15 नवंबर 2015

विज्ञापन के लिये बवाल जुटाते-दीपकबापू वाणी(Vigyapan ke liye bawal Jutate-DeepakBapuWani)


अपने दिल में लोग नहीं झांकते, नाकामी का दोष ज़माने पर टांकते।
दीपकबापू पुरानी राह समझें बेकार, नयी बनी पर भी चलें हांफते।।
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वातानुकूलित कक्ष में बैठे बुद्धिमान, समाज सुधार का बोझ उठाये हैं।
दीपकबापू ले रहे चंदा दान, जुलूस में हजारों गरीब देव जुटाये हैं।।
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पर्दे पर हर रोज सवाल उठाते, विज्ञापन के लिये बवाल जुटाते।
दीपकबापू बीच बहस में फंसे, विद्वान मुफ्त में शब्द लुटाते।।
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कहीं तेल कहीं घी के दिये जले, मन गयी यूं सबकी दिवाली।
 ‘दीपकबापू बूझ रहे अब  हिसाब, दिल में कितनी खुशियां डाली।
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राजपद का मोह किसे नहीं, मिलने पर मद हो ही जाता है।
दीपकबापू भलाई बनी पेशा, दाम का गुलाम पद हो ही जाता है।।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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