पेड़, पौद्ये, पशु और पक्षी में
दिल लगाना ही क्यों अच्छा लगता है,
शायद इसलिये कि इंसानों की तरह
जज़्बातों से वह खिलवाड़ नहीं करते हैं।
धोखे खाये होंगे हजार जमाने से,
थक गये इंसानों को आजमाने से,
दुर्गंध और बदनीयती से हुआ सामना
जब मिले इंसानी चेहरों से,
इसलिये दे सके जो ताजी हवा
बिना उम्मीद के दिखाये वफा
उन्हीं से रिश्ते निभाने पर जज़्बात मचलते हैं।
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उनके लिये जमाने भर से
घाव अपने दिल पर लेते रहे,
फिर भी कभी उफ नहीं कहा,
अपने मसले हल होते ही
मुंह वह फेर गये
यह भी नहीं पूछा कि
मेरे लिये तुमने कितना दर्द सहा।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com
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*एकांत में तस्वीरों से ही दिल बहलायें, भीड़ में तस्वीर जैसा इंसान कहां
पायें।*
*‘दीपकबापू’ जीवन की चाल टेढ़ी कभी सपाट, राह दुर्गम भाग्य जो सुगम पायें।।*
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5 वर्ष पहले
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