16 मई 2009

इन्सान की आस्तीन में-व्यंग्य कविता

आस्तीन के सांप ने
डसकर परंपरा निभाई.
वह भी इंसान है
यह बात समझाई
सच यह है कि किसी सांप ने
इंसान की आस्तीन में
कभी अपने बस्ती नहीं बसाई.
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चेहरा छिपाने के लिए
दिन में पहनकर निकलते हैं नकाब.
उजालों से डरने वालों को
रात का अँधेरा शेर बना देता है ज़नाब!
लुट जाने का डर
उनको भी सताता है
घरों के बाहर पहरा सजाया जाता है
भले होते वह, चोरों के नवाब.
इसलिए अपने लुट जाने की शिकायत को
कोई बड़ा सवाल न समझो
जिसका चाहिए जवाब.
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