वादों की फुलझड़ी जलाकर वह
रोज लोगों के साथ दिवाली मनाते हैं,
भूल जाते हैं अगले ही क्षण
होली का मजाक भी इस तरह बनाते हैं।
बाज़ार के सौदागरों ने कैद कर लिये हैं चेहरे
अपने दौलत के कैमरे में
जो उन्हें ही दिवाली और होली के पर्व मनाते दिखाते
आम इंसान तो है एक बेजान चीज
खुशी में हंसना
गम में रोना
अब प्रायोजित हो गया है
तयशुदा चेहरे ही हर मौके पर
अपनी अदाकारी करते नज़र आते हैं।
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लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior
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