22 जून 2016

भेड़िये की खाल में शेर-हिन्दी व्यंग्य कविता (Bhed ki Khal meih sher-Hindi Satire Poem)

अपने घर में शेर
शिकार पर बाहर निकले
ढेर हो गये।

पढ़ी चंद किताबे
वह अब मानने लगे कि
सवा सेर हो गये।

कहें दीपकबापू भाग्य का खेल
कहने से गुरेज क्यों करें
काबलियत के पैमाने
भूल गया ज़माना
भेड़िये की खाल में भी
कई शेर हो गये।
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