12 मार्च 2014

न सतयुग था न कलियुग है-हिन्दी व्यंग्य कविता(n satyug tha n kaliyug hai-hindi vyangya kavita)



दूसरों के दर्द दिखाकर अपनी छवि महान इंसान  जैसी बनाते है,
कुछ लोग चढ़ जाते तख्त पर तब वादों की जगह दावे जताते हैं,
बेबस आदमी को बंदर की तरह कुछ लोग नचा रहे हैं,
राजरोग के शिकार खाने से परहेज पर मजे से पैसा पचा रहे हैं,
इंसानों के भीड़ उनके लिये कामयाबी का सबूत है,
आदर्शवाद की बात करते है वही जिनकी पाखंड से भरी करतूत हैं,
होठों  पर लाते मासूम मुस्कराहट मन में छिपी मतलबपरस्ती,
झौंपड़ियों में  एक बार करें गरीब की आरती पाते महल की मस्ती,
कहें दीपक बापू सच यह है न कभी सतयुग था न अब कलियुग है
कुछ ही इंसानों में फरिश्ते जैसे होते गुण वरना पशु ही पाये जाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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