14 मई 2011

मूर्तियों में अमरत्व-हिन्दी हास्य कविता (murtiyon mein amartva-hindi hasya kavita)

समाजसेवक जी पहुंचे
अपने गुरु के पास और बोले
‘‘गुरुजी,
बरसों से समाज सेवा का स्वांग रचाया,
खूब कमाई की
मेरा घर महल जैसा हो गया
तो आपका आश्रम भी
फाइव स्टार जैसा सजाया,
मगर यह कमबख्त
जीते जी अमर होने की इच्छा
कभी पूरी न कर पाया,
उसके लिये गरीबों का भला
करते हुए मरना जरूरी है,
पर आप जानते हैं कि
मेरी जिंदगी परिश्रम से कितनी दूरी है,
फिर मैं अमरत्व का सुख
जीते जी देखना चाहता हूं
इसका कोई उपाय मुझे नजर नहीं आया।’

सुनकर मुस्करायें गुरुजी
और बोले
‘‘भईया,
अगर अमरत्व पाना है
तो जरूरी यहां से मरकर जाना है,
फिर भी अमरत्व का सुख भोगना है
तो अपने सभी कार्यालयों में
अपनी मूर्तियां स्थापित करवाओ,
चंदे में आया पैसा उस पर खर्च करो
बैंक खाते भरने की इच्छा से मुक्ति पाओ,
अपने जन्म दिन पर
हर साल केक काटा करो,
बाकी सारे काम को टाटा करो,
अमरत्व का सुख अपने जीते जी भोगने का
यही उपाय हमारी समझ में आया,
बाकी यह बात तय है कि
मरने के बाद कोई तुमको याद करे
ऐसा कोई काम तुम्हारे हाथ से होकर
हमारे सामने नहीं आया।’’
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior

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