9 अप्रैल 2010

परदा-हिन्दी शायरी (parda hindi shayri)

पर्दे के बाहर आता औरत का चेहरा
उनको बहुत डराता है,
बयान न करे आदमी की हकीकत
यह ख्याल उनको डराता है।
इसलिये किताबों में छपे पुराने बयान को
रोज करते है सुनाकर ताजा,
कभी इस धरती पर पैदा न हुए अपने फरिश्ते को
जताते दुनिया का राजा,
उसकी नसीहतों का हमेशा बजाते बाजा,
असलियत न आ जाये परदे से कभी बाहर
इस सोच से ही उनका दिल घबड़ाता है।
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अपने यकीन को ताकतवर कहने वाले
तलवारों को चौराहे पर नचाते हैं।
अमनपसंद होने का दावा करते वह लोग
जो इशारों से खून बहाते हैं।
सच यह है कि देते हैं जमाने को नसीहत
अपने को फरिश्ते दिखने की खातिर
पहले कराते हैं फसाद
फिर सुलह कराने जाते हैं।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com

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