ताउम्र एड़ियां रगड़कर चलते रहे
सिंहासन पर बैठने की बात
कभी समझ ही नहीं आई।
यह तय रहा हमेशा
पैदा मजदूर की तरह हुए हैं
वैसे ही छोड़ जायेंगे दुनियां
जिसके लिये बहायेंगे पसीना
मिलेगी नहीं वह खुशियां
कभी चली ठंडी हवा तो
उसने ही दिया सुकून
दूसरे की चाहतें पूरी करते रहे
अपनी सोचकर आंखें भर आई।
फिर भी नहीं गम है
अपनी शर्तो पर जिये
यह भी नहीं कम है
गरीबों पर जग हंसा तो
बादशाहों की भी मखौल उड़ाई।
हमने पैबंद लगाये अपने कपड़ों में
उन्होंने सोने से अपनी देह सजाई।
जिंदगी का फलासफा है
वैसी होगी वह जैसी तुमने नजरें पाई।
दूसरे का खून निचोड़कर
जिन्होंने अमीरी पाई
बैचेनी की कैद हमेशा उनके हिस्से आई।
अपने ही पसीने में नहाये हम तो क्या
हमेशा चैन की बंसी बजाई।
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राम का नाम लेते हुए महलों में कदम जमा लिये-दीपक बापू कहिन (ram nam japte
mahalon mein kadam jama dtla-DeepakBapukahin)
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*जिसमें थक जायें वह भक्ति नहीं है*
*आंसुओं में कोई शक्ति नहीं है।*
*कहें दीपकबापू मन के वीर वह*
*जिनमें कोई आसक्ति नहीं है।*
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*सड़क पर चलकर नहीं देखते...
6 वर्ष पहले
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