27 नवंबर 2014

शिखर के असरदार-हिन्दी कविता(shikhar ke asardar-hindi peom)



सत्य पथ पर चलकर
समाज का रास्ता बनाते थे
अब ऐसे सरदार नहीं मिलते हैं।

घोखा देकर अपने महल बनाते
झूठ का करते व्यापार
ऐसे असरदारों के नाम
शिखर पर हिलते हैं।

कहें दीपक बापू समाज पर
छा गये हैं वह लोग
जो भीड़ को भेड़ की तरह
नारों की लाठी से हांकते हैं,
पेट भरकर घर की खिड़की से
दिल बहलाने के लिये
भूख झेल रहे गरीब को झांकते हैं,
हवा बंद कर दी ऊंचाई तक
अपनी इमारतें बनाकर
प्रकृति से दूर होकर
जहां नकली फूल खिलते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

19 नवंबर 2014

लालच और मजबूरी-हिन्दी कविता(lalach aur mazboori-hindi poem)



मनुष्य कभी इतना
मासूम नहीं होता
कोई उसे बैल की तरह
हांक कर ले जाये।

लालच और मजबूरी
या हो सकता है
कमजोर दिखने की आदत
उसे कोई भी गर्दन में फंदा
टांक कर ले जाये।

कहें दीपक बापू अपनी इच्छा से
लड़ता नहीं व्यक्ति,
गिरवी रख देता
कामनाओं के सामने शक्ति,
अपने स्वार्थ की पूर्ति करते
थका देता अपनी देह
जो भी चाहे उसकी बुद्धि
अंदर झांक कर ले जाये।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

9 नवंबर 2014

सफलता और सपने-हिन्दी कविता(safalta aur sapane-hindi poem)



तारीख बदल रोज बदल जाती
मगर मनुष्य हैं कि
पुराने दिन भुला नहीं पाते।

जिंदगी से संघर्ष में
भाग्य के ज्ञान की
किसी के समझ में नहीं आई,
श्रम और कर्म से भी मंजिल
किसी किसी के पास नहीं आई,
सफलता पास आते ही
लोग  सपनों को सुला देते हैं।

कहें दीपक बापू आकाश में
उड़ने वाले देवता
धरती का दर्द नहीं समझते,
अपने पर नहीं भरोसा
वही लोग उनके लिये
भक्ति का भाव भरते,
जिंदगी चलती कायदे से,
रिश्ता सभी का फायदे से,
फुरसत में यूं ही
धर्म और संस्कृति को
सड़क पर झुला देते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

3 नवंबर 2014

उपदेश का चाबुक-हिन्दी कविता(upadesh ka chabuk-hindi poem)



कितना अच्छा सपना है
इस धरती पर
सभी मनुष्य देवता बन जायें।

चारों तरफ फिर रहे हैं
ढेर सारे समाज सुधारक
पुराने ग्रंथों के उपदेश
 चाबुक  की तरह  लेकर
दो पांव के जीवों पर बरसाते
यह मानकर कि
गधे भी घोड़े बन जायें।

कहें दीपक बापू  पुरानी मान्यताओं से
नये संदर्भ नहीं ढूंढते
सुधार और कल्याण के ठेकेदार
एक हाथ में उद्धार का झंडा,
दूसरे में परिवर्तन का डंडा,
वाणी में परमात्मा का नाम
हृदय में बसता एक ही विचार
अपना घर में भर जाये सोना
दीवारें चांदी  से सजायें।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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