हसीनाएं ढूंढती है अपने लिए कोई
बड़ी नौकरी वाला साहब
छोटे काम वाले देखते रहते हैं
बस माशुका पाने का ख्वाब
वह दिन गये जब
बगीचों में आशिक और हसीना
चले जाते थे
अपने घर की छत पर ही
इशारों ही इशारों में प्यार जताते थे
अब तो मोबाइल और इंटरनेट चाट
पर ही चलता है इश्क का काम
कौन कहता है
इश्क और मुश्क छिपाये नहीं छिपते
मुश्क वाले तो वैसे हुए लापता
इश्क हवा में उडता है अदृश्य जनाब
जाकर कौन देख सकता है
जब करने वाले ही नहीं देख पाते
चालीस का छोकरा अटठारह की छोकरी को
फंसा लेता है अपने जाल में
किसी दूसरे की फोटो दिखाकर
सुनाता है माशुका को दूसरे से गीत लिखाकर
मोहब्बत तो बस नाम है
नाम दिल का है
सवाल तो बाजार से खरीदे उपहार और
होटल में खाने के बिल का है
बेमेल रिश्ते पर पहले माता पिता
होते थे बदनाम
अब तो लडकियां खुद ही फंस रही सरेआम
लड़कों को तो कुछ नहीं बिगड़ता
कई लड़कियों की हो गयी है जिंदगी खराब
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
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