शहर में अमन देखकर
कुछ हैरान हैं
कुछ लोग परेशान हैं
बंद हैं दुकान
छिपाये हुए हैं इंसानों को मकान
जबकि आयोजित नहीं है ‘शहर बंद’।
सच यह है कि
सारे शोहदे हो गये हैं दौलतमंद,
सर्वशक्तिमान के नाम पर
चंदा बटोरने का व्यापार कर कहलाये अक्लमंद,
सब खुश हैं
फिर भी अमन के मसीहा
लोगों को समझा रहे हैं,
खतरों की पहेली बुझा रहे हैं,
कुछ काम तो उनको भी चाहिये
वरना कौन उनको पहचानेगा,
शोहदों पर अपना कब्जा
नहीं दिखायेंगे तो
हर कोई उन पर हथियार तानेगा,
लोग भी खुश है यह सोचकर कि
उनके रास्ते खुले रहेंगे
भले ही सिक्कों में तुलकर ही
शोहदे हो गये हैं अमन पसंद।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com
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