आज अनिल रघुराज की एक पोस्ट ^एक हिंदुस्तानी की डायरी में^ अनिल रघुराज पर मैंने एक कमेंट लगाई। यह कमेंट दूसरे नंबर पर लगायी थी। अभी शाम को मैं जब ब्लागवाणी चेक कर रहा था तो अनिल रधुराज जी की पोस्ट पर चार कमेंट चमक रहे थे। इसमे सबसे ऊपर कोई एक महिला ब्लाग लेखिका का नाम था और सबसे आखिरी एक ब्लाग लेखक का। मैंने पुनः ब्लाग खोलकर देखा तो ब्लाग लेखक ने सातवें और आठवें नंबर पर था।
मैं अपना नाम देखकर यह सोच रहा था कि यह नीचे से ऊपर के क्रम में होंगे पर जब ब्लाग खोलकर देखा तो मुझे हैरानी हुई। आखिर यह क्या माजरा है? एक तरफ कुछ लोग कहते फिर रहे है कि टिप्पणियां करो और दूसरी तरफ ऐसा? अब यह कैसे संभव है। अभी जब यह पोस्ट मैं लिख रहा था तब लाईट चली गयी और लौटकर आया तो देखा कि उड़ल तश्तरी जी की कमेंट वहां दूसरे नंबर पर चमक रही है। क्या एग्रीगेटर को यह अधिकार है कि चाहे जिसकी टिप्पणियां दिखायेगा? नारद और चिट्ठा जगत वाले चेक करें बतायें यार, यह क्या गड़बड़झाला है? मै भ्रम में हूं या ब्लागवाणी वाले खुशफहमी में।
अपनी बात अपने नाम से रखें तो बेहतर है क्योंकि अनामों का साथ मेरे लिये उपयोगी नहीं होगा क्योंकि यह बात निकली है तो दूर तक जायेगी। वैसे मैं किसी प्रकार के विवाद पसंद नहीं करता पर मेहनत कर लिखता हूं और एक मजदूरी की तरह ही हूं। जब कोई किसी की मेहनत पर आक्षेप करता है तब मुझे मजबूर होकर संघर्ष करना पड़ता है अब कोई यह मत कहना कि ज्ञानी होकर ऐसी बात कर रहा है। अब यह बात मत कहना कि दूसरों को प्रोत्साहन की जरूरत है तुम्हें नहीं। याद रखना अपनी मेहनत का मजाक उड़ाने वालों पर मुझे हास्य कविता बरसाने का अभ्यास इसी अंतर्जाल पर हुआ है। कोई तकनीकी गड़बड़ी बताने से पहले यह भी सोच लेना 1983 में कंप्यूटर पर हाथ रखा था।
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एक हिंदुस्तानी की डायरी में अनिल रघुराज 39 बार पढ़ा गया
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टिप्पणियां (कुल: 8)
बोधिसत्व-जय हो भाई..पर यह साहित्यकार कौन है जो नामर्द है......
Udan Tashtari-हमारी आवाज ने जगा ही दिया. बात में तो दम है मगर हम...
आभा-तेरहवी की बात क्यों कर रहे हैं...हमें तो आपकी पोस्...
विजयशंकर चतुर्वेदी-रघुराज भाई, अपन तो सोच रहे थे कि आप गर्मियों की छु...
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यह मेरा ब्लोग केवल नारद और चिट्ठजगत पर ही है इसलिए इस पर लिख कर तसदीक करना चाहता हूँ । फिर आगे कुछ और भी लिखेंगे।
शब्द अर्थ समझें नहीं अभद्र बोलते हैं-दीपकबापूवाणी (shabd arth samajhen
nahin abhardra bolte hain-Deepakbapuwani)
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*एकांत में तस्वीरों से ही दिल बहलायें, भीड़ में तस्वीर जैसा इंसान कहां
पायें।*
*‘दीपकबापू’ जीवन की चाल टेढ़ी कभी सपाट, राह दुर्गम भाग्य जो सुगम पायें।।*
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5 वर्ष पहले
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