23 जून 2009

भटकती आत्मा-व्यंग्य कविता

कभी इधर लटका
कभी उधर अटका
परेशान मन देह को
लेकर जब भटका
तब आत्मा ने कहा
‘रे, मन क्यों तू देह
को हैरान किये जा रहा है
बुद्धि तो है खोटी
अहंकार में अपनी ही गा रहा है
सम्मान की चाह में
ठोकरें खा रहा है
लेकर सर्वशक्तिमान का नाम
क्यों नहीं बैठ जाता
मेरे से बात कर
मैं हूं इस देह को धारण करने वाली आत्मा’
सुन कर मन गुर्राया और बोला
‘मैं तो इस देह का मालिक हूं
जब तक यह जिंदा है
इसके साथ रहूंगा
यह वही करेगी जो
इससे मैं कहूंगा
तू अपनी ही मत हांक
पहले अपनी हालत पर झांक
मैं तो देह के साथ ही
हुआ था पैदा
शरण तू लेने आयी थी
इस देह में
मूझे भटकता देख मत रो
ओ! भटकती आत्मा।’

.....................................
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप

2 टिप्‍पणियां:

राजीव तनेजा ने कहा…

सच्ची....सुन्दर कविता

सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’ ने कहा…

सत्यम-शिवं-सुंदरम्‌

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

संबद्ध विशिष्ट पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकाएँ

वर्डप्रेस की संबद्ध अन्य पत्रिकायें