वह शर्मिन्दा नहीं
चाहे तुम्हें वह रास्ता बताया
जिस पर खुद कभी चले नहीं.
तुम्हारे पांवों के छाले बतलाते हैं
कि उनके कहने पर ही कदम-दर-कदम
अपने बढ़ाते रहे उस मंजिल की तरफ
जो जमीन पर नहीं बसी थी
ख्यालों में थी उनके कहीं.
उन्हें वास्ता था
तुम्हारी लाचारी से
जिस पर हमदर्दी दिखाकर
वह अपने लिए इज्जत जुटा रहे थे
उनकी अदाओं पर
लोग वाह वाह लुटा रहे थे
तुम उनके लिए एक शय से ज्यादा कभी थे ही नहीं
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
राम का नाम लेते हुए महलों में कदम जमा लिये-दीपक बापू कहिन (ram nam japte
mahalon mein kadam jama dtla-DeepakBapukahin)
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*जिसमें थक जायें वह भक्ति नहीं है*
*आंसुओं में कोई शक्ति नहीं है।*
*कहें दीपकबापू मन के वीर वह*
*जिनमें कोई आसक्ति नहीं है।*
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*सड़क पर चलकर नहीं देखते...
6 वर्ष पहले
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