हम सब भोले हैं या मूर्ख, हृदय ने प्रश्न उठाया।
पर तय है हमारे अज्ञान ने ज्ञान का सूरज उगाया।।
सभी जानते हैं कि शरीर नश्वर है जीव का,
मगर यम के हमले ने फिर भी हर बार सभी को रुलाया,
विश्व समाज के एक समान होने का सपना देखते,
जबकि तीन तरह के होंगे इंसान, श्रीगीता ने सुझाया।
खाने के लिये मरे जाते हैं सभी लोग हर समय,
भूख ने सहज योग से असहजता की तरफ बुलाया।
नये ताजे और स्वादिष्ट से पकवानों से सजाते पेट,
फिर भी ‘दिल मांगे मोर’,हर नयी चीज ने लुभाया।।
कांटों में खिलता गुलाब, कीचड़ में खिलता कमल,
यूं ही मूर्खों की करतूतों ने ज्ञानियो को सत्य सुझाया।
पाखंड, लालच और अहंकार से भरे अपने यहां के लोग
फिर भी प्रशंसनीय है, देश को विश्व गुरु जो बनाया।।
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सभी जानते हैं कि शरीर नश्वर है जीव का,
मगर यम के हमले ने फिर भी हर बार सभी को रुलाया,
विश्व समाज के एक समान होने का सपना देखते,
जबकि तीन तरह के होंगे इंसान, श्रीगीता ने सुझाया।
खाने के लिये मरे जाते हैं सभी लोग हर समय,
भूख ने सहज योग से असहजता की तरफ बुलाया।
नये ताजे और स्वादिष्ट से पकवानों से सजाते पेट,
फिर भी ‘दिल मांगे मोर’,हर नयी चीज ने लुभाया।।
कांटों में खिलता गुलाब, कीचड़ में खिलता कमल,
यूं ही मूर्खों की करतूतों ने ज्ञानियो को सत्य सुझाया।
पाखंड, लालच और अहंकार से भरे अपने यहां के लोग
फिर भी प्रशंसनीय है, देश को विश्व गुरु जो बनाया।।
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लेखक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर
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