26 जनवरी 2010

निकल जायेगा तेल-हिन्दी हास्य कविता (nikal jayega tel-hindi hasya kavita)

फंदेबाज आया दनदनाता और बोला

‘दीपक बापू सुना है साहित्य के इनाम बांटने वाली

किसी संस्था का एक कंपनी से हो गया है तालमेल,

कर रहे हैं लेखक उसका विरोध.

तुम भी दिखलाओ क्रोध,

मौका अच्छा है लेखकों में नाम कमाने का,

नहीं है मौका यह गंवाने का,

जम जाये शायद तुम्हारे लिये किसी पुरस्कार का खेल।’



सुनकर पहले तो चैंके

फिर इंटरनेट पर कीबोर्ड पर हाथ नचाते

कहैं दीपक बापू

‘कमबख्त, हमारा लिखा कभी पढ़ना नहीं,

बस, जहां देखो  इनाम की बात

उम्मीद हमारे अंदर आकर जगाना वहीं,

तुम्हें नहीं मालूम

दिग्गज साहित्यकारों के नज़र में

हास्य कविताएं कभी साहित्य नहीं होती,

कवि वही है जो खुद एक भी आंसु न बहाये

पर लिखे ऐसा कि पढ़कर जनता रोती,

हमसे बेहतर लिखने वाले बहुत सारे लेखक

जोरदार लिखते रहे,

उनके नाम पर एक भी पुरस्कार नहीं

पर अविस्मरणीय है उनके शब्द

जो उन्होंने कहे,

वैसे सच कहें कि इनाम बांटने वाली संस्था का

प्रायोजित कंपनी से हुआ है जो मेल,

हम जैसे अदना को मिलने की तो भूल जाओ

बड़ों बड़ों का बिगड़ जायेगा खेल।

न किसी ने पहले पूछा

न कोई आगे पूछेगा

जब क्रिकेट, फिल्म और पत्रकारिता में

चल रहा है कंपनियों का खेल

चलने दो साहित्य के साथ उनका मेल।

हम तो कवि हैं

कविता करते जायेंगे,

पुरस्कारों की भीड़ में शायद ही

कभी अपना नाम पायेंगे,

अलबत्ता कहो तो समर्थन करने लगें

शायद जम जाये अपने लिये भी पुरस्कार का खेल।

बड़े बड़े लोग कतार में लगे हैं,

जीत लिये हैं बहुत सारे पुरस्कार

अब दूसरे के पीछे भगे हैं,

न तो विरोध में

न क्रोध में अपना नाम चमकेगा,

नक्कारखाने में तूती की तरह बजेगा,

निकल जायेगा कीबोर्ड पर ऐसे ही तेल।


कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com

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1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

गणतंत्र दिवस के राष्ट्रीय पर्व पर आपका एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं अनेक शुभकामनाएँ.

सादर
समीर लाल

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