9 अगस्त 2015

भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान और सांस्कृतिक भिन्नता का समन्वय-हिन्दी चिंत्तन लेख(bharatiya adhyatmik gyan aru sanskritik bhinnata ka samanvay-hindi thought article)

                              ‘हिन्दूशब्द अगर धर्म से जोड़ा जायेगा तो उसका संबंध केवल अध्यात्मिक ज्ञान तक ही सीमित रखना चाहिये। देश में विभिन्न प्रकार की संस्कृतियां और सभ्यतायें हैं और वह ‘‘हिन्दूशब्द के तले एक हैं तो उसका आधार केवल अध्यात्मिक ज्ञान है।  हम अगर हिन्दू शब्द को सभ्यता से जोड़ेंगे तो विश्व गुरु का सम्मान दिलाने वाला अध्यात्मिक ज्ञान का आधार अत्यंत सीमित हो जायेगा।  विदेशी धार्मिक विचाराधारायें अध्यात्म और सांसरिक विषयों को जोड़कर चलती हैं। वह स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग सांसरिक विषयों में ही ढूंढती है जबकि भारतीय या हिन्दू अध्यात्मिक विचाराधारायें स्वर्ग को लेकर लालायित नहीं करतीं।  सकाम और साकार भक्ति के प्रवर्तक स्वर्ग की बात करते हैं तो निराकार के साथ ही निष्काम भक्ति वाले उसका अस्तित्व ही नहीं मानते।  भारतीय धर्म का आधार ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता निष्काम भक्ति का संदेश देती है पर सकाम भक्ति पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाती। हर प्रकार की भक्ति के प्रति उसमें सापेक्ष भाव है।
                              अपनी बात कहने से पहले हमने भारतीय  अध्यात्म को लेकर हमने अपना रुख स्पष्ट इसलिये क्योंकि  कुछ पेशेवर संतों के विवादास्पद  लेकर अनेक धार्मिक विद्वानों ने अपनी राय जिस तरह रखी उससे सहमत होना संभव नहीं है। पहला प्रतिवाद तो इसी पर है कि संत को ऐसा या वैसा नहीं होना चाहिये।  संत कैसा हो? इसकी कोई स्पष्ट व्याख्या नहीं की जा सकती।  हम जानते हैं कि विभाजन के बाद सिंध और पंजाब से अनेक हिन्दू या भारतीय अध्यात्मिक विचारधारा वाले लोग भारत नामक बने नये देश में आये।  उनकी संस्कृति अलग थी पर अध्यात्मिक विचारधारा के प्रवाह ने उन्हें यहां के लिये प्रेरित किया।  संत को नाचना नहीं चाहिये जबकि सिंधियों के भगवत्रूप संत कंवर तो नाचते और गाते थे।  विभाजन के समय जब वह रेल से भारत आ रहे थे तो आतंकवादियों ने उन्हें घेर लिया। उनसे नाचने गाने को कहा और फिर मार डाला। आज भी सिंधी समाज उनको स्मरण करता है।  संत कंवर जी के  अध्यात्मिक ज्ञान की कभी चर्चा नहीं होती पर उनके भजन आज भी गाये जाते हैं।  उसी तरह पंजाबी संस्कृति भी अत्यंत मुखर है।  गुरुनानक देव जी ने हिन्दू धर्म के अध्यात्मिक ज्ञान की पुर्नस्थापना करने के साथ ही  अंधविश्वासों का जमकर विरोध किया था। इसका सीधा आशय यह है कि उनके मानने वालों का धर्म के नाम पर कर्मकांडों तथा अंधविश्वासों को स्वीकार न करने का अर्थ यह कदापि नहीं होता कि भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा से मोह भंग हो गया है।  गुरुनानक जी तथा सिखों के अन्य गुरु सादगी से जीवन बिताने की की बात कहते थे। पंजाबी संस्कृति मेें उनके अध्यात्म्कि ज्ञान का प्रभाव है पर इसके बावजूद सांसरिक विषयों में भी मुखरता देखी जा सकती है।
                              इसके अलावा भारत के दक्षिण, पूर्व, पश्चिम में भी संस्कृति और संस्कार प्रथक दिखते हैं।  हमने देखा है कि जब धार्मिक विद्वान हिन्दू धर्म की बात करते हैं तो केवल उत्तर तथा मध्य भारत कं संस्कृति संदर्भ उससे जोड़ देते हैं। इससे हिन्दू धर्म को लेकर अनेक संशय पैदा होते हैं।  सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि हमारे अध्यात्मिक ग्रंथोें में साधु या संत के लिये कोई एक रूप तय नहीं है। प्राचीन काल में तपस्वी, मुनि और ऋषियों ने अपना पूरा जीवन हमेशा ही एकांत स्थानों में बिताया जब कि आधुनिक संत हमेशा ही भीड़ में रहकर धर्म का व्यापार करते हैं। दूसरी बात यह कि हिन्दू या भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा ज्ञान के साथ विज्ञान पर भी जोर देती है।  इसलिये रूढ़िवादी तर्क देकर कथित धार्मिक विद्वान भ्रम न ही फैलायें तो अच्छा है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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