एक राम वह हैं जो
भक्तों की भक्ति से प्रसन्न हो
उनको दिख जाते हैं,
एक राम वह भी हैं जो
आस्था के दलालों के हाथ
बाज़ार में बिक जाते हैं।’
पर हे राम! आप धन्य हो
केवल नाम लेने से ही रावण हो गया अमर
मगर जिन पर आपकी कृपा हो
वही बाल्मीकी और तुलसी जैसा
आपका चरित्र लिख पाते हैं।
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अयोध्या के राम
सभी के हो गये,
जगह जगह पर बने राम मंदिर
उनमें कभी न भटके
न कभी वन में खो गये।
सर्वशक्तिमान के रूप और अलग अलग नामों पर
बने हैं दरबार
भक्त लुटाते
दलाल भरते घरबार
मगर राम को हृदय से जिसने स्मरण किया
वह उसी के हो गये।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com
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शब्द अर्थ समझें नहीं अभद्र बोलते हैं-दीपकबापूवाणी (shabd arth samajhen
nahin abhardra bolte hain-Deepakbapuwani)
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*एकांत में तस्वीरों से ही दिल बहलायें, भीड़ में तस्वीर जैसा इंसान कहां
पायें।*
*‘दीपकबापू’ जीवन की चाल टेढ़ी कभी सपाट, राह दुर्गम भाग्य जो सुगम पायें।।*
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5 वर्ष पहले
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