2 मई 2009

लिखते रहने का प्रयास करना ही बेहतर-आलेख

इस लेखक के वर्डप्रेस के एक ब्लाग द्वारा पचास हजार पाठ/पाठक संख्या पार करने पर बस इतना ही कहा जा सकता है कि ‘यह सफर दिलचस्प है’। यह भी कहा जा सकता कि यह संख्या बहुत कम है पर यह ब्लाग आगे बढ़ता जा रहा है इसमें संदेह नहीं है कि इसकी लोकप्रियत आगे भी बढ़ेगी।
मुख्य बात यह है कि इस ब्लाग को पच्चीस हजार की पाठ/पाठक संख्या के बाद हिंदी के ब्लाग एक जगह दिखाने वाले फोरमों से समर्थन मिलना इसलिये बंद हो गया था क्योंकि एक मुख्य फोरम से इसे हटवा लिया गया। हटाने की जो उद्देश्य था वह आज पूरा हो गया इससे यह आत्मविश्वास इस लेखक में आ गया है कि अगर अपने ब्लाग पर नियमित रूप से लिखा जाये तो लोकप्रियता का पैमाना स्वतः बढ़ता रहेगा।

इस लेखक का यह पहला ब्लाग जिसने यह संख्या पार की है और गूगल पेज रैंक में इसे 4 का अंक हासिल हो गया है जो ठीकठाक माना जाता है-कुछ बुद्धिमान ब्लाग लेखक ऐसा ही कहते हैं। इस लेखक के 22 ब्लाग सक्रिय हैं जिनमें से 9 वर्डप्रेस पर हैं। एक रणनीति के तहत ब्लाग स्पाट के 13 ब्लाग पर यह लेखक लिखता है और उसमें से चुनींदा रचनायें इन वर्डप्रेस के ब्लाग पर रखता हैं। मुख्य हिंदी फोरम से इसलिये हटावाया गया था क्योंकि वहां ब्लाग लेखकों की आमद अधिक है और उनको रचनाओं का दोहराव न लगे। दूसरा यह देखने के लिये कि वर्डप्रेस के ब्लाग ब्लाग स्पाट के ब्लाग से इतनी अधिक पाठक संख्या किस तरह जुटाते हैं इसका अध्ययन किया जाये। अनेक बार सवाल करने के बावजूद तकनीकी ब्लाग लेखक इस बात की जानकारी नहीं दे पाये कि ऐसा क्यों हो रहा है कि कोई पाठ अगर ब्लाग स्पाट पर लिखा जाता है तो उसको पाठकों का टोटा रहता है और वही अगर वर्डप्रेस पर प्रकाशित होता है तो उसकी संख्या कई गुना बढ़ जाती है।
कई तरह के संशय और अनुमान हैं पर इनमें एक सच यह है कि यह इस लेखक का सबसे लोकप्रिय ब्लाग है। यह बना ही प्रयोग के लिये था और हमेशा ही प्रायोगिक ही बना रहा। यह ब्लाग तब बनाया गया जब ब्लाग लेखक को यूनिकोड फोंट का पता नहीं था। अपने ही कंप्यूटर में मौजूद यूनिकोड के सहारे देव फोंट मेें लिखकर इस पर प्रकाशित करने पर इस लेखक को पढ़ने में आ जाता पर पाठकों की समझ में नहीं आता था। यह लेखक भी इस जिद में था कि किसी भी हालत में वह अपनी ही चलायेगा चाहे जो भी हो। इसी दौरान पता नहीं कैसे ब्लाग स्पाट के हिंदी टूल पर नजर पड़ गयी और वहां कवितायें टाईप कर इसी ब्लाग पर लिखी। वह कविता बहुत कठिनाई से टाईप हुईं थी पर यह तय था कि वह पाठकों के पढ़ने मेें आने वाली थी पर लेखक की उसमें बिल्कुल रुचि नहीं थी। अंग्रेजी टाईप का ज्ञान इस लेखक को था पर गति कम थी। तब सोचा कि चलो एक ब्लाग उन लोगों के लिये चलायेंगे जिनके कंप्यूटर में देव फोंट नहंीं है। यह भी भ्रम था कि जिन लोगों के पास देव फोंट हैं वह तो इसे पढ़ लेंगे। तकनीकी अफरातफरी के बीच इस पर डाली गयी कविता पर एक टिप्पणी तत्काल आ गयी। टिप्पणीकर्ता ब्लाग लेखिका अब नहीं दिखती पर उसकी टिप्पणी से यह आभास हो गया कि अगर इसी तरह लिखेंगे तो कोई पढ़ पायेगा। शायद वह कोई छद्म ब्लाग लेखिका रही होगी और संभव है वह अब भी टिप्पणियां लिखती होगी और यह लेखक उसे नहीं पहचानता होगा।
इस लेखक के 22 ब्लाग/पत्रिकाओं में से तीन लोकप्रिय ब्लाग/पत्रिकाओं में यह एक है और इसको चुनौती देने वाला एक ब्लाग भी वर्डप्रेस पर ही है। मजे की बात यह है कि इसको चुनौती आध्यात्मिक विषयों के ब्लाग से ही मिल है जबकि यह ब्लाग मिश्रित विषयों से संबद्ध है। पिछले कुछ दिनों से इस ब्लाग/पत्रिका पर लिखने में यह लेखक उपेक्षा कर रहा था पर जब गूगल पेज रैंक में इसका स्थान देखा तो तय किया कि इसको लेकर अब आगे बढ़ेंगें।
वैसे देखा जाये तो इस लेखक ने लोकप्रियता पाने के दौड़ में स्वयं को शामिल नहीं माना क्योंकि वह जानता है कि प्रचार पाने के लिये केवल लिखना ही पर्याप्त नहीं है। जिनके पास प्रचार के द्वारा किसी को लोकप्रियता दिलाने की शक्ति है उनके दरवाजे ढेर सारे लोगों की लाईन लगी है और उनके पास इतना समय नहीं है कि वह एक ऐसे लेखक के ब्लाग पर नजर डालें जो उनके दरवाजे पर लगी भीड़ देखकर भाग जाता हो। हिंदी में पढ़ने वाले और लिखने वाले बहुत हैं पर उनके बीच में संपर्क कराने वाली जो कड़ियां हैं उनका अपना एक स्वभाव है जिन पर यहां चर्चा करना ठीक नहीं है। वैसे लोकप्रियता सभी को हजम नहीं होती पर सभी उसके लिये प्रयास करते हैं। हिंदी में लिखने से जल्दी लोकप्रियत नहीं मिलती। इसका एक कारण है कि हिंदी में अनुवादकों के लिये एक रोजगार का बड़ा स्तोत्र है। आपने देखा होगा कि किसी भी विशेष प्रसंग पर अंग्रेजी के ब्लाग की चर्चा होती है। उसका विषय अनुवाद कर हिंदी में सुनाया जाता है। ब्लाग का नाम और पता दोनों दिया जाता है। सभी को यह पता है कि इस देश में केवल दो प्रतिशत लोग अंग्रेजी जानते हैं इसलिये ब्लाग का पता देने में कोई बुराई नहीं है। अगर कोई खोलेगा तो पढ़ेगा क्या खाक? वह ब्लाग खोले अपनी बला से! उसका अनुवाद तो पहले ही टीवी चैनल पर पढ़कर या पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित किया जाता है। यहां एक बात याद रखने वाली बात है कि चाहे अंग्रेजी ब्लाग कितना भी अच्छा हो उससे पाठक नहीं मिल सकते अगर उसका प्रचार नहीं किया जाये। जिन अंग्रेजी ब्लागों को फिल्म, क्रिकेट या अन्य की वजह से लेाकप्रियता मिली वह केवल प्रचार की वजह से ही मिली है। सच बात तो यह है कि हिंदी ब्लाग जगत में कुछ ब्लाग लेखक ऐसे हैं कि अगर उनकी चर्चा हो तो उनकी पाठक संख्या तो लाखेां में पहुंच सकती है क्योंकि उनके जैसे लिखने वाले बाहर नहीं दिखते। इतना ही नहीं जिन अंग्र्रेजी ब्लाग को तात्कालिक सफलता मिली वह बाद में बैठ गये या बैठ जायेंगे मगर हिंदी के ब्लाग लेखकों का लिखा देखकर तो ऐसा लगता है कि वह निरंतर उस पर बढ़ते जायेंगें। शायद यही कारण है कि हिंदी ब्लाग जगत को प्रतिस्पर्धी मानकर उन ब्लाग लेखकों को प्रचार में स्थान नहीं मिल रहा है।
ऐसी स्थिति में गूगल और वर्डप्रेस का आभार व्यक्त करना चाहिये कि उन्होंने देश के परेशान और हैरान हिंदी लेखकों को वह मंच प्रदान किया जो देश की कोई संस्था नहीं प्रदान कर सकी।
वैसे भी यह सच है कि इस देश में हिंदी ब्लाग/लेखक के नाते इससे अधिक लोकप्रियता की आशा करनी भी नहीं चाहिये। यही क्या कम है कि देश के प्रतिष्ठत ब्लाग लेखक इस लेखक का नाम भी जान रहे हैं। ढाई वर्ष हो गये अंतर्जाल पर लिखते हुए पर किसी ने अधिक ध्यान नहीं दिया और न ही इसकी संभावना है क्योंकि सर्च इंजिन से आये लोग पढ़ने के बाद फिर देाबारा नहीं आते। आते हैं तो उनकी दिलचस्पी लेखक के नाम में कम पाठ में अधिक रहती है। लब्बोलुआब यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर किसी उपलब्धि की संभावना नगण्य है पर इसमें बस एक ही पैंच है वह यह कि गूगल का अनुवाद टूल कहीं इस लेखक के ब्लाग/पत्रिकाओं को आगे तक ले गया और धोखे से कही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम हो गया तब इस देश में भी लोग नाम जानने लगेंगे। हिंदी के ब्लाग अंग्रेजी में पढ़े जाने पर ही ऐसी संभावना बनती है।
लिखने का बहुत मजा है। जहां आदमी लिखने का मजा नहीं लेता वहां मजेदार लिख भी नहीं सकता। लिखने का मजा भी तभी ले सकता है जब वह पढ़ता हो। आखिरी बात यह है कि आगे हिंदी में लिखा लोकप्रिय होने वाला है और वह भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर! अनुवाद टूलों पर पाठकों की बढ़ती संख्या से यही आभास होता है। ऐसे में अपने पास गूगल पेज रैंक में 4 का अंक प्राप्त एक नहीं बल्कि तीन ब्लाग/पत्रिकायें जिस लेखक के पास हों उसे लोकप्रियता की चिंता करने की बजाय इस बात पर विचार अधिक करना चाहिये कि वह उसे बचाये कैसे रखे? तय बात है कि जब लिखने से ही यह हासिल हुआ है तो उसका आगे का रास्ता भी ऐसा ही जायेगा। वैसे भी जो लिखने वाले लोकप्रियता के पीछे भागते हैं वह मिल जाने पर उनकी हवा निकल जाती है और जो परवाह नहीं करते वह लिखते जाते हैं। तय रणनीति के अनुसार ब्लाग स्पाट के ब्लाग/पत्रिका पर यह पाठ लिखकर ही वर्डप्रेस के इस ब्लाग/पत्रिका पर प्रकाशित किया जा रहा है ताकि अपने उन ब्लाग लेखक मित्रों को विश्लेषण करने में सुविधा हो जिनकी इसमें रुचि हो। इस अवसर पर अपने ब्लाग लेखक मित्रों और पाठकों धन्यवाद करते हुए यह वादा किया जाता है कि अपनी बेहतरीन रचनायें इस ब्लाग पर प्रस्तुत करने का निरंतर प्रयास किया जायेगा।
.................................................
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप

कोई टिप्पणी नहीं:

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

संबद्ध विशिष्ट पत्रिकायें

लोकप्रिय पत्रिकाएँ

वर्डप्रेस की संबद्ध अन्य पत्रिकायें