लड़खड़ाये थे हमारे कदम
इसलिये रास्ते में गिरे पड़े थे
बेहोशी की हालत में
कौन सुध लेता
होश में चिल्लाये
तब भी आते जाते लोगों ने
कर दिया अनसुना
मानो उनकी आंखों और कानों पर
बड़े ताले जड़े थे।
कहें दीपक बापू
मर गये हैं ज़माने के जज़्बात,
अपनी जिंदगी बचाने के लिये
जहां लोग रख देते दूसरों के सीने पर लात,
सड़क पर दरिंदों के हमले पर क्या रोऐं
वहां फरिश्तों के वेश में दिखे लोग
बेजान बुतों की तरह खड़े थे।
मददगार बनना था जिनको
हमारे घावों पर हमदर्दी जताने के साथ
मदद का नारा लगाते हुए
इसी ज़माने के लोग अड़े थे।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
इसलिये रास्ते में गिरे पड़े थे
बेहोशी की हालत में
कौन सुध लेता
होश में चिल्लाये
तब भी आते जाते लोगों ने
कर दिया अनसुना
मानो उनकी आंखों और कानों पर
बड़े ताले जड़े थे।
कहें दीपक बापू
मर गये हैं ज़माने के जज़्बात,
अपनी जिंदगी बचाने के लिये
जहां लोग रख देते दूसरों के सीने पर लात,
सड़क पर दरिंदों के हमले पर क्या रोऐं
वहां फरिश्तों के वेश में दिखे लोग
बेजान बुतों की तरह खड़े थे।
मददगार बनना था जिनको
हमारे घावों पर हमदर्दी जताने के साथ
मदद का नारा लगाते हुए
इसी ज़माने के लोग अड़े थे।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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