1 मई 2013

धनी लोग अपनी रक्षा का सार समाज की रक्षा में ढूंढें-मज़दूर दिवस पर विशेष हिन्दी लेख (mazddor diwal par special hindi article-dhayni log apni raksha ka saar samaj ke raksha mein hi dhoondhen)



         1 मई को मजदूर दिवस पूरे विश्व में बनाया जाता है। भारत में कार्ल मार्क्स के अनुयायी इससे सार्वजनिक समारोह में उल्लास के साथ मनाते है।  आमतौर से वामपंथी और जनवादी विचारधारा से जुड़े बुद्धिमान लोग आज देश के गरीबों के लिये अनेक प्रकार के आयोजन करते हुए विश्व के पूंजीवाद पर जमकर शाब्दिक हमले करते हैं। चूंकि भारत एक श्रमप्रधान देश है इसलिये यहां कार्लमार्क्स के अनुयायी बुद्धिमानों को बहुत भीड़ देखने और सुनने  मिल जाती है। मूलतः कार्ल मार्क्स विश्व में प्रचलित धर्मों का विरोधी था।  वह कभी भारत नहीं आया इसलिये उसका धार्मिक ज्ञान सीमित था। दूसरी बात यह कि वह अध्यात्मिक ज्ञान और धार्मिक विचारधाराओं के अंतर से वह इतना परिचित नहीं था जितना एक आम भारतीय अध्यात्मिक चिंतक होता है।  उसकी नज़र में धर्म एक अफीम की तरह है जो जमकर नशा देता है पर वह यहीं  जान पाया कि पैसा, पद तथा प्रतिष्ठा का नशा भी कम बुरा नहीं है।
      वैसे तो भारतीय अध्यात्मिक चिंत्तक कार्ल मार्क्स की विचाराधारा को भारत के लिये प्रभावहीन मानते हैं पर श्रमकार्य में रत लोगों के प्रति उनकी सहानुभूति होने के कारण मजदूर दिवस मनाना उनको बुरा नहीं लगता।  दरअसल इस अवसर पर भारतीय अध्यात्म में श्रमजीवी, दरिद्र तथा लाचार मनुष्यों को सहारा देने के जो संदेश दिये गये हैं  इस दिन चर्चा का अच्छा अवसर मिलता है।
        श्रीमद्भागवगत गीता में अकुशल श्रम को हेय मानने वालों को तामस बुद्धि का माना गया है।  अकुशल श्रम  हमेशा ही मजदूर के हिस्से में आता है और उसे हेय मानने का अर्थ है कि व्यक्ति की बुद्धि तामसी है।  श्रीमद्भागवत गीता में यह भी कहा गया है कि दूसरे के रोजगार का हरण करने वाला आसुरी प्रवृत्ति का है।  यह मजदूरों के रोजगार सुरक्षा कें लिये महत्वपूर्ण बात है।  समाज में आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक सद्भाव बना रहे इसलिये दान आदि की प्रवृत्ति भी विकसित करने की बात भारतीय अध्यात्मिक दर्शन में कही गयी है। मूल बात यह कही गयी है कि समाज की रक्षा गरीब तबका शारीरिक शक्ति तथा मध्यम वर्ग अपनी बुद्धि से करता है। उच्च वर्ग का यह दायित्व है कि वह इन दोनों वर्गों की रक्षा करे। 

          विदुर नीति में अनेक महत्वपूर्ण बातें कही गयी हैं
                                               ---------------------------
                    सम्पन्नतरमेवाचं दरिद्र भुंजते सदा।
                   क्षुत् स्वादुताँ जनपति सा वाद्वेषु सुदुर्लभा।
                 हिन्दी में भावार्थ-दरिद्र मनुष्य सदा ही स्वादिष्ट भोजन करते हैं क्योंकि भूख उनके भोजन में स्वाद पैदा करती है। ऐसी भूख धनियों के सर्वथा दुर्लभ है।
                    प्रावेण श्रीमतां लोके भोक्तुं शक्तिनं विद्यते।
                  जीर्येन्त्यपि हि काष्ठानि दरिद्राणां महीपते।
                 हिन्दी में भावार्थ- संसार में धनियों में प्रायः भोजन करने की शक्ति नहीं होती परंतु दरिद्र काष्ट तक पचा जाते हैं।
                        ऐश्वमदपापिष्ठा मदाः पानमदादयः।
                   ऐश्वर्यमदत्तो हि नावत्तिवा विबुभ्यते।
                 हिन्दी में भावार्थ-शराब तथा अन्य नशीले पदार्थों से भी नशा पैदा होता है पर उनसे बुरा ऐश्वर्य का नशा है। यह नशा आदमी को पथभ्रष्ट कर ही देता है।
      कहने का अभिप्राय यह है कि हमारा अध्यात्मिक दर्शन समाज के हर वर्ग का दायित्व वैज्ञानिक ढंग से तय करता है। किसी बाहरी विचाराधारा के अनुसरण की आवश्यकता नहीं है।  एक अध्यात्मिक लेखक के रूप में हम कार्ल मार्क्स के प्रयासों की सराहना करते हैं मगर यह मानते हैं कि कहीं न कहीं उनकी विचाराधारा अव्यवाहारिक है। वह मनुष्य की मनोदशा का अध्ययन नहीं करती।  यही कारण है कि उनकी विचाराधारा के कथित अनुसरण करने के नाम पर अनेक देशों में क्रांतियां हुईं पर वहां कोई बेहतर हालात नहीं बने।  जहां पहले धार्मिक ठेकेदार सक्रिय थे वहां कथित रूप से क्रांति के ठेकेदारों ने साम्यवाद का नारा देकर सत्ता हथियाई।  उनमें अनेक राष्ट्र कालांतर में बिखर गये।  सोवियत संघ में तो कार्ल मार्क्स के अनुयायी लेनिन को पहले देवता का दर्जा मिला पर बाद में उनकी मूर्तियां ही तोड़ डाली गयीं।  भारतीय अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार मनुष्य देह में अनेक प्रकृतियां विराजमान हैं।  जिनमें अहंकार सबसे महत्वपूर्ण है।  गरीब हो या अमीर उसमें अहंकार होता है। गरीब को अगर कहीं से धन लेना है तो वह गरीब कहलाने को तैयार होता है पर जहां से कुछ न मिले वहां वह कभी गरीब नहीं कहलाना चाहता।  हर मनुष्य अपना  स्वाभिमान बनाये रखना चाहता है।  यही कारण है कि  मजदूरों और गरीबों के नाम पर सत्ता हथियाने वाले अपने पद का अहंकार नहीं छोड़ पाते। उल्टे तानाशाही के चलते उनके ठाटबाट राजाओं से अधिक हो जाते हैं। साम्यवादी विचारक  पारिवारिक संस्कृति के विरोधी माने जाते हैं पर जहां कार्ल मार्क्स के चेलों ने सत्ता हथियाई है वहां वह अपनी ंपारिवारिक  मोह से मुक्त नहीं हो पाये और जिन सार्वजनिक पदों पर स्वयं विराजे वहां अपने बच्चों लाने का प्रयास कर रहे  हैं।  यही इस बात का प्रमाण है कि कार्ल मार्क्स की बातें कहंी न कहीं  मनुष्य के लिये अव्यवहारिक है।  उनकी विचारधारा धरती पर स्वर्ग  लाने के स्वप्न से अधिक नहीं है।
       इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि हम समाज के उच्च वर्ग को अपने दायित्वों से मुक्त करना चाहते हैं। कम से कम कार्ल मार्क्स की इस बात के लिये  प्रशंसा करनी तो चाहिये कि उसे विश्व के मजदूरों और गरीबों में चेतना लाने का काम किया।  भारतीय अध्यात्मिक दर्शन स्पष्ट रूप से यह मानता है कि धर का  बंटवारा समाज में अलग अलग रहेगा तो वह यह भी कहता है कि धनिकों को अपनी रक्षा का सार समाज की रक्षा में ढूंढना चाहिये।  उनके हित श्रमवर्ग के हित में ही अंतर्निहित हैं।  भले ही उच्च वर्ग के लोग गरीब को दान न दें पर उसे अपने परिश्रम का उचित प्रतिफल तथा सम्मान देने के साथ ही उसके लिये रोजगार के अवसर बनाये रखने का प्रयास करें।  ऐसा नहीं करेंगे तो वह स्वतः नष्ट हो जायेंगे। 
       इस मजदूर दिवस के अवसर पर ब्लॉग लेखक मित्रों तथा पाठकोको बधाई।


लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

४.दीपकबापू कहिन
५,हिन्दी पत्रिका
६,ईपत्रिका
७.जागरण पत्रिका

कोई टिप्पणी नहीं:

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

संबद्ध विशिष्ट पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकाएँ

वर्डप्रेस की संबद्ध अन्य पत्रिकायें