19 नवंबर 2014

लालच और मजबूरी-हिन्दी कविता(lalach aur mazboori-hindi poem)



मनुष्य कभी इतना
मासूम नहीं होता
कोई उसे बैल की तरह
हांक कर ले जाये।

लालच और मजबूरी
या हो सकता है
कमजोर दिखने की आदत
उसे कोई भी गर्दन में फंदा
टांक कर ले जाये।

कहें दीपक बापू अपनी इच्छा से
लड़ता नहीं व्यक्ति,
गिरवी रख देता
कामनाओं के सामने शक्ति,
अपने स्वार्थ की पूर्ति करते
थका देता अपनी देह
जो भी चाहे उसकी बुद्धि
अंदर झांक कर ले जाये।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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