18 मार्च 2014

खामोशी से आनंद-हिन्दी व्यंग्य कविता(khamoshi se anand)



हैरानी नहीं होती जब तख्त के लिये दोस्त ही दुश्मन हो जाते हैं,
इतिहास गवाह है बेटे भी बादशाहों के कातिल हो जाते हैं।
हर इंसान की ख्वाहिश होती है वह ज़माने पर हुकुमत करे,
उसका दबदबा हो इतना कि हर इंसान उसके नाम से डरे,
मतलबपरस्ती में फंसे लोग तारीफ पाने के लिये तरसते हैं,
कमजोर शरीर है जुबान से ताकतवर की तरह बरसते हैं,
रोटी के जुगाड़ करने से ज्यादा काबलियत जिसने कभी पाई नहीं,
फरिश्ते की तरह जहान में मशहूर होने की इच्छा भी छिपाई नहीं,
कहें दीपक बापू जब जूझ रहे हों लफ्जों की जंग में दो शब्दवीर
अक्लमंद मैदान में दर्शक की तरह खामोशी से आनंद पाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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