22 मई 2009

गुस्से ने हास्य कवि बनाया-हास्य कविता (hasya kavita)

हास्य कवि ढूंढ रहा था
कोई जोरदार कविता
मिल गयी पुरानी प्रेमिका
जिसका नाम भी था कविता।

उसे देखते ही चहकते हुए वह बोली
‘’अरे, कवि
तुम भी अब बुढ़ाने लगे हो
फिर भी बाज नहीं आते
हास्य कविता गुड़गुड़ाने लगे हो
शर्म नहीं आती
पर मुझे बहुत आती
जब पति के सामने
तुम्हारे पुराने प्रेम का किस्सा सुनाती
तब वह बिफर कर कहते हैं
‘क्या बेतुके हास्य कवि से इश्क लड़ाया
मेरा जीवन ही एक मजाक बनाया
कोई श्रृंगार रस वाला कवि नहीं मिला
जो ऐसे हास्य कवि से प्रेम रचाया
जिसका सभी जगह होता गिला
कहीं सड़े टमाटर फिकते हैं
तो कहीं अंड़े पड़ते दिखते हैं’
उनकी बात सुनकर दुःख होता है
सच यह है तुम्हारी वजह से
मैंने अपना पूरा जीवन ही नरक बनाया
फिर भी इस बात की खुशी है
कि मेरे प्यार ने एक आदमी को कवि बनाया’

उसकी बात सुनकर कवि ने कहा
‘मेरे बेतुके हास्य कवि होने पर
मेरी पत्नी को भी शर्म आती है
पर वह थी मेरी पांचवी प्रेमिका
जिसके मिलन ने ही मुझे हास्य कवि बनाया
प्रेम में गंभीर लगता है
पर मिलन मजाक है
यह बाद में समझ आया।
गलतफहमी में मत रहना कि
तुमने कवि बनाया।
तुम्हारे साथ अकेले नहीं
बल्कि पांच के साथ मैंने प्रेम रचाया।
तुम्हारी कद काठी देखकर लगता है कि
अच्छा हुआ तुमसे विरह पाया
कहीं हो जाता मिलन तो
शायद गमों में शायरी लिखता
जिंदगी का बोझ शेरों में ढोता दिखता।
भले ही घर में अपनी गोटी गलत फिट है
पर हास्य कविता कुछ हिट है
दहेज में मिला ढेर सारा सामान
साथ में मिला बहुत बड़ा मकान
जिसके किराये से घर चलता है
उसी पर अपना काव्य पलता है
तुमसे भागकर शादी की होती
तो मेरी जेब ही सारा बोझ ढोती
तब भला कौन सुनता गम की कविता
पांचवीं प्रेमिका और वर्तमान पत्नी भी
कम नहीं है
पर उसके गुस्से ने
मुझे हास्य कवि बनाया

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