अमेरिका 232 वर्ष के इतिहास में पहली बार कोई अश्वेत राष्ट्रपति बना है। बराक ओबामा ने वहां चुनाव में विजय हासिल कर ली है। हालांकि पहले भी अमेरिका में चुनाव होते रहे हैं, पर शायद यह पहली बार है कि प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार का नाम भी लोग नहीं जान पाये-जी हां, उनका नाम जान मैक्कैन है। एक तरह से ओबामा की की इस जीत में प्रचार माध्यमों के साथ अंतर्जाल पर इतना प्रचार हुआ कि उनका कोई प्रतिद्वंद्वी भी है इसका आभास ही नहीं होता था। ऐसा लगता है कि वह तो अकेले ही दुनियां के इस शक्त्शिाली पद की की तरफ बढ़ रहे हैं। अमेरिका के इस राष्ट्रपति चुनाव में अन्य प्रचार माध्यमों के साथ ही अंतर्जाल ने ओबामा को विजयी पाने का निश्चय कर लिया था और इसमें सफलता मिली-ऐसा अब प्रतीत होता है।
पहले अमेरिका के पूर्व बिल क्लिंटन की पत्नी हैनरी क्लिंटन के साथ पार्टी में ही उम्मीदवारी पर हुई प्रतिद्वंद्वता के दौरान दोनों को खूब प्रचार मिला। विश्व भर के प्रचार माध्यमों के साथ अंतर्जाल पर भी दोनों के बारे में खूब लिखा गया। जहां भी देखो वही ओबामा और हैनरी क्लिंटन के नाम पर कुछ न कुछ लिखा जरूर कुछ न कुछ जरूर मिलता था। जब तक हैनरी क्लिंटन अपनी पार्टी में उनकी प्रतिद्वंद्वी रही तक उनका नाम जरूर चमका पर बाद में अकेल ओबामा ही पूरी दुनियां में छा गये। न केवल प्रचार माध्यमों बल्कि अंतर्जाल पर भी उनके बारे में इतना लिखा गया कि चुनाव में उनके प्रतिद्वंद्वी का नाम तो शायद अब बहुत कम ही लोग याद रख पायें।
वर्डप्रेस पर लिखने वाले ब्लाग लेखक जब भी अपने ब्लाग के डेशबोर्ड की तरफ जाते तब उनके सामने ओबामा पर लिखा गया कोई न कोई पाठ अवश्य पड़ जाता। इससे यह आभास हो गया था कि ओबामा ही वहां के राष्ट्रपति बनेंगे क्योंकि अमेरिका में इंटरनेट का उपयोग बहुत होता है। हालांकि भारत में भी प्रयोक्ता कम नहीं है पर उनके उद्देश्य सीमित है और बहुत कम लोग अभी पढ़ने लिखने के लिये तैयार दिखते हैं इसलिये अंतर्जाल के सहारे यहां किसी को ऐसी सफलता की तो सोचना भी नहीं चाहिये। इस लेखक ने पिछले छह माह से ऐसा कोई दिन नहीं देखा जब ओबामा के नाम पर लिखा गया कोई पाठ उसके सामने न पड़ा हो।
हालांकि पहले यह लगा कि यह एकतरफा प्रचार भी हो सकता है क्योंकि अमेरिकी मतदाता शायद प्रचार माध्यमों की लहर में न बहें जैसा कि भारत में देखा जाता है पर लगता है कि वहां भी ऐसा ही हुआ हैं-कम से कम चुनाव परिणाम देखकर तो यही लगता है।
ओबामा की जीत को सबसे बड़ा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि वह अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति हैं। अमेरिकनों पर रूढि़वादी होने को आरोप लगता है पर जिस तरह वहां पहला अश्वेत राष्ट्रपति बना इस बात को प्रमाण है कि वहां वाकई खुली विचार धारा पर चलने वाला समाज है। यही कारण है कि लाख विरोधों के बावजूद आज भी अमेरिका लोगों को भाता है। ओबामा ने इस चुनाव प्रचार के दौरान भारत के प्रवासी और अप्रवासी भारतीयों को प्रसन्न करने वाली बहुत सारी बातें कही-कुछ लोगों ने तो उनकी जेब में हनुमान जी की मूर्ति होने की बात भी लिखी। पाकिस्तान के प्रति उनके बयान कोई अधिक उत्साहवर्धक नहीं हैं पर यह तो भविष्य ही बतायेगा कि वह क्या करते हैं-क्योंकि भाषणों में कोई बात कहना अलग बात है और शासन में आने पर उन पर चलना एक अलग मामला है। शासन में अनेक अधिकारीगण अपने हिसाब से चलने को भी बाध्य करते हैं। वैसे भी अमेरिका की विदेश नीति में सबसे अधिक अपने हित ही महत्वपूर्ण होते हैं बाकी सिद्धांत तो ताक पर रखे जा सकते हैं।
वैसे जहां तक भारत और अमेरिकी संबंध हैं तो वह निरंतर बढ़ ही रहे हैं और उनमें कोई रुकावट आयेगी इसकी संभावना नहीं लगती। इधर पाकिस्तान मेें अमेरिका हस्तक्षेंप बढ़ रहा है उससे दोनों का आपसी विवाद बढ़ सकता है। वैसे भी चीन और पाकिस्तान के संबंध जिस दौर में जाते दिख रहे हैं. और ऐसा लग रहा था कि चुनावों में व्यस्तता के कारण अमेरिका प्रशासन उन पर उदासीनता दिखा रहा है-उस पर ओबामा का क्या नजरिया है यह जानना कई लोगों की दिलचस्पी का विषय है। अभी तक श्वेत राष्ट्रपति चुनने वाले अमेरिकन मतदाताओं ने एक अश्वेत राष्ट्रपति को चुनकर अपने उदार और खुले दिमाग का होने का परिचय दिया उससे विश्व के अन्य समाजों को सीखना चाहये। खासतौर से एशिया के देशों के लोगों को सीखना चाहिये जो संकीर्ण विवादों में ही अपना समय नष्ट करते हैं और आदमी की काबलियत देखने की बजाय उसकी जाति,धर्म,भाषा, और क्षेत्र देखते हैं। जिस तरह विश्व में आर्थिक मंदी छायी हुई है और उससे विश्व में अनेक प्रकार के समीकरण बदलने की संभावना है उसे देखते हुए ओबामा का यह कार्यकाल उनके पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों से अधिक एतिहासिक और व्यस्त भी रह सकता है। कम से कम एक बात तो यह है कि वह जार्ज बुश से अधिक वह भारत के बारे में जानते हैं। जार्जबुश ने अपने चुनाव के दौरान भारत के बारे में अपनी अनभिज्ञता प्रकट की थी जबकि ओबामा ने कई बार भारत का नाम लिया। अपने चुनाव प्रचार में भारत द्वारा चंद्रयान भेजने पर उन्होंने अपने नासा के कार्य में सुधार की बात कही यह इस बात का प्रमाण है।
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5 वर्ष पहले
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