9 अक्तूबर 2014

वफा से दिवालिया समाज-हिन्दी कविता(vafa se diwaliya samaj-hindi kavita)



मस्तिष्क में विचार से अलग
लोग अपनी जुबान से
दूसरी बात बोलते हैं।

अपनी काली नीयत पर
सफेद पर्दा डालकर
स्वयं को ही देते धोखा
दूसरे के अंदर का जहर
यूं ही तोलते हैं।

कहें दीपक बापू वफा से
दिवालिया हो गया समाज,
स्वार्थियों के सिर पर
डाल रहा ताज,
अपनी कमजोरियों से
टूटे हैं लोग,
छिपा रहे
तन और मन के रोग,
तसल्ली होती उनको
जब दूसरे के गम पर
उसके राज खोलते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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