1 अक्तूबर 2013

भलमानस-हिन्दी व्यंग्य कविता (bhalmanas-hindi vyangya kavita)



अपनी घर की छत के नीचे
उदास मन रहता है जिनका
वही खिड़कियों से बाहर
दूसरों के घर में झांकते हैं,
हम ज्यादा दुःखी है या पड़ौसी
दिल ही दिल में आंकते हैं।
कहें दीपक बापू
अपनी अमीरी पर इतराते लोग
एकदम झूठे हैं,
जेब हैं भरी पर दिल टूटे हैं,
पैसा खर्च कर श्रद्धा दिखाते हैं,
दौलतमंद के साथ दरियादिल के रूप में
अपना नाम लिखाते हैं,
अपने बदचलनी पर उनकी सफाई यही होती
हमसे तो बड़ी और बुरी दूसरे की भूल होती,
अपने घर से उकताये लोग
बाहर व्याकुलता फैलते  देखने को तैयार हैं,
दूसरों की खुशी के रस में
गम की बूंद डालने वाले यार हैं,
कभी न की किसी की भलाई
अपने भलमानस की बात खुद ही हांकते हैं
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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