21 नवंबर 2011

जब उत्तर प्रदेश का नाम गुम हो जायेगा-हिन्दी लेख (divisan aur partision of uttarprades,uttarpradesh ka nam gum jayega-hindi lekh or article)

             हमारे देश के राज्य पच्चीस हों या पचास यह महत्वपूर्ण नहीं है जितना यह कि यहां समाज कितना मजबूत और आत्मनिर्भर हो। पिछले कुछ समय देश में एक राज्य को दो भागों में बांटकर विकास करने का सपना दिखाया जा रहा है। उत्तर प्रदेश को तो चार भागों में बांटना प्रस्तावित किया गया है। सवाल यह है कि क्या हमारे देश के किसी प्रदेश का विकास केवल क्या इसी कारण अवरुद्ध हो रहा है यहां राज्य बड़े हैं? एक अर्थशास्त्र का विद्यार्थी शायद ही कभी इस बात को माने। जब हम देश में गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी की समस्यायें देखते हैं तो यह बात समझना चाहिए कि यह अर्थशास्त्र का विषय है। ऐसे में हम जब लोगों को आर्थिक विकास का सपना देख रहे हैं तो यह भी देखना चाहिए कि हमारी देश के संकटों और समस्याओं पर अर्थशास्त्रियों का क्या नजरिया है?
              देश में बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, सामाजिक विद्वेष और गरीबी बढ़ रही है। हम यह दावा करते रहते हैं कि भारत में शिक्षा अगर पूर्ण स्तर पहुंच जाये तो विकास सभी जगह परिलक्षित होगा मगर हम देख रहे हैं कि हमारे यहां शिक्षित वर्ग में बेरोजगारी का संकट सबसे अधिक भयावह है। सच से सभी ने मुंह फेर रखा है। अनेक अर्थशास्त्री और समाजशास्त्री हैं पर चलते है जो विचार तो पश्चिम के सिद्धांतों के आधार पर करते हैं पर जब देश की बात आती है तो उनका नजरिया एकदम जड़ हो जाता है। देश में सबसे बड़ी समस्या गरीबी है और जिसका सीधा संबंध अर्थशास्त्र से है। अगर हम अर्थशास्त्र की दृष्टि से देखें भारत के पिछड़ेपन का मुख्य कारण, अधिक जनसंख्या, खेती और उद्योगों के परंपरागत ढंग से करना, सामाजिक रूढ़िवादिता आर्थिक असमानता के साथ अकुशल प्रबंध है। अगर हम यह चाहते हैं कि हमारा देश सर्वांगीण विकास करे तो हमें इन्हीं समस्याओं से निजात पाना होगा।
            अधिक जनंसख्या, खेती और उद्योगों को परंपरागत ढंग से करना तथा सामाजिक रूढ़िवादिता का संबंध जहां आम जनमानस से है वहीं अकुशल प्रबंध के दायरे में राज्य भी आता है। यह अकुशल प्रबंध लापरवाही और भ्रष्टाचार के कारण है। राज्य चाहे छोटे हों या बड़े अगर उनका आर्थिक और प्रशासनिक प्रबंधन कुशल नहीं है तो चाहे जितना प्रयास किया जाये विकास नहीं हो सकता। उस पर भ्रष्टाचार जहां नस नस में समा गया हो वहां तो कहना ही क्या?
        हम यह भी देखें कि जिन राज्य को विभाजित किया गया तो उनका विकास कितना हुआ? यह सही है कि नवगठित राज्यों की राजधानी बने शहरों में उजाला हो गया पर बाकी हिस्से तो अंधेरे में ही डूबे हुए हैं। एक दिन फिर उन्हीं राज्यों में पुनः विभाजन की मांग उठेगी। तब उसे माना जाता है तो फिर कोई नया शहर राजधानी बनेगा तब वह भी रौशन हो उठेगा मगर बाकी हिस्से में अंधियारा राज्य करेगा। इस तरह तो हर बड़े शहर को राज्य बनाना पड़ेगा। तब हम फिर उसी रियासती युग में पहुंच जायेंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि आजादी के बाद रियासते बनी रहने दी जाती और राजाओं की जगह सरकारी नुमाइंदे रखे जाते या फिर हर राज्य का प्रमुख जनता से चुना जाता है। हालांकि तब भी यह सुनने का अवसर पुराने लोगों से मिलता कि इससे तो राजशाही ठीक थी। आज भी अनेक पुराने लोग अंग्रेज राज्य को श्रेयस्कर मानते हैं।
       कहने का अभिप्राय यह है कि जब तब हम अपने यहां कुशल प्रबंधन का गुण विकसित नहीं करते तब तक देश के किसी भी हिस्से को विकास का सपना दिखाना अपने आप को ही धोखा देना है। हैरानी तब होती है जब आम जनमानस इस तरह सपने दिखाने पर ही खुश हो जाता है। आखिरी बात यह कि उत्तर प्रदेश राजनीतिक रूप से बड़ा प्रदेश रहा है पर जैसा कि राजनीतिक स्थितियां सदैव समान नहीं रहती। अगर उत्तरप्रदेश का बंटावारे वाला प्रस्ताव साकार रूप लेता है तो भारतीय नक्शे से उसका नाम गायब हो जायेगा। उत्तर प्रदेश के करीब करीब सारे शहर बड़े और एतिहासिक हैं-जैसे आगरा, इलाहाबाद, वाराणसी, लखनऊ, गोरखपुर, मथुरा, कानपुर आदि। यह नक्शे में रहेंगे पर उत्तरप्रदेश गायब हो जायेगा। हम इसे अध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो जमीन और लोग वहीं हैं और रहेंगे पर उन पर नियंत्रण करने वाला राजकीय स्वरूप बदल जायेगा। न कहीं से हमला न न क्रांति होगी पर उत्तर प्रदेश शब्द का पतन हो जायेगा। इंसानों के हाथ से बनाये नक्शे बदलते रहते हैं पर मानवीय प्रकृतियां यथावत रहती हैं। इन्हीं प्रकृतियों को जानना और समझना तत्व ज्ञान है। मथुरा के जन्मे और वृंदावन पले भगवान श्रीकृष्ण का तत्वज्ञान आज विश्व भर में फैला है। इस मथुरा और वृंदावन ने कई शासक देखे पर उनका अध्यात्मिक स्वरूप भगवान श्री कृष्ण की जन्म तथा बाललीलाओं के कारण हमेशा बना रहा। उत्तरप्रदेश के अनेक शहरों का भारतीय अध्यात्मिक दृष्टि से महत्व है और रहेगा। भले ही भारतीय नक्शे से उत्तर प्रदेश गायब हो जाये। एक आम लेखक और नागरिक के रूप में राज्य के छोटे या बड़े होने से हमारा कोई सरोकार नहीं है पर इतना जरूर कह सकते हैं कि उत्तरप्रदेश के नाम के पीछे उसके अनेक बड़े शहरों का एतिहासिक तथा अध्यात्मिक स्वरूप दब गया है और संभव है कि विभाजन के बाद उनकी प्रतिष्ठा अधिक बढ़े। यह कहना कठिन है कि यह बंटवारा कब तक होगा पर एक बार प्रस्ताव स्थापित हो गया है तो वह कभी न कभी प्रकट रूप लेगा ऐसी संभावना तो लगती है।
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior

writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior

15 नवंबर 2011

इंसानों के वादे -हिन्दी शायरी (insano ke vaade-hindi shayari or poem)

आम इंसान हो या खास
चाहे जब वादे कर चले जाते हैं।
सबकी याद्दाश्त सिमटी है अपने मतलब तक,
फरिश्ता बनने कि ख्वाहिशें पाले सभी हैं
अपने पेट भरने के बाद सभी हैं जाते हैं थक,
फिर भी ताकत कोई है इस धरती पर
जो मझधार में फंसे लाचारों की नाव
वादा न करने वाले
अजनबी पार लगा जाते हैं।
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior

writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior

10 नवंबर 2011

श्रीगुरूनानक जयंती/प्रकाशपर्व की सभी को हार्दिक बधाई-हिन्दी लेख (shri gurunanak jayanti/prakashparva ki badhai-hindi article or lekh

आज पूरे विश्व में श्रीगुरुनानक देव का जन्मदिन मनाया जा रहा है। हालांकि अनेक लोग अब अपनी संकीर्ण मानसिकता के कारण उनको सिख धर्म के प्रवर्तक के रूप में मानते हैं जबकि ज्ञानी लोग उन्हें हिन्दू धर्म की आधुनिक विचाराधारा के प्रवाहक की तरह मान्यता देते हैं। कहा जाता है कि सिख धर्म का प्रादुर्भाव हिन्दू धर्म की रक्षा के लिये हुआ था। कालांतर में इसे प्रथक माना जाने लगा पर भारतीय अध्यात्म में श्रीगुरुनानक देव को भगवान स्वरूप माना जाता है और प्रत्येक भारतीय उनका नाम सम्मान से लेकर अपना जीवन धन्य समझता है। भारतीय जनमानस की यह धारणा है कि उसके ऊपर चाहे दैहिक संकट हो या मानसिक हर स्थिति में भगवान ही उससे रक्षा करते हैं। श्रीगुरुनानक जी ने उस समय भारतीय अध्यात्म को अपना योगदान दिया जब देश में वैचारिक संकट का ऐसा दौर था जिसमें समाज कुछ स्वेच्छा तो कुछ राजनीतिक दबाव के कारण परिवर्तन की तरफ बढ़ रहा था। एक तरफ भारतीय पौंगा पंडित अपने अंधविश्वासों के साथ भारी व्यय वाले कर्मकांडों का विस्तार कथित रूप से समाज की रक्षा के लिये कर रहे थे तो दूसरी तरफ बाहरी ताकतों से प्रभावित तत्व इस देश पर नियंत्रण करने के लिये विदेशी विचारों को अस्त्र शस्त्र का उपयोग करते हुए जूझ रहे थे। श्रीगुरुनानक जी ने दोनों को ही लक्ष्य कर भारतीय समाज में एक नयी विचाराधारा को प्रवाहित किया।
देखा जाये तो भारतीय दर्शन में यह माना गया है कि निरंकार और साकार भक्ति दोनों ही परमात्मा के प्रति ध्यान स्थापित करने से होती है। इसके अलावा निष्काम कर्म और सकाम कर्म को भी सहजता से स्वीकार किया गया है। इसके बावजूद ज्ञान और हार्दिक भक्ति को ही मनुष्य में श्रेष्ठ गुण स्थापित करने वाला तत्व माना जाता है। अगर हृदय स्वच्छ नहीं है तो फिर सारा धर्म कर्म बेकार है-ऐसा कहा जाता है। भारतीय समाज में ऐसे तत्व भी रहे हैं जो दूसरों को निष्काम रहने का उपदेश देते हैं पर इसके बदले स्वयं सकाम होकर उनसे फल चाहते हैं। गुरुनानक के काल में ऐसे ही गुरुओं का जमघट था। जिनका आशय यह था कि हमने तुंम्हें निष्काम होने का ज्ञान दिया और अब तुम हम पर निष्प्रयोजन दया करो। इस तरह मनुष्य के अंदर स्थित अध्यात्मिक प्रवृत्ति का धर्म के धंधेबाजों ने दोहन करने का हमेशा प्रयास किया है। कई लोग तो बड़ी बेशरमी से कहते हैं कि ‘सुपात्र को दान दो’, और जब आदमी देने के लिये हाथ उठाये तो वह अपना सिर आगे कर कहते हैं कि ‘हमीं सुपात्र हैं’।
ऐसे ही अंधविश्वासों और धार्मिक पाखंडों को श्रीगुरुनानक जी ने लक्ष्य कर उन्हें दूर करने का प्रयास किया उन्होंने मायावी संसार में सत्य की पहचान कराई। यही कारण है कि हमारे यहां अध्यात्मिक महापुरुषों में गुरु शब्द उनके ही नाम से जोड़ा जाता है।
श्री गुरुवाणी में कहा गया है
साहिब मेरा एको है।
एको है भाई एको है।।
‘‘एक औंकार (1ॐ ) शब्द के माध्यम से यह बताया गया है कि सर्वत्र एक ही ईश्वर व्याप्त है।"
आदि सब जुगादि सच।
है भी सच,
नानक होसी भी सच।।
"उसका नाम सत्य है।"
सचु पुराणा हौवे नाही
‘‘हर वस्तु यहां पुरानी हो जाती है पर सत्य पुराना नहीं होता।’’
श्रीगुरुनानक जी ने अपना जीवन मस्तमौला फकीर की तरह बिताया। उनका जन्म एक व्यवसायी परिवार में हुआ पर उन्होंने देश के लिये ऐसी ज्ञान संपत्ति का अर्जन किया जो हमेशा अक्षुण्ण रहेगी। भक्ति के माध्यम से भगवान को प्राप्त करने का जो उन्होंने मार्ग दिखाया वह अनुकरणीय है। ऐसे महापुरुष को हृदय से प्रणाम।
इस अवसर पर समस्त ब्लाग लेखक मित्रों तथा पाठकों को बधाई। इस संदेश के साथ कि वह भगवान श्रीगुरुनानक देव के मार्ग का अनुसरण कर अपना जीवन धन्य करें।
दीपक भारतदीप,लेखक संपादक

लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior

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