10 अप्रैल 2014

भलाई के सौदे में लक्ष्य साधना-हिन्दी व्यंग्य कविता(bhalai ke saude mein lakshya sadhna-hindi satire poem)



जहां शब्दों से लक्ष्य साधना हो
वहां सोचकर बोला नहीं जाता,
जहां अपना पेट भरना हो
थाली में रखा खाना तोला नहीं जाता।
कहें दीपक बापू आग लगाकर हुड़दंग की भट्टी में
कई लोग रोटी पकाते हैं,
वह स्वांग रचते हैं कभी हंसने तो कभी रोने का
सबकी नजर उनकी तरफ बनी रहे
इसलिये कभी गंभीर चिंतक
कभी हास्य की अदाओं से लोगों को छकाते हैं,
तरक्की के आसमान पर चढ़ने के लिये
बनाते हैं हमदर्दी की सीढ़ियां,
फिर उनको गिरा देते हैं
ताकि जमी रहे शिखर पर
उनकी आने वाली पीढ़ियां,
जहां की भलाई का भी सौदा होता है
दाम का लेनदेन होता है दीवारों के पीछे
चौराहे पर बताया नहीं जाता।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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