10 अक्तूबर 2013

दूसरे की निंदा सुनकर हम खून क्यों जलाते हैं-हिन्दी लेख(doosre ki ninda sunkar ham apna khoon kyon jalate hain-hindi lekh,editorial, article



                       
                        समाचार सुनना बुरी बात नहीं है पर दूसरे के लिये निंदात्मक प्रचार से प्रभावित होना कभी मानसिक रूप से स्वस्थ होने का लक्षण नहीं है। हम देख रहे हैं कि भारतीय समाचार माध्यम-टीवी और समाचार पत्र पत्रिकायें-किसी भी क्षेत्र विशेष के शिखर पुरुष के प्रति जब आक्रामक होते हैं तो इस तरह की सामग्री प्रस्तुत करते हैं जैसे कि वह कोई समाज सुधार की महान भूमिका अदा कर रहे हैं। हम तो यह मानते हैं कि समाज पर नियंत्रण करने वाली जितने भी क्षेत्र हैं उनमें शिखर पर दो ही लोग पहुंचते हैं-एक तो वह जो केवल बुत होते हैं जिनको पूंजीपतियों, प्रचार प्रबंधकों और पदाभिमानी लोग अपनी अपनी स्थिति बनाये रखने के लिये आमजनों के सामने प्रस्तुत करते हैं, दूसरे वह जो आर्थिक, सामाजिक, राजकीय तथा धार्मिक क्षेत्रों में अपनी प्रतिष्ठा तथा धवल छवि बनाये रखने के लिये प्रयासरत रहते हुए शिखर का पद धारण करते हैं ताकि राजकीय संस्थाओं की वक्र दृष्टि उन पर न पड़े।  होनी होनहार है उसे कोई नहीं रोक सकता।  ऐसे में किसी भी क्षेत्र के शिखर पुरुष पर जब प्रकृति का डंडा चलता है तो प्रचार माध्यमों में उसकी छवि खराब होते देर नहीं लगती।  आमतौर से प्रचार माध्यमों के कार्यकर्ता अपने ही स्वामियों की हितों की रक्षा के लिये आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक तथा राजकीय क्षेत्रों के अनेक ऐसे शिखर पुरुषों के कारनामों का विश्लेषण नहीं करते जिनके हाथ में पद, पैसे और प्रतिष्ठा का दंड है।  अपने ही स्वामी पर वह दंड न चले इसलिये वह उससे बचते हैं। सच तो यह है कि प्रचार माध्यमों के कार्यकर्ता स्वयं कोई समाचार खोज नहीं लाते। जब किसी शिखर पुरुष पर प्रकृति का दंड चलता है तो उस पर प्रचार माध्यमों के कार्यकर्ता भी हाथ साफ करने लगते हैं।
                        हमारे यहां अब राजनीति, समाज, धर्म, व्यापार, कला तथा साहित्य के क्षेत्र में अंग्रेजी व्यवस्था का पालन किया जाता है। इसी व्यवस्था के आधार पर प्रसिद्ध अंग्रेजी साहित्यकार जार्ज बर्नाड शॉ ने कहा था कि इस समाज में बिना गलत काम के कोई भी धनवान नहीं बन सकता।  हम यहां अपने देश के विद्वानों के कथन नहीं सुनायेंगे बल्कि जार्ज बर्नाड शा के कथन पर ही विचार करें तो यह बात तय है कि जिनके पास धन आया है उनकी भले ही प्रचार माध्यमों में छवि धवल हो पर उनके कारनामों के बारे में यही बात दावे से नहीं कही जा सकती।  बहरहाल भारत के समाचार चैनलों ने यह नीति बना रखी है कि जिसकी छवि खराब करनी हो उसे लेकर धारावाहिक रूप से समाचार चलायें जायें।
                        आजकल एक कथित व्यवसायिक संत की छवि को लेकर यह प्रचार माध्यम अत्यंत सक्रिय हैं।  हम जैसे अध्यात्मिक साधकों के लिये अब ऐसे समाचारों का कोई महत्व नहीं है पर जिन लोगों का धर्म के प्रति रुझान ज्यादा है वह इन समाचारों को देखते हैं और आह भरकर रह जाते हैं।
                        उस दिन हमारे एक मित्र कह रहे थे कि-‘‘यार, हमने तो अब समाचार चैनल देखना ही बंद कर दिये हैं। यह लोग उस संत के बारे में सुना सुनाकर बोर कर रहे हैं।’’
                        हमने कहा-‘‘यह समाचार चैनल वाले भी क्या करें? हमारे देश में निंदात्मक समाचारों के प्रति रुझान हो तो उसका वह आर्थिक दोहन तो करेंगे। वैसे तुम्हारी उस संत से हमदर्दी क्यों है?’’
                        वह बोला-‘‘नहीं, मैं उसका शिष्य नहीं हूं पर इस तरह हमारा हिन्दू धर्म बदनाम हो रहा है उसे देखकर दुःख होता है।  जब उस संत ने अपराध किये हैं तो उसकी सजा उसे मिलेगी पर उस पर इस तरह समाचार देखकर ऐसा लगता है कि हमारे धर्म का मजाक उड़ाया जा रहा है। यह सब देखा नहीं जाता।’’
                        हमने कहा-‘‘तुंम भावुक हो, इसलिये ऐसा सोचते हो, पर सामान्य लोग रुचि लेते होंगे इसलिये तो यह सब चल रहा है।’’
                        वह बोला-‘‘नहीं, तुम्हें यह लग रहा है मेरे अनेक मित्रों ने यही विचार दिया है।  अनेक लोग तो कहते हैं कि हमारे चैनलों में अपने ही धर्म के विरुद्ध कोई समूह सक्रिय है। वह संत एक प्रकरण में पकड़ा गया है और यह अब उस पर आठ और दस साल पूर्व के मामले उछाल रहे हैं। अगर यह चैनल वाले इतने ही दमदार हैं तो पहले कहां थे? दूसरी बात आरोप लगाने वाले चुप क्यों थे? तुम मानो या न मानो सच यह है कि इस प्रकरण में कोई फिक्सिंग लगती है।’’
                        हमने उससे कहा-नहीं यह बात नहीं है! तुम्हारे अंदर भी कहीं निंदा सुनने की प्रवृत्ति मौजूद है पर चूंकि धर्मभीरु और इससे  तुम्हारी भावना आहत हो रही है इसलिये ऐसा सोचते हो।
                        वह हमसे सहमत नहीं हुआ। सच बात तो यह हे कि हम विभिन्न समाचार सुनने के आदी हैं पर इस तरह की धारावाहिक प्रस्तुति हमें दुःखी नहीं वरन् बोर करती है।  एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति पर आक्षेप हमेशा न्याय का विषय होता है उस समाचारों में इस तरह बहस चलाना यकीनन इस  संदेह को जन्म देता है कि कहीं न कहीं दाल में काला है।  इस देश में धर्म, कला, साहित्य, फिल्म, और समाजसेवा में अनेक काले कारनामे होते हैं और किसी एक का काला कारनामा जब इस तरह चलेगा तो यकीनन कुछ लोगों को यह शक तो होगा ही कहीं यह व्यक्ति विशेष  के विरुद्ध अभियान किसी अन्य कारण से तो नहीं है।
                        बहरहाल हमारी दिलचस्पी न इस तरह के समाचारों में अधिक देर तक रहती है और न ही हमें इस बात का दुःख है। हम तो घर्मभीरुओं और अध्यात्मिक साधकों से यही कहना चाहेगे कि हमेशा उस विषय से जुड़े जो हृदय में प्रसन्नता उत्पन्न करे।  दूसरे के प्रति ग्लानि का भाव आने पर यह नहीं समझना चाहिये कि वह कोई अच्छी बात है वरन् उससे हमारा स्वयं की खून जलता है।  हम दूसरे के दोषों को देखें यह अच्छी बात नहीं है वरन् हम उन समाचारों की तरफ देखें जो हृदय को अच्छे लगें। आजकल टीवी पर बाल बुद्धिमानों की प्रस्तुति भारी प्रसन्नता देती है।  इसे हम देखना  छोड़ते नहीं है अलबत्ता निंदात्मक धारावाहिक आने पर चैनल बदल लें और फिर ध्यान छूट जाये तो यह बात अलग है। श्रीमद्भागवत गीता पर एक बालिका का ज्ञान बहुत अच्छा लगा।  सच तो यह है कि एक ग्लानिपूर्ण प्रसंग के बाद प्रचार माध्यमों ने बाल बुद्धिमानों का प्रसारण कर एक तरह से प्रचार योग किया है।  यह लगभग ऐसा ही जैसा कि हम सूर्य नमस्कार के बाद शवासन करते हुए आनंद प्रांप्त करते हैं।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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