3 अक्तूबर 2014

शोर में शब्द खो जाते हैं-हिन्दी कविता(shor mein shabd kho jaate hain-hid\ndi poem)




पेड़ों को धूप आंधी
और वर्षा में डटे रहना
कौन सिखाता है।

रास्ते में भटकते हुए
पशुओं को घर का मार्ग
कौन दिखाता है।

कहें दीपक बापू सबसे ज्यादा
बुद्धि इंसानों में मानी जाती है,
फिर भी पेशेवर बुद्धिमानों की
उपदेशों की किताबें
बंदूक की तरह
अपने शिष्यों पर तानी जाती हैं,
भीड़ लगती है धर्म के मेलों में,
खो जाती चाट के ठेलों में,
सच यह है कि शोर में शब्द
अर्थ खो देते
मौन ही वह कला है
जो भाव हृदय में टिकाता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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