10 जनवरी 2014

राजनीति का सबक कविवर रहीम से सीखा जा सकता है-हिन्दी अध्यात्मिक चिंत्तन(rajniti ka sabak kavivar rahim se seekha ja sakta hai-hindi adhyatmik chinttan,lesson of politics from rami darshan,hindi thought article))



      वर्ष 2014 के लोकसभा के आमचुनाव निकट आ रहे हैं। अगर हम भारतीय इतिहास पर दृष्टिपात करें तो पायेंगे कि भारत में शासन करने को लेकर अनेक संघर्ष हो चुके हैं, जिनमें भारी खूनखराबा हुआ। कोई राजा जीता तो कोई हारा पर हारने वाले राज्य की प्रजा का बुरा हाल ही होता रहा। अब लोकतंत्र के आधार पर चुनाव प्रणाली है जिसमें आमजन अपना प्रतिनिधि चुनते हैं जो राज्यकर्म का निरीक्षण ही कर सकता है, उसके पास न तो प्रत्यक्ष कर्म करने का दायित्व होता है न ही दंड देने का अधिकार उसे मिलता है।  अलबत्ता चुनाव आने पर मतदाताओं को प्रभावित करने के लिये तमाम तरह के स्वांग रचे जाते है।  एकबार चुने जाने पर अधिकतर जनप्रतिनिधि अपने मतदाओं  से विमुख हो जाते हैं। बहुत कम ऐसे होते हैं जो चुनाव के बाद भी जनता से संपर्क बनाये रखते हैं।  यही कारण है कि हमारे देश में लोकतंत्र होने के बावजूद लोगों का अपने मतदान करने के प्रति रुचि का अभाव देखा जाता है। यह अलग बात है कि चुनाव आने पर तमाम तरह की नाटकीयता के प्रभाव में आकर कुछ लोग मतदान अवश्य करते हैं पर वह भी उन लोगों कोग अपना प्रतिनिधि चुनते हैं जो प्रचार माध्यमों में प्रचारित हो या वह स्वयं ही घर घर जाकर अपनी जानकारी दे।  इस तरह की क्रिया पर चुनाव लड़ने वाले का पैसा खर्च आता है जिसके लिये उसे थैलीशाहों पर ही निर्भर होना पड़ता है।  चुनाव बाद यही थैलीशाह जनप्रतिनिधियों पर अपना प्रभाव जमाकर खर्च धन से कई गुना वसूल करते हैं।  यही कारण है कि हमारे देश के अनेक बुद्धिमान लोग लोकतंत्र का उपहास उड़ाते हैं हालांकि वह भी इस तरह की व्यवस्था के विकल्प पर अपनी कोई राय नहीं दे पाते।
कविवर रहीम कहते हैं कि
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रहिमन राज सराहिए, ससि सम सुखद जो होय।
कहा बायुरी भानु है, तप तरैयन खोय।।
     सामान्य हिन्दी में भावार्थ-उसी राज्य की सराहना करना चाहिये जहां सभी प्रकार के लोगों का हित हो। जहां कर्मठ व्यक्ति को चमकने का अवसर मिले तथा समाज तनाव मुक्त बना रहे।
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहां काम आवै, सुई, कहा करै तलवारि।।
     सामान्य हिन्दी में भावार्थ-बड़े लोगों की उपस्थिति मं छोटे लोगों का महत्व कम नहीं करना चाहिए। जहां सुई काम आ सकती है वह तलवार काम नहीं कर पाते, यह कभी नहीं भूलना चाहिए।
      चूंकि जनप्रतिनिधि पद पर आने के बाद आमजन की परवाह नहीं करते इसकी वजह से उन्हें फिर चुनाव में पराजय भी झेलनी पड़ती है। यह अलग बात है कि जनता की याद्दाश्त कमजोर होने का लाभ उन्हें एक बार हारने के बाद फिर जीत के रूप में मिलता है। इस तरह यह क्रम चलता है और देश की खराब हालात बुद्धिमानों की चिंता का विषय बने रहते हैं।
      आजकल देश के राजनीतिक परिदृश्य में एक ऐसे दल का उदय हुआ है जिसके लोग एक प्रदेश विधानसभा चुनाव में सफलता के  बाद भी जनता के प्रति चिंता का भाव दिखाते हुए प्रचार कर रहे हैं। उनका मुख्य लक्ष्य 2014 के लोकसभा चुनाव में विजय प्राप्त कर संपूर्ण देश में शासन की जिम्मेदारी प्राप्त करना है। कुछ विद्वान लोगों को उनके प्रयास नाटकबाजी लगती है तो कुछ उन्हें नये राजनीतिक स्वरूप का संवाहक मान रहे हैं।  अभी उनके विधानसभा चुनाव जीते एक महीना भी नहीं हुआ है और लोकसभा चुनाव निकट हों।  इसलिये यह कहना कठिन है कि यह नाटकबाजी है या उस दल के लोग अथक प्रयास आगे भी जारी रखेंगे। इसका पता तो लोकसभा चुनाव के कम से कम दो महीने बाद ही चल सकेगा।  एक बात तय है कि जिन लोगो को राज्य करना है उन्हें सभी वर्गों के लोगों के प्रति समभाव रखते हुए प्रजाहित के काम करने चाहिए वरना समाज में जो विद्रोही भाव हैं उसे लंबे समय तक धोखे में नहीं रखना चाहिए।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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