आम इंसान हो या खास
चाहे जब वादे कर चले जाते हैं।
सबकी याद्दाश्त सिमटी है अपने मतलब तक,
फरिश्ता बनने कि ख्वाहिशें पाले सभी हैं
अपने पेट भरने के बाद सभी हैं जाते हैं थक,
फिर भी ताकत कोई है इस धरती पर
जो मझधार में फंसे लाचारों की नाव
वादा न करने वाले
अजनबी पार लगा जाते हैं।
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior
‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
४.दीपकबापू कहिन
५,हिन्दी पत्रिका
६,ईपत्रिका
७.जागरण पत्रिका
८.हिन्दी सरिता पत्रिका
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
४.दीपकबापू कहिन
५,हिन्दी पत्रिका
६,ईपत्रिका
७.जागरण पत्रिका
८.हिन्दी सरिता पत्रिका
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें