम हो गये जो लोग
कभी कभी अपने सम्मान की लाश
चौराहे पर सजा देते हैं।

स्वर जिनका कोई सुनता नहीं
अपनी ही पीठ पर
ताली बजा लेते हैं।

कहें दीपकबापू देख तमाशा
आड़ी तिरछी लकीरें खीचंकर
काटेदार शब्द कागज में भींचकर
क्रांतिकार जैसा सम्मान पाये
अब कोने में छाये
निकलते हैं क्रुद्ध होकर
लोग भी मजा लेते हैं
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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