महंगाई यूं बड़ी तो
पीतल सोने के भाव बिक जायेगा।
चांदी के भाव लोहा लिख जायेगा,
मोटे पेट वाले सेठ
कपड़े की गांठों पर बैठे रहेंगे,
गरीब हर जगह नंगा दिख जायेगा।
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पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी पर
देश भक्ति के गीत गाना
हास्यास्पद दिखता है,
जिन्होंने हथिया लिये दौलत और शौहरत के शिखर
वह हर शख्स
दौलत भक्ति करता दिखता है,
बातें कर चाहे कोई भी कितनी आदर्श की
मौका पड़े तो वह शख्स
देश को बेचने का सौदा भी लिखता है।
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महंगाई न केवल कमर तोड़ गयी
बल्कि पांव में पत्थर भी जोड़ गयी,
जिंदा रहना तो मुश्किल हो गया
मौत भी इंसान से मुंह मोड़ गयी।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com
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*एकांत में तस्वीरों से ही दिल बहलायें, भीड़ में तस्वीर जैसा इंसान कहां
पायें।*
*‘दीपकबापू’ जीवन की चाल टेढ़ी कभी सपाट, राह दुर्गम भाग्य जो सुगम पायें।।*
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5 वर्ष पहले
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