28 सितंबर 2014

आकाश पाने की चाहत-हिन्दी कविता(akasha pane ki chahat-hindi poem)



पंछी की तरह
जिंदगी के आकाश में
उड़ने की चाहत
किस इंसान में नहीं होती।

पंख नहीं दिये प्रकृति ने
फिर भी आकाश से तारे
तोड़ने की ख्वाहिश
किस इंसान में नहीं होती।

कहें दीपक बापू शिखर पर
चढ़ जाते लोग उड़ने के लिये
गिर जायेंगे जमीन पर
टूट जायेंगे हाथ पांव,
हंसेगा पूरा गांव,
चाहतों के साथ
शरीर के टूट जाने की आशंका भी
किसी इंसान में नहीं होती।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

nice blog
ajaysingh1304.blogspot.com

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