26 अप्रैल 2015

धरती की संतान और हथियार-हिन्दी कविता(dharti ki santan aur hathiyar-hindi poem)


तुमने मुझे बांटा है हिस्सों में
यह बात समझाने
कभी कभी यह धरती
अपने से ही टकराती है।

पालती है संतान की तरह
मगर अपनी कोख में ही संजोये
भूकंप और ज्वालामुखी
जैसे हथियारों से
अपनी ताकत बताती है।

कहें दीपक बापू अपनी जिंदगी पर
इतराने वाले
मरने से डरते हैं,
इसलिये बेबसों के लिये
आंखों में घड़ियाली आंसु भरते हैं,
भुलाते हैं यह सत्य
मायावी विकास यात्रा भी
विनाश के पहाड़ तले
दबकर रुक जाती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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