2 जून 2015

गर्मी में बादल छाना आशंका कि आशा-लघु हिन्दी व्यंग्य(garmi mein badal aashanka ki aasha-hindi short satire article)

    ‘आज दिल्ली में बादल छाये रहने की आशंका है’-यह वाक  एक हिन्दी समाचार टीवी चैनल पर उद्घोषक है। जिन लोगों ने अपनी शिक्षा हिन्दी माध्यम से प्राप्त की है उनके लिये अक्सर इन समाचार टीवी चैनलों पर  आशा, आशंका और संभावना जैसे शब्द दर्शक की गंभीर बुद्धि में चल रही गेयता के दौर में अवरोध पैदा करते हैं।
   इस समय दिल्ली में गर्मी पड़ रही है। अगर बादल छायेंगे तो तापमान कम होगा-यानि वहां के नागरिकों के लिये यह खबर इस आशा के कारण उत्साहवर्द्धक हो सकती है कि वह अपने दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये बाहर निकल सकतेे हैं। यहां हिन्दी भाषा का शब्द संभावनाका उपयोग देश में रहने वाले अन्य क्षेत्र के लोगों के लिये निरपेक्ष भाव प्रदर्शन में हो सकता है।  गर्मी में बादलों का छाना की आशंका नहीं हो सकती। हां, अगर सर्दी हो तो यह आशंका बन जाती है पर तब भी संभावना शब्द ही उपयोग किया जाना चाहिये।
     हिन्दी की यह खूबी है कि वह जैसी लिखी जाती है वैसी बोली जाती है। हिन्दी पाठकों और दर्शकों में भी एक खूबी होती है कि वह बोलचाल में भले ही वह दूसरी भाषाओं के शब्द स्वीकार करते हैं पर जहां वह पठन पाठन, श्रवण अथवा अध्ययन के लिये तत्पर होते हैं तब शुद्ध हिन्दी उनके लिये अधिक गेय होती है। इस बात को हिन्दी के व्यवसायिक प्रकाशन नहीं जानते यही कारण है कि आज भी अंग्रेजी के संस्थानों से स्तरहीन माने जाते हैं। ऐसा लगता है कि हिन्दी समाचार चैनल वाले अपने यहां नियुक्त कर्मचारियों की भाषाई योग्यता से अधिक किन्ही अन्य योग्यताओं पर दृष्टिपात करते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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