मुंबई फिल्मों के उस अभिनेता का वह विज्ञापन अंग्रेजी में अनुवाद कर अमेरिका में भी दिखाया जाना चाहिए क्योंकि उसकी जरूरत भारत में कम वहीं ज्यादा दिखती है जहां 1655 भारतीय छात्रों के पांव में रेडियो कालर बांध दिया गया है। वैसे ही रेडियो कालर जो भारत में संरक्षित वन्य क्षेत्रों में पशुओं की गतिविधियों पर नियंत्रण रखने के लिये पहनाये जाते हैं। टीवी पर मुंबईया फिल्मों के इस अभिनेता का विज्ञापन आता है जिसमें वह लोगों को समझाता है कि विदेश से आये लोगों को मेहमान मानकर उनकी इज्जत करना चाहिए। एक जगह तो वह यह भी बताता है कि यह तो हमारी रोजी रोटी का आधार हैं।’’
यह अभिनेता पिछले कई दिनों से अपनी फिल्में अमेरिका में ऑस्कर के लिये भेज रहा है मगर अभी तक उसे वह नहीं मिला। वैसे देखा जाये तो वह क्या सारे अभिनेता विभिन्न पूंजीपतियों के प्रथक प्रथक समूहों का मुखोटा है जो क्रिकेट हो या फिल्म उससे कहंी न कहीं जुड़ जाते हैं। अवसर मिले तो राजनीति में भी चले आते हैं।
ऐसे में उस अभिनेता के बारे में यह माना जा सकता है कि वह किसी पूंजीपतियों के समूह का मुख हैं जो अमेरिका को खुश करना चाहता है। हम ऐसे ही उसके अज्ञात समूह के रणनीतिकारों को यही सलाह देंगे कि उसका यह मेहमानवाजी का उपदेश अब अमेरिका में भी दिखायें। हां, हम यह नहीं कह सकते कि इससे उनके अमेरिकी आका कहीं नाराज न हो जायें, और अभी तक ऑस्कर से उस अभिनेता की फिल्म विचार के लिये अपने यहां आने देते हैं फिर संभव है कि यह सुविधा भी बंद कर दें।
किस्सा यह है कि आंध्र प्रदेश के 1655 छात्र अमेरिका में स्थापित के विश्व विद्यालय में पढ़ने के लिये गये। इसके लिये उनको वीजा दिया गया जो कि अमेरिकी सरकार के जिम्मेदारी अधिकारियों बिना मिलना संभव नहीं था। पता लगा कि वह विश्वविद्यालय या यूनिवर्सिटी फर्जी है-यह भी बताया गया कि उसका पंजीयन नहीं हुआ इसलिये छात्रों का वीजा रद्द कर दिया गया। अमेरिकी अधिकारियों फर्जी विश्वविद्यालय के लिये वीजा कैसे जारी किया, इसकी जानकारी अभी तक नहीं मिला पर यह तय है कि कहीं न कहीं भ्रष्टाचार हुआ है।
यही छात्र जब अमेरिकी अधिकारियों से शिकायत करने पहुंचे तो उनको रेडियो कॉलर पहना दिया गया कि ताकि उन पर नज़र रखी जा सके। यह अलग से चर्चा का विषय हो सकता है कि अमेरिका में छात्र गये क्यों? क्या वह शैक्षणिक वीजा की आड़ में वहां कोई अपने रहने का जुगाड़ करना चाहते थे?
एक सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें अमेरिकी अधिकारी स्वयं शामिल हैं इसलिये वह अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। दूसरा यह भी कि जो लोग केवल भारतीयों को फर्जी काम करने वाला समझते हैं वह भी जान लें कि यह काम अमेरिकी भी करते है। 1655 भारतीय छात्रों के साथ पशुता का व्यवहार होने के लिये जहां भारत में अमेरिकी मोह तथा वहां के अधिकारियों के ईमानदार होने का भ्रम हो तो जिम्मेदार है पर साथ वहां के प्रशासन की पोल भी खोलता है।
भारत में विदेशी पर्यटकों को बड़ी हैरानी से देखा जाता है पर उतना दुर्व्यवहार नहीं होता जितना हमारे उन अभिनेता के विज्ञापन में दिखाया जाता है। यह अलग बात है कि सवारी आदि में उनसे पैसा ज्यादा ऐंठ लिया जाता हो पर यह दुर्व्यवहार की श्रेणी में नहीं आता। हम तो यहीं कहेंगे कि मेहमानवाजी के बारे में इस देश से ज्यादा विदेशियों को सिखाने की जरूरत है। यह भी स्पष्ट करें कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था विदेशों पर आधारित है फिर भी वहां भारतीयों का सम्मान नहीं है जबकि भारत में केवल सभ्य तबके में ही अमेरिका के प्रति आकर्षण है पर अर्थव्यवस्था का आधार अभी भी यहां की कृषि ही है। मतलब यह कि अगर विदेशी सहारा न हो तो कई लोगों के कमीशन बंद हो जायेंगे। स्विस बैंकों के खाते भी खाली हो सकते हैं पर भारतीय बैंक अपने देश की दम पर टिके रहेंगे। ंफिर भी विदेशी सैलानियों या नागरिकों के साथ ऐसी वैसी बातें नगण्य ही होती हैं। ऐसे में उस अभिनेता के अभिनीत विज्ञापन को अमेरिका और आस्ट्रेलिया में भी दिखाया जाये तो कुछ बात बने।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियरhttp://anant-shabd.blogspot.com
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