आज पूरे विश्व में श्रीगुरुनानक देव का जन्मदिन मनाया जा रहा है। हालांकि अनेक लोग अब अपनी संकीर्ण मानसिकता के कारण उनको सिख धर्म के प्रवर्तक के रूप में मानते हैं जबकि ज्ञानी लोग उन्हें हिन्दू धर्म की आधुनिक विचाराधारा के प्रवाहक की तरह मान्यता देते हैं। कहा जाता है कि सिख धर्म का प्रादुर्भाव हिन्दू धर्म की रक्षा के लिये हुआ था। कालांतर में इसे प्रथक माना जाने लगा पर भारतीय अध्यात्म में श्रीगुरुनानक देव को भगवान स्वरूप माना जाता है और प्रत्येक भारतीय उनका नाम सम्मान से लेकर अपना जीवन धन्य समझता है। भारतीय जनमानस की यह धारणा है कि उसके ऊपर चाहे दैहिक संकट हो या मानसिक हर स्थिति में भगवान ही उससे रक्षा करते हैं। श्रीगुरुनानक जी ने उस समय भारतीय अध्यात्म को अपना योगदान दिया जब देश में वैचारिक संकट का ऐसा दौर था जिसमें समाज कुछ स्वेच्छा तो कुछ राजनीतिक दबाव के कारण परिवर्तन की तरफ बढ़ रहा था। एक तरफ भारतीय पौंगा पंडित अपने अंधविश्वासों के साथ भारी व्यय वाले कर्मकांडों का विस्तार कथित रूप से समाज की रक्षा के लिये कर रहे थे तो दूसरी तरफ बाहरी ताकतों से प्रभावित तत्व इस देश पर नियंत्रण करने के लिये विदेशी विचारों को अस्त्र शस्त्र का उपयोग करते हुए जूझ रहे थे। श्रीगुरुनानक जी ने दोनों को ही लक्ष्य कर भारतीय समाज में एक नयी विचाराधारा को प्रवाहित किया।
देखा जाये तो भारतीय दर्शन में यह माना गया है कि निरंकार और साकार भक्ति दोनों ही परमात्मा के प्रति ध्यान स्थापित करने से होती है। इसके अलावा निष्काम कर्म और सकाम कर्म को भी सहजता से स्वीकार किया गया है। इसके बावजूद ज्ञान और हार्दिक भक्ति को ही मनुष्य में श्रेष्ठ गुण स्थापित करने वाला तत्व माना जाता है। अगर हृदय स्वच्छ नहीं है तो फिर सारा धर्म कर्म बेकार है-ऐसा कहा जाता है। भारतीय समाज में ऐसे तत्व भी रहे हैं जो दूसरों को निष्काम रहने का उपदेश देते हैं पर इसके बदले स्वयं सकाम होकर उनसे फल चाहते हैं। गुरुनानक के काल में ऐसे ही गुरुओं का जमघट था। जिनका आशय यह था कि हमने तुंम्हें निष्काम होने का ज्ञान दिया और अब तुम हम पर निष्प्रयोजन दया करो। इस तरह मनुष्य के अंदर स्थित अध्यात्मिक प्रवृत्ति का धर्म के धंधेबाजों ने दोहन करने का हमेशा प्रयास किया है। कई लोग तो बड़ी बेशरमी से कहते हैं कि ‘सुपात्र को दान दो’, और जब आदमी देने के लिये हाथ उठाये तो वह अपना सिर आगे कर कहते हैं कि ‘हमीं सुपात्र हैं’।
ऐसे ही अंधविश्वासों और धार्मिक पाखंडों को श्रीगुरुनानक जी ने लक्ष्य कर उन्हें दूर करने का प्रयास किया उन्होंने मायावी संसार में सत्य की पहचान कराई। यही कारण है कि हमारे यहां अध्यात्मिक महापुरुषों में गुरु शब्द उनके ही नाम से जोड़ा जाता है।
श्री गुरुवाणी में कहा गया है
साहिब मेरा एको है।
एको है भाई एको है।।
‘‘एक औंकार (1ॐ ) शब्द के माध्यम से यह बताया गया है कि सर्वत्र एक ही ईश्वर व्याप्त है।"
आदि सब जुगादि सच।
है भी सच,
नानक होसी भी सच।।
"उसका नाम सत्य है।"
सचु पुराणा हौवे नाही
‘‘हर वस्तु यहां पुरानी हो जाती है पर सत्य पुराना नहीं होता।’’
श्रीगुरुनानक जी ने अपना जीवन मस्तमौला फकीर की तरह बिताया। उनका जन्म एक व्यवसायी परिवार में हुआ पर उन्होंने देश के लिये ऐसी ज्ञान संपत्ति का अर्जन किया जो हमेशा अक्षुण्ण रहेगी। भक्ति के माध्यम से भगवान को प्राप्त करने का जो उन्होंने मार्ग दिखाया वह अनुकरणीय है। ऐसे महापुरुष को हृदय से प्रणाम।
इस अवसर पर समस्त ब्लाग लेखक मित्रों तथा पाठकों को बधाई। इस संदेश के साथ कि वह भगवान श्रीगुरुनानक देव के मार्ग का अनुसरण कर अपना जीवन धन्य करें।
दीपक भारतदीप,लेखक संपादक
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior
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