कितनी बार भी भूख लगी
खाने पर मिट गयी,
कितनी पर प्यास भी लगी
पानी मिलने पर मिट गयी,
मगर पड़ी जो दिल में दरारें
बनी रहीं चाहे पीढ़ी दर पीढ़ी मिट गयी।
-----------
वह लोगों में
धरती पर जन्नत लाने का
सपना सजाते हैं,
वादों को बड़ी खूबसूरती से सजाते हैं,
एक बार जो चढ़ गये सिंहासन की सीढ़ी
फिर महलों से बाहर नहीं आते हैं।
दिल मिलाने की बातें भले ही करते
मगर दरारें चौड़ी ही किये जाते हैं।
खाने पर मिट गयी,
कितनी पर प्यास भी लगी
पानी मिलने पर मिट गयी,
मगर पड़ी जो दिल में दरारें
बनी रहीं चाहे पीढ़ी दर पीढ़ी मिट गयी।
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वह लोगों में
धरती पर जन्नत लाने का
सपना सजाते हैं,
वादों को बड़ी खूबसूरती से सजाते हैं,
एक बार जो चढ़ गये सिंहासन की सीढ़ी
फिर महलों से बाहर नहीं आते हैं।
दिल मिलाने की बातें भले ही करते
मगर दरारें चौड़ी ही किये जाते हैं।
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
writer aur editor-Deepak 'Bharatdeep' Gwalior
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