5 नवंबर 2009

अभिव्यक्ति की ताकत-कविता और लघु आलेख ( abhivyakti ki taqat-kavita aur alekh)

अक्सर लोग आपस में अपने दर्द की चर्चा करते हुए जी हल्का कर लेते हैं। उनकी ढेर सारी शिकायत अपने और गैर लोगों से होती हैं। उनके सामने कहते हुए कहीं संकोच तेा कहीं डर होता है कि वह व्यक्ति नाराज न दुःखी न हो जाये जिसके प्रतिकूल बात कह रहे हैं। फिर हम देख रहे हैं कि सदियों से बड़े लोगों द्वारा छोटे लोगों पर अनाचार की ढेर सारी कहानियां हैं। जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के नाम पर होने वाले संघर्षों में हमेशा आम आदमी निशाना बना है। इस संघर्ष से लगने वाली आग में आम इंसान के घर और झोंपड़ियां जली हैं। कभी महलों के जलने की चर्चा नहीं सुनने में नहीं आती। कभी कभी तो निराशा होती है पर कभी यह देखकर दिल प्रफुल्लित होता है कि आज भी समाज में दरियादिल लोग हैं जो धर्म के नाम पर होने वाले कार्यक्रमों में अपनी सकारात्मक भूमिका निभाते हैं। लोग धर्म के नाम पर छोटे कार्यक्रम कर अपने लिये खुशियां जुटाते हैं।
सच तो यह है कि गरीबों के कल्याण के नाम पर अनेक पेशेवर लोग अपने अभियान चलाते हैं। उनके दो उद्देश्य ही होते हैं एक तो उसके नाम पर अमीरों से चंदा वसूल करें और गरीब से पहले ही दाम वसूल कर लेते हैं या फिर उनको मुफ्त में अपने अभियान में पैदल दौड़ लगवाते हैं अलबत्ता उनके भले का काम धेले भर का नहीं होता।
हमारा देश धार्मिक प्रधान माना जाता है। धर्म के नाम पर सत्संग और सम्मेलन इतने होते हैं कि उसे देखकर लगता ही नहीं है कि यहां कोई राक्षस भी है। सभी जगह देवताओं के समूह दिखाई देते हैं। यह सत्संग या सम्मेलन केवल भारत में ही उत्पन्न विचाराधाराओं को मानने वाले लोगों द्वारा आयोजित नहीं किये जाते बल्कि बाहर उत्पन्न विचाराधाराओं के लोग भी करते हैं। सभी प्रकार के धर्म सम्मेलनों में गरीबों के खाने पीने के इंतजाम किये जाते हैं। अगर धार्मिक जुलूस हों तो जगह जगह पानी और प्रसाद की व्यवस्था का दौर सभी धर्म के लोग करते हैं। ऐसा नहंी लगता कि विदेशों में रहने वाले भारतीय या अन्य धर्मी ऐसे कार्यक्रंम करते हों। यही कारण है कि धर्म जितनी शिद्दत से यहां माना जाता है कहीं अन्य नहीं। धार्मिक संवदेनाओं के कारण यहां वाद विवाद भी अधिक होते हैं।
धर्म प्रधान होने के बावजूद भी इस समाज में ही भ्रष्टाचार, अनाचार, व्याभिचार तथा दुव्र्यवहार की घटनायें इतनी अधिक होती हैं कि उनकी कहानियों पर अनेक ग्रंथ लिखे जा सकते हैं। देश की छबि विदेश में क्या देश में ही खराब हो गयी है। इसका कारण यह है कि लोग आवेश, लालच, मोह तथा अहंकार में प्रतिदिन ऐसे काम करने से बाज नहीं आते तो हर धर्म की दृष्टि से गलत हैं। सभी धर्म, जातियों, भाषाओं और क्षेत्र के नाम पर बने समूहों के झंडे तले ऐसी घटनायें होती हैं कि कोई यह दावा कर ही नहीं सकता कि उसके समूह के सभी सदस्य पवित्र तथा उदार हैं। आखिर ऐसा क्यों?
इसका उत्तर यही है कि लोग अपने को उस समय अभिव्यक्त नहीं करते जब उचित समय हो। जहां एक आम आदमी पर अनाचार होता है तो वहां दूसरा यह सोचकर मुंह फेर लेता है कि स्वयं के साथ तो नहीं हो रहा है। जब उसके साथ होता है तो दूसरा भी ऐसा ही करता है। परिणामस्वरूप पूरे समाज में बड़े वर्ग का अनाचार, भ्रष्टाचार, तथा व्याभिचार निर्बाध गति से चलता रहता है। इसका कहीं कोई प्रतिरोध नहीं है। जरूरत है अपनेे अंदर के भय समाप्त करने की तभी आम आदमी कोई लडाई लड़ सकता है। उसे अपनी जुबान का सही समय पर उपयेाग करना चाहिये और अपनी पीड़ा सभी के सामने कहकर हल्का होने की बजाय वहां कहना चाहिये जहां समस्या का हल होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि सामान्य लोग धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्रीय आधार बने समूहों के पिछलग्गू होने की बजाय व्यक्ति आधार पर एक दूसरे से संपर्क बनायें तथा अपनी सामूहिक अभिव्यक्ति का एक स्वर दें। प्रस्तुत है इस पर एक स्वरचित शेर
आखिर यह सिलसिला कब तक चलता रहेगा।
यूं जमाना खास लोगों के जुर्म सहेगा।
शायद जब तक कुदरत से तोहफे में मिली
जुबान से अपना दर्द पूरी ताकत से नहीं कहेगा।।

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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com

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