17 अक्तूबर 2009

अपनी असलियत मत बदलना-हिंदी व्यंग्य कविता (apni asliyat mat badlana-hindi vyangya kavita)

सारे जहां की प्यास मिटा सको
तुम वह समंदर बनना.
भेजे जो आकाश में पानी भरकर मेघ
जहां लोग पानी को तरसे
वहीँ समन्दर से लाया अमृत बरसे
अपने किये का नाम कभी न करना.

गंगा पवित्र नदी कहलाती है,
पर अपने किनारे की ही प्यास बुझाती है,
देवी की तरह पुजती पर
लाशों से मैली भी की जाती है,
जब तक समन्दर तक पहुँचती
तब तक समेटती है दूसरों के पाप,
जहां है इज्जत का वरदान
वहां साथ लगा है बदनामी का शाप,
तुम बने रहना हमेशा खारे
किनारे आये प्यासों की प्यास बुझाने के लिए
दिखावे के पुण्य की लालच में
अपनी असलियत मत बदलना.

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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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