दो इंसानी बुत शिखर पर बैठे थे। नीचे तलहटी में बाज़ार चल रहा था। छोटे और बड़े व्यापारियों के बीच जगह को लेकर खींचतान तेज हो गयी थी। बड़े व्यापारियों के एक प्रतिनिधि ने छोटे व्यापारियो के प्रतिनिधि से कहा कि ‘देखो उधर शिखर पर बैठे दो महान लोग इसी विषय पर चर्चा कर रहे हैं और जब कोई समझौता हो जायेगा तब इस बाज़ार में तुम्हें कहां जगह दी जाये इसका फैसला होगा।’
छोटे व्यापारियों के प्रतिनिधि ने कहा-‘पर यह दोनों बूढ़े महानुभाव कौन है? हम तो इनको जानते भी नहीं।
बड़े व्यापारियों के प्रतिनिधि ने कहा-‘यह बाज़ार दो हिस्सों में बंटा है। दोनों हीे अपने अपने हिस्से के मालिक हैं। वह दोनों चर्चा कर रहे हैं कि बड़े और छोटे व्यापारियों में कैसे जगह का बंटवारा हो।’
छोटे व्यापारियों के प्रतिनिधि ने कहा-‘यह बाज़ार तो सार्वजनिक है। इसके मालिक कहां से आ गये। लगता है कि तुम बड़े व्यापारियों की सोची समझी साजिश है! यह कोई छद्म मालिक हैं जो तुमने बनवाये हैं। छोटे व्यापारियों को निपटाने की तुम्हारी योजना हम सफल नहीं होने देंगे!
बड़े व्यापारियों के प्रतिनिधि ने कहा-‘बकवास बंद करो। यह दोनों बाज़ार के सदस्यों के वोट से बने हैं। यहां आने वाले ग्राहकों, सौदागरों, और दलालों ने इनको बनाया है।’
छोटे व्यापारियों के प्रतिनिधि ने कहा-‘हम भी तो यहां आते हैं, पर हमने वोट नहीं दिया।’
बड़े व्यापारियों ने कहा-‘यह तुम जानो! तुमने वोटर लिस्ट में नाम नहीं लिखाया होगा। वैसे भी तुम सात दिन में एक बार यहां आते हो, पर हम तो यहां रोज चक्कर लगा जाते हैं कि कहीं बाज़ार पर किसी ने कब्जा तो नहंी कर लिया। कई बार बाहरी लोग भी आकर यहां जमने का प्रयास करते हैं हम ही उनको भगाते हैं। अब अधिक विवाद न करो, वरना तुम्हें भी बाहरी घोषित कर देंगे। अशांति फैलाने और अतिक्रमण के आरोप में बंद करवा सकते हैं। हां, तुम अपने साथियों से अलग होकर कोई फायदा लेना चाहो तो इसके लिये हम तैयार हैं। उन सबको तो तलहटी में भी दूर नाले के पास जगह देंगे। तुम्हें जरूर अच्छी जगह सहयोग देने पर प्रदान कर सकते हैं।
बड़े व्यापारियों के प्रतिनिधि ने छोटे व्यापारियों के प्रतिनिधि को कुछ धमकाया और कुछ समझाया। वह वापस लौट आया।
उसने वापस आकर अपने साथियों को अपनी बात अपने तरीके से समझाई। अलबत्ता अपने फायदे वाली बात वह छिपा गया। अब छोटे व्यापारी शिखर की तरफ देखने लगे। कुछ तो शिखर पर चढ़कर यह देखने चले गये कि दोनों कर क्या कर रहे हैं? कुछ को ख्याल आया कि चलकर उनसे सीधी बात कर लें।
वहां जाकर देखा तो दोनों चाय पी रहे थे। वहां खड़े सुरक्षा कर्मियों ने उनको घेर रखा था। इसलिये छोटे व्यापारी उनके पास जा नहीं सकते थे। अलबत्ता दूर से उनको कुछ दिखाई और सुनाई दे रहा था।
एक इंसानी बुत कह रहा था ‘यार, चाय तो हमारे घर के नीचे होटल वाला बनाता है। मैं तो उससे मंगवाकर पीता हूं। समोसा तो तुम्हारे वाले हिस्से में एक हलवाई बनाता है और मेरा सारा परिवार उसका प्रशंसक है।’’
दूसरा बोलने लगा-‘अच्छा! वैसे तुम्हारे हिस्से में एक कचौड़ी वाला भी है जो इतनी खस्ता बनाता है कि जब तक मेरी पत्नी सुबह मंगवाकर खाती नहीं है तब तक उसको चैन नहीं पड़ता। मेरी बेटी भी उसकी फैन है।’
वह तमाम तरह की बातें कर रहे थे, पर नहीं हो रही थी तो छोटे व्यापारियों की जगह की बात! बहुत सारी इधर उधर की बातें करने के बाद दोनों उस मार्ग से निकल गये जहां लोगों की उपस्थित नगण्य थी।
इधर छोटे व्यापारी लौटकर आये तो बड़े व्यापारियों के प्रतिनिधि ने उनको बताया कि समझौता हो गया है और जल्दी घोषित हो जायेगा।
छोटे व्यापारियों ने कहा-‘यह तो बताओ, समझौता हुआ कब! हमने तो दोनों की बातें सुनी थी। दोनों यहां के बूढ़े बाशिंदे हैं जो अभी बहुत दिन बाहर रहने के बाद यहां लौटे हैं और बाज़ार के मालिक कैसे बन गये हमें पता नहीं! अलबत्ता दोनों के बीच बाज़ार के बारे में नहीं बल्कि दुकानों पर मिलने वाले सामान की चर्चा हुई।
बड़े व्यापारियों के प्रतिनिधि ने कहा-‘देखो, अधिक बकवास मत करो। दोनों महान हैं! इसलिये ही तो शिखर पर बैठ कर बात करते हैं। तुम्हारी तरह नहीं कि चाहे जहां बकवास करने लगे।’’
छोटे व्यापारियों में से एक ने कहा-‘तुम चाहे कुछ भी करो, हम तो बाज़ार के मुख्य द्वार पर ही दुकानें लगायेंगे जैसे कि पहले लगाते थे।’
बड़े व्यापारियों के प्रतिनिधि ने कहा कि ‘ज्यादा गलतफहमी नहीं पालना! यहां के रखवाले भी हमारे से चंदा पाते हैं इसलिये उनका लट्ठ भी तुम पर ही चलेगा। वह इंसानी बुत हमारे कहने से शिखर पर चढ़े थे और उतर गये। तुम इस शिखर सम्मेलन का मतलब तब समझोगे जब इसका नतीजा सुनने को मिलेगा।’
इतने में छोटे व्यापारियों का प्रतिनिधि भी वहां आया और बड़े व्यापारियों के प्रतिनिधि के गले मिला। दोनों के बीच में दो नये लोग थे जो शायद प्रवक्ता थे। उन दोनों ने घोषणा की कि ‘शिखर सम्मेलन में समझौते के अनुसार छोटे व्यापारियों को एकदम पीछे जगह दी जायेगी। सबसे पहले बड़े व्यापारी, फिर उनके मातहतों तथा उसके बाद उनके ही दलालों को दुकान लगाने की अनुमति मिलेगी। इसके बाद जो जगह सबसे पीछे बचेगी वह छोटे व्यापारियों को देने का अनुग्रह स्वीकार कर लिया गया है और यह इस सम्मेलन की उपलब्धि है।’
बड़े व्यापारियो, उनके मातहतों तथा दलालों ने जोरदार तालियां बजाई। छोटे व्यापारी चिल्लाने लगे कि ‘हम आग्रह नहीं हक मांग रहे थे। वैसे भी यह बाज़ार सार्वजनिक है और इस सभी का हक है। हम नहीं मानेंगे इस समझौते को!’
छोटे व्यापारियों का प्रतिनिधि अपने साथियों ने बोला-‘देखो भई, भागते भूत की लंगोटी ही सही। अगर इस बाज़ार में बने रहना है तो कोई भी जगह ले लो वरना बड़े व्यापारी उसे भी हड़प लेंगे।’
छोटे व्यापारियों का गुस्सा अपने प्रतिनिधि पर फूट पड़ा। वह उसे मारने के लिये पिल पड़े तो बड़े व्यापारियों के लट्ठधारी रक्षकों ने उसको बचाया। बाहर से पहरेदार भी आ गये। तब छोटे व्यापारी सहम गये। उस समय सारा माज़रा देख रहे एक बुद्धिमान ने छोटे व्यापारियों से कहा-‘तुम लोगों ने इस बाज़ार को बसाया पर अब इसे बड़े व्यापारियों ने हथिया लिया है। तुम तो जानते ही हो कि इस संसार में बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है। यही हाल है। यह तो तुम मगरमच्छ बन जाओ या घास की तरह झुकने सीख लो।’
एक छोटे व्यापारी ने उससे पूछा-‘यह शिखर सम्मेलन क्या हुआ? हम तो कुछ समझे ही नहीं। वहां हमने इंसानी बुतों को कोई समझौता करते हुए नहीं देखा। एक बोलता तो दूसरा सोता था और दूसरा बोलता तो पहला सोता था।’
बुद्धिमान ने कहा-‘मित्र, वह इंसानी बुत इन बड़े व्यापारियों ने ही वहां भेजे थे। जो इन्होंने तय किया उसमें उनकी दिलचस्पी नहीं थी! वह तो इस बारे में कुछ नहीं जानते थे। मालिक तो वह नाम के हैं, वास्तव में तो वह इन बड़े व्यापारियों के प्रायोजित इंसानी बुत थे।
एक छोटे व्यापारी ने कहा-‘पर इन दोनों की मुलाकात को शिखर सम्मेलन क्यों कहा गया।’
बुद्धिमान ने कहा-‘बड़े लोगों की आदत है कि वह महान होते नहीं पर दिखना चाहते हैं। तलहटी में भी जिनको कोई नहीं पूछता उनको शिखर पर बैठकर ही इज्ज़तदार बनाकर लाभ उठाया जा सकता है। लोगों से दूरी उनको बड़ा बनाती है और शिखर पर बैठने से उनकी बात में वज़न बढ़ जाता है भले ही फैसले सड़कछाप लोग सड़क पर प्रायोजित कर लेते हैं।’
छोटे व्यापारियों के पास कोई मार्ग नहीं था। शिखर सम्मेलन ने उनको तलहटी में भी बहुत नीचे दूर नाले के पास पहुंचा दिया था।
--------------
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियरhttp://anant-shabd.blogspot.com
-----------------------------
‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
usdtad aur shagird
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें